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सद्गुणी शिष्य

याग में एक ऋषि का आश्रम था। उनकी एक अतिसुंदर कन्या थी। कन्या को विवाह योग्य जानकर उन्होंने अपने ही शिष्यों में से सद्गुणी शिष्य के साथ उसका विवाह करने का निर्णय किया।
दूसरे दिन ऋषि ने अपने शिष्यों को बुलाया और बोले, ‘अपनी कन्या के विवाह में देने के लिए मेरे पास स्वर्णाभूषण नहीं हैं। मेरे बच्चों, क्या तुम स्वर्णाभूषण चुराकर ला सकते हो? पर एक बात का ध्यान रखना- चोरी गुप्त रूप से ही होनी चाहिए, किसी को भी इसकी भनक नहीं पड़नी चाहिए।’
उस दिन से शिष्यों ने अपने तथा मित्रों के घर से स्वर्णनिर्मित आभूषण चुराने शुरू कर दिए और चुपचाप गुरूजी को लाकर देने लगे।
कुछ दिनों में ढेर सारे स्वर्णाभूषण एकत्रित हो गए। एक दिन ऋषि ने देखा कि उनका एक शिष्य बहुत उदास है। वह उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘बेटा, केवल तुम ही मेरे लिए कुछ भी नहीं ला पाए, क्या बात है?’
‘आपकी शर्त ही ऐसी है गुरूदेव कि आप गुप्त रूप से लाई गई चीज ही स्वीकार करेंगे और पाप ऐसा कर्म है जिसे गुप्त नहीं रखा जा सकता। क्योंकि दूसरों से भले ही मैं चोरी छिपा लूं, पर अपने आप से तो नहीं छिपा सकता।’ शिष्य ने उदास स्वर में कहा।
ऋषि खुश हो गए और अपने उस शिष्य से बोले, ‘मुझे अपनी कन्या के लिए तुम्हारे जैसे ही योग्य वर की तलाश थी। वत्स, मुझे धन की कोई जरूरत नहीं है। मैं तो केवल सदाचार की परीक्षा ले रहा था। मेरी कन्या के योग्य वर केवल तुम ही हो ।’
ऋषि ने अन्य सभी शिष्यों को बुलाया बौर कहा, ‘तुम लोग नैतिक परीक्षा में सफल नहीं हुए। अतः चोरी की हुई सभी चीजें तुम्हें उनके मालिकों को वापस करनी होंगी।’
फिर उन्होंने रत्नाभूषणों से सज्जित अपनी कन्या का विवाह अपने सद्गुणी शिष्य के साथ कर दिया।
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :- ” सदाचार ही सर्वोत्तम आभूषण है। “

 

यथार्थ की पहचान

काशी में पावन सलिला गंगा के तट पर मुनि का बड़ा आश्रम था। उसमें रहकर अनेक शिष्य वेद-वेदांत की शिक्षा ग्रहण करते थे। शिष्यों में एक का नाम दुष्कर्मा था। वह सब शिष्यों में सबसे ज्यादा आज्ञाकारी, मझदार और दयालु प्रवृति का था।
एक दिन उसके सहपाठी ने कहा, ‘दुष्कर्मा, जरा यह श्लोक समझा दो, मेरी समझ में नहीं आ रह। बड़ा ही कठिन है। ‘अरे, यह तो बहुत ही सरल है।
अभी समझा देता हूं।’ दुष्कर्मा ने सहपाठी को श्लोक समझा दिया। डसके सभी मित्र उसे दुष्कर्मा के नाम से पुकारते थे। उसे बहुत बुरा लगता था।
एक दिन उसने मुनि से कहा, ‘गुरूजी, मेरा कोई और नाम रख दीजिए। मुझे यह नाम अच्छा नहीं लगता।’ यह सुनकर मुनि मुस्कराए। फिर उन्होंने कहा, ‘ठीक है, बेटा।
पहले तुम देशाटन कर आओ। जब वापस आओगे तो तुम्हारा नाम बदल देंगे। छुष्कर्मा गुरूजी के चरण स्पर्श करके देशाटन के लिए निकल पड़ा। व्ह एक गांव में पहुंचा।
वहां उसने देखा कि कुछ लोग कंधे पर एक शव को ले जा रहे हैं। उसने पीछे काफी लोग, ‘राम नाम सत्य है’ कहते हुए चल रहे थे।
दुष्कर्मा ने एक आदमी से पूछा, ‘भाई! मरनेवाले का क्या नाम था?’ उस आदमी ने कहा, ‘जीवक ।’ ‘ऐं! जैवक भी कभी मरता है?’
दुष्कर्मा ने हैरानी से पूछा। ‘बड़े मूर्ख हो। नाम से तो मात्र व्यक्ति को पहचान जाता है।’ दुष्कर्मा उसकी बात पर विचार करता हुआ दूसरे गांव में पहुंचा।
वहां उसने देखा कि एक औरत एक लड़की को बुरी तरह पीट रही थी। यह देखकर दुष्कर्मा को दया आ गई। उसने पूछा, ‘देवी!
आप इसको क्यों पीट रही हैं?’ ‘यह मेरी नौकरानी है। इसे पैसे लेकर सामान लाने भेजा था और खाली हाथ वापस आ गई।’ औरत ने क्रोधित मुद्रा में कहा।
दुष्कर्मा ने एक मुद्रा निकालकर उस औरत को दी और कहा, ‘क्रिपया इसे न मारे।’ एक आदमी से उसने पूछा, ‘उस लड़की का नाम क्या है?’
एक आदमी बोला, ‘उसका नाम लक्ष्मी है।’ ‘नाम तो बहुत अच्छा है लेकिन नौकरी दूसरे के यहां करती है?’ ‘अजीब आदमी हो! नम तो केवल पहचान के लिए होता है, अर्थ से क्या होता है। यह कहकर वह आदमी आगे चल दिया।
‘शायद यह ठीक ही कहता है पर…. ।’
अपने नाम से कुछ-कुछ संतुष्ट होकर दुष्कर्मा गांव छोड़कर वापस काशी की ओर लौट पड़ा। रास्ते में फिर उसे एक आदमी मिला।
उसने कहा, ‘भाई मैं रास्ता भूल गया हूं, मुझे काशी का रास्ता बता दोगे?’ दुष्कर्मा ने कहा, ‘मैं भी वहीं जा रहा हूं। मेरे साथ चलो।’
दुष्कर्मा ने उससे पूछा, ‘मित्र! तुम्हारा क्या नाम है?’ वह आदमी बोला, ‘पंथक कहते हैं मुझे।’ ‘पंथक होकर भी तुम रास्ता भूल गए? दुष्कर्मा ने व्यंग्यपूर्ण मुद्रा में कहा।
‘क्यों मजाक करते हो? नाम से क्या लेना-देना। रास्ता तो कोई भी भटक सकता है। वह आदमी बोला, ‘यह तो सबको पता है कि नाम से केवल आदमी की पहचान ही होती है।’
‘तुम ठीक कहते हो। आखिर मुझे यथार्थ समझ में आ गया।’ काशी पहुंचते ही दुष्कर्मा अपने गुरूजी के पास पहुंचा। ‘क्या, अब भी तुम अपना नाम बदलना चाहोगे?’ मुनि ने दुष्कर्मा से पूछा।
‘गुरूजी, अब मैं समझ गया कि नाम से केवल व्यक्ति की पहचान होती है, मैं अपने वर्तमान नाम से ही संतुष्ट
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :- ” व्यक्ति की पहचान उसके नाम से नहीं बल्कि उसके गुण-धर्म से होती है। “