akbar-birbal

पहली मुलाकात

एक बार बादशाह अकबर ने मध्य प्रदेश के एक गाँव में अपना दरबार लगाया।
उसी गाँव में एक युवा किसान महेश दास भी रहता था। महेश ने बादशाह अकबर की घोषणा सुनी कि उस कलाकार को बादशाह एक हजार स्वर्ण मुद्राएं देंगे जो उनकी जीवंत तस्वीर बनाएगा।
निश्चित दिन पर बादशाह के दरबार में कलाकारों की भीड़ लग गयी।
हर कोई दरबार में यह जानने को उत्सुक था कि एक हजार स्वर्ण मोहरों का इनाम किसे मिलता है।
अकबर एक ऊँचे आसन पर बैठे और एक के बाद एक कलाकारों की तस्वीर देखते और अपने विचारों के साथ तस्वीरों को एक-एक कर मना करते गये और बोले यह एक दम वैसी नहीं है जैसा मैं अब हूँ।
जब महेश की बारी आयी जो कि बाद में बीरबल के नाम से प्रसिद्ध हुए, तब तक अकबर परेशान हो चुके थे और बोले क्या तुम भी बाकि सब की तरह ही मेरी तस्वीर बना कर लाये हो ?
लेकिन महेश बिना किसी भय के शांत स्वर में बोला, मेरे बादशाह अपने आपको इसमें देखिए और स्वयं को संतुष्ट कीजिये।
आश्चर्य की बात यह थी कि यह बादशाह की कोई तस्वीर नहीं थी बल्कि महेश के वस्त्रों से निकला एक दर्पण था।
अकबर ने महेश दास का सम्मान किया और उसे एक हजार स्वर्ण मोहरें उपहार स्वरूप दीं।
बादशाह ने महेश को एक राजकीय मोहर वाली अंगूठी दी और फतेहपुर सीकरी अपनी राजधानी में आने का नियंत्रण दिया।

 

 

महेश दास का भाग्य

जब महेश दास बड़े हुए तो उन्होंने बचाकर रखी थी, उसके साथ राजकीय अंगूठी ली तथा अपनी माँ से विदा लेकर बादशाह की राजधानी फतेहपुर सीकरी की तरफ चल दिए।
राजधानी में पहुंचकर महेश दास आश्चर्यचकित रह गये। बाजारों की चकाचौंध व रौनक जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी।
बाजारों में बिकते रंग-बिरंगे वस्त्र, गहने, उन से बनी टोपियां देखकर उनकी आँखे खुली की खुली रह गयी।
बड़े-बड़े ऊंट, पानी बेचने वालों की आवाजें, जादुगरों द्वारा जुताई गयी भीड़, मंदिरों से आती आवाजें सब उसे आकर्षित कर रही थी।
लेकिन महेश अपनी यात्रा के मकसद को बिना भूले महल की तरफ चल दिया। महल के द्वार पर की गयी सुंदर नक्काशी को देखकर महेश को लगा कि यह बादशाह के महल का प्रवेश द्वार है, लेकिन वह तो शाही दरबार का बाहरी छोर था।
महेश जब महल के द्वारा पर पहुंचा तो द्वारपाल ने उसका रास्ता रोकते हुए पूछा ‘कहाँ जा रहे हो ?’
मैं बादशाह सलामत से मिलने आया हूँ। महेश ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया।
द्वारपाल ने कहा, मूर्ख तुम क्या सोचते हो कि बादशाह अकबर को केवल यही कार्य रह गया है कि वो हर किसी के साथ मुलाकात करते रहें।
उसने महेश को वहां से लौट जाने के लिए कहा।
लेकिन जैसे ही महेश ने अकबर की दी हुई शाही अंगूठी निकाली सैनिक चुप हो गया और दूसरे सैनिक ने राजसी मोहर को पहचान लिया।
यह देखकर उसने महेश को अंदर जाने की आज्ञा दी पर वह उसे ऐसे ही नहीं छोड़ना चाहता था।
उसने तब महेश से कहा कि तुम एक शर्त पर अंदर जा सकते हो।
तुम्हें बादशाह से जो भी मिलेगा तुम मुझे उसका आधा दोगे।
महेश ने मुस्कुराते हुए कहा, ठीक है और वह वहां से चला गया। महेश उस सैनिक को सबक सीखना चाहता था ताकि वह फिर भ्रष्ट कार्य न करे।
महेश राजकीय बगीचों से होता हुआ, जहाँ ठंडे पानी के फव्वारे थे, पूरी हवा में गुलाब की महक थी, ठंडी हवा बह रही थी, एक आलीशान भवन तक पहुंचा जहाँ पर सभी दरबारी महंगे वस्त्र पहने हुए थे।
उन सबको देखकर महेश दंग रह गया।
अंत में उसकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी, जो एक ऊँचे आसन पर बैठा था जो कि सोने से बना हुआ था और उस पर हीरे मोती जड़े थे, उसे देखकर महेश को समझते देर नहीं लगी की यही अकबर हैं।
महेश सभी दरबारियों को पीछे धकेलता हुआ बादशाह के तख्त तक जा पहुंचा और बोला – हे बादशाह आपकी शान में कभी कोई कमी न आये अकबर मुस्कुराये और बोले, बताओ तुम्हें क्या चाहिए ?
महेश बोला, मैं यहां आपके बुलाने पर आया हूँ और यह कहते हुए उसने वह अंगूठी बादशाह को वापिस कर दी जो कुछ साल पहले बादशाह ने उसे दी थी।
अकबर ने हँसते हुए महेश का स्वागत किया और पूछा, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ तुम्हें क्या दे सकता हूँ ?
दरबारी उस अजीब से दिखने वाले व्यक्ति को देखकर हैरान थे कि आखिर यह कौन है जिसे बादशाह इतना सम्मान दे रहे हैं।
महेश ने कुछ पल सोचा और कहा, आप मुझे सौ कोड़े मारने की सजा दीजिये।
यह सुनकर दरबार में सन्नाटा छा गया।
बादशाह अचरज से बोले क्या कहते हो ? तुमने तो कुछ गलत नहीं किया जिसके लिए तुम्हें सौ कोड़े दिए जाएं।
क्या बादशाह सलामत मेरी दिल्ली इच्छा को पूरा करने के वायदे से पीछे हट रहे हैं ?
नहीं, एक राजा कभी अपने शब्दों से पीछे नहीं हटता।
अकबर ने बड़े हिचकिचाते हुए सैनिक को आदेश दिया की महेश को सौ कोड़े लगाये जाएं। महेश ने अपनी पीठ पर हर कोड़े का वार बिना किसी आवाज के सहन किया।
जैसे ही पचासवां कोड़ा महेश की पीठ पर पड़ा वह एकदम अलग कूद कर चिल्लाया – रुको।
तब अकबर भी हैरान होते हुए बोले ‘ अब तुम्हें समझ आया कि तुम कितने पागल हो ?’
नहीं जहाँपनाह, मैं जब महल में आपको देखने आना चाहता था तब मुझे महल के अंदर आने की आज्ञा इसी शर्त पर मिली थी की मुझे आपसे जो भी मिलेगा उसका आधा उस सेवक को दिया जायेगा।
इसलिए कृपा करके बाकी के कोड़े उसे लगाए जाएं।
पूरा दरबार हंसी के ठहाकों से गूंज उठा। जिनमें अकबर की हंसी सबसे ऊँची थी।
इसी के साथ उस सैनिक को दरबार में आकर अपनी घूस लेने की आज्ञा दी गयी।
अकबर ने महेश से कहा, तुम अब भी इतने ही बहादुर हो जितने पहले थे लेकिन तुम पहले से भी चालाक हो गए हो।
मैं इतने प्रयत्नों के बावजूद भी अपने दरबार से भ्रष्टाचार नहीं हटा सका, लेकिन तुम्हारी छोटी-सी चालाकी से लालची दरबारियों को सबक मिल गया।
इसलिए आज से मैं तुम्हें बीरबल के नाम से पुकारूंगा और तुम दरबार में मेरे साथ बैठोगे और हर बात में मुझे सलाह दोगे।

 

बीरबल की स्वर्ग यात्रा

दरबार का नाई बीरबल से बहुत चिढ़ता था तथा रोजाना उसके खिलाफ षड्यंत्र रचता रहता था।
एक दिन उसके दिमाग में एक विचार आया और जब अकबर उसको हजामत करने के लिए बुलवाया तो वह बोला, ‘जहाँपनाह, आप जानते हैं, कल रात मैंने स्वप्न में आपके पिताजी को देखा ?’
बादशाह ने हज्जाम से पूछा, बताओ, वे तुमसे क्या कह रहे थे ?
वे स्वर्ग में बहुत खुश हैं, लेकिन वे कह रहे थे कि स्वर्ग के सभी वासी अकेले परेशान रहते हैं। वह चाहते थे कि आप वहां पर किसी को भेजें जो उनसे बातचीत कर सके।
नाई ने कहा, महाराज, बीरबल बड़े मजाकिया स्वभाव के हैं आप उन्हें स्वर्ग भेज दें ताकि वे आपके पिताजी को खुश रख सकें।
बीरबल, बादशाह के आदेश पर दरबार में पहुंचे तो अकबर ने कहा – बीरबल हम जानते हैं की तुम मेरे लिए कोई भी कुर्बानी दे सकते हो।
बीरबल ने कहा, जी जहाँपनाह।
तो हम चाहते हैं कि तुम स्वर्ग में जाकर मेरे पिताजी का साथ दो क्योंकि वहां पर उनसे बातचीत करने वाला कोई नहीं है।
बीरबल ने कहा, ठीक है, लेकिन मुझे तैयारी के लिए कुछ समय दीजिए।
मुगल बादशाह फूले नहीं समाये और बोले, ठीक है तुम मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान दे रहे हो तो मैं तुम्हें एक सप्ताह का समय देता हूँ।
बीरबल घर पहुंचा और एक गहरा गड्ढा खोदा जो उसकी कब्र का कार्य करता लेकिन साथ ही साथ उसके नीचे एक सुरंग खोदी जो उसके घर के अंदर खुलती थी।
एक सप्ताह बाद बीरबल दरबार में पहुंचे।
जहाँपनाह, हमारे रिवाजों के अनुसार मैं चाहता हूँ कि मुझे मेरे घर के नजदीक ही जलाया जाए और मैं जीवित ही चिता पर जलना चाहता हूँ ताकि मैं आसानी से स्वर्ग तक पहुंच सकूं।
बीरबल को जीवित जलाया गया, यह देखकर हज्जाम की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।
बीरबल अपनी बनाई सुरंग द्वारा घर में पहुंच गया। और घर में ही छः माह छुप कर बिताये।
इतने समय में उनके बाल ढाढ़ी बहुत ज्यादा बढ़ गये तो वे दरबार में पहुंचे।
बादशाह बीरबल को देखते ही चिल्लाये, तुम कहाँ से आये ?
स्वर्ग से जहाँपनाह, मैंने आपके पिताजी के साथ अच्छा समय बिताया इसलिए उन्होंने मुझे धरती पर वापिस आने की विशेष आज्ञा दी।
क्या उन्होंने तुम्हें अपने पुत्र के लिए कोई सन्देश भेजा है ?
जी केवल एक जहाँपनाह, क्या आप मेरी बढ़ी हुई दाढ़ी व बाल देख रहे हैं, स्वर्ग में हज्जामों की कमी है। आपके पिताजी ने अपने एक हज्जाम को वहां भेजने को कहा है।

जो होता है अच्छा होता है
बीरबल हमेशा एक बात कहते थे कि जो होता है अच्छे के लिए ही होता है।
बादशाह अकबर उसकी इस बात को हमेशा गलत ठहराते थे।
एक दिन तलवार को संभालते समय बादशाह की छोटी ऊँगली कट गयी। बीरबल ने तुरंत बादशाह से कहाँ – चिंता न करें, जो भी होता है उसके पीछे कोई कारण होता है और वह कारण अच्छे के लिए होता है।
बादशाह अकबर बीरबल की इस बात पर बहुत क्रोधित हुए और उसे जेल में डाल दिया।
बादशाह ने ऊँगली पर पट्टी बाँधी और कुछ दिन बाद मन बदलने के लिए जंगल में शिकार के लिए चल दिए।
कुछ देर बाद, वे शिकार दल से अलग हो गये और अचानक से कुछ आदिवासियों ने उन्हें घेर लिया, मानव बलि देने के लिए। बादशाह को बलि के बकरे की तरह बांधकर मंदिर तक लाया गया।
मंदिर के पुजारी ने जब बलि देने के लिए बादशाह का परीक्षण किया हो कहा कि यह बलि देने लायक नहीं है क्योंकि इसकी ऊँगली गायब है। यह जानकर बादशाह को छोड़ दिया गया।
महल वापिस लौटने पर बादशाह ने भगवान को अपनी ऊँगली कटने का धन्यवाद किया जिसके कारण उनका जीवन बच गया। वे फौरन बीरबल से मिलने जेल पहुंचे।
बीरबल, तुम्हें जेल में डालने के लिए माफी चाहता हूँ अब मैं समझ गया हूँ कि मेरी ऊँगली का काटना मेरे लिए किस प्रकार अच्छा था।
लेकिन मुझे बताओ ईश्वर ने मुझे तुम्हें जेल में क्यों डालने दिया। यह तुम्हारे लिए कैसे अच्छा था ?
बीरबल ने उत्तर दिया, जहाँपनाह, अगर मैं जेल में नहीं होता तो आप मुझे अपने साथ शिकार पर ले जाते और आदिवासियों द्वारा आपको छोड़ने पर, वे मुझे के लिए ले जाते।

 

मूर्खों की सूची

एक दिन अकबर के दरबार में एक अरब व्यापारी अपने घोड़े के साथ पहुंचा। उसके पास हर उम्र और हर किस्म के घोड़े थे।
अकबर ने उनमें से कुछ घोड़े चुने और उनका दाम देकर व्यापारी को अरब से कुछ उम्दा घोड़े लाने को कहा।
व्यापारी राजी हो गया और बादशाह से दो लाख रूपये पेशगी के तौर पर मांगे। अकबर ने तुरंत खजांची को रकम देने का हुक्म दिया तथा व्यापारी जल्दी ही वापिस आने का वायदा कर पैसे लेकर चला गया।
कुछ समय बाद अकबर ने बीरबल को मूर्खों की एक सूची तैयार करने को कहा।
बीरबल ने उत्तर दिया, बादशाह सलामत वह तो मैंने पहले ही तैयार कर ली है।
अकबर सूची में सबसे ऊपर अपना नाम देखकर क्रोधित हुए और बीरबल पर चिल्लाकर बोले तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस सूची में बादशाह का नाम सबसे ऊपर रखने की ?
बीरबल ने उत्तर दिया, बादशाह आपने पिछले सप्ताह व्यापारी को दो लाख रूपये बिना सोचे समझे दे दिये, क्या पता वह व्यापारी घोड़े लेकर आयेगा या नहीं ?
इसलिए मैंने इस सूची में आपका नाम सबसे ऊपर लिखा।
अकबर ने कहा और अगर व्यापारी घोड़े लेकर आ जाता है तो, तब मैं आपके नाम की जगह उसका नाम डाल दूंगा।
अकबर को महसूस हुआ कि उन्होंने व्यापारी को पेशगी रकम देकर गलती की है और वे चुप रहे।

गहनों की चोरी
बादशाह अकबर के राज्य में एक व्यापारी आया। उसे गर्मी लगी तो उसने नदी पर स्थान करने की सोची।
उसने अपने सारे गहने अपने कपड़ों के साथ कमरे के एक कोने में रख दिए और नहाने चला गया।
जब वह नहा कर वापिस आया तो देखा कि उसके गहने गायब हैं। उसने अपने सभी नौकरों से पूछा, मगर ये जानने में असफल रहा कि किसने गहने चुराए हैं ?
तब व्यापारी इस समस्या को सुलझाने के लिए अकबर के पास गया, अकबर ने यह समस्या बीरबल को दी।
बीरबल ने व्यापारी को अगले दिन अपने सभी नौकरों के साथ दरबार में आने के लिए कहा।
अगले दिन जब नौकर दरबार में आये तो बीरबल ने हर नौकर को एक छड़ी दी और कहाँ, मैं तुम सबको एक समान छड़ियाँ देता हूँ लेकिन ये छड़ियाँ जादुई हैं।
जब ये किसी चोर के पास होती हैं तो एक दिन में एक इंच बढ़ जाती हैं। अगर तुमने अपने मालिक के गहने चुराए हैं तो तुम्हारी छड़ी कल तक एक इंच बढ़ जाएगी।
इसलिए अब अपनी-अपनी छड़ी लेकर घर जाओ और कल मेरे पास आना।
अगली सुबह दरबार लगा और व्यापारी व उसके नौकर अपनी-अपनी छड़ी के साथ पहुंचे।
बीरबल ने सबकी छड़िया लेकर उन्हें एक साथ रख दिया। उनमें एक छड़ी बाकी सबसे एक इंच छोटी थी। बीरबल ने व्यापारी से कहा जो नौकर यह छड़ी लेकर आया उसने ही घने चुराए हैं।
उसने छड़ी को एक इंच काटकर छोटा कर दिया ताकि छड़ी के एक इंच बढ़ने पर इसका पता न लग सके और वह पकड़ा न जाये।
बीरबल ने नौकरों को बताया, ये कोई जादुई छड़ियाँ नहीं थी लेकिन तुम्हें विश्वास हो गया इसलिए चोर ने छड़ी को एक इंच काट दिया।
तभी उस नौकर ने अपना गुनाह कुबूल किया और चोरी किए जेवरात लौटा दिये।

 

धार्मिक ग्रंथ

एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा – तुम्हारे धर्मग्रंथों में यह लिखा है कि हाथी की गुहार सुनकर श्री कृष्ण जी पैदल दौड़े थे। न तो उन्होंने किसी सेबक को ही साथ लिया न ही किसी सवारी पर ही गये। इसकी वजह समझ में नहीं आती। क्या उनके सेवक नहीं थे ?
बीरबल बोले – इसका उत्तर आपको समय आने पर ही दिया जुआ सकेगा जहाँपनाह।
कुछ दिन बीतने पर एक दिन बीरबल ने एक नौकर को जो शहजादे को इधर-उधर टहलाता था, एक मोम की बनी मूर्ति दी जिसकी शक्ल बादशाह के पोते से मिलती थी।
मूर्ति अच्छी तरह गहने-कपड़ों से सुसज्जित होने के कारण दूर से दिखने में बिल्कुल शहजादा मालूम होती थी।
बीरबल ने नौकर को अच्छी तरह समझा दिया कि उसे क्या करना है।
जिस तरह तुम रोज बादशाह के पोते को लेकर उनके सम्मुख जाते हो ठीक उसी तरह आज मूर्ति को लेकर जाना और बाग में जलाशय के पास फिसल जाने के बहाना कर गिर पड़ना।
तुम सावधानी से जमीन पर गिरना लेकिन मूर्ति पानी में अवश्य गिरनी चाहिए। यदि तुम्हें इस कार्य में सफलता मिली तो तुम्हें इनाम दिया जायेगा।
एक दिन बादशाह बाग में बैठे थे। वहीं एक जलाशय था।
नौकर शहजादे को खिला रहा था कि अचानक उसका पाँव फिसला और उसके हाथ से शहजादा छूटकर पानी में जा गिरा।
बादशाह यह देखकर बुरी तरह घबरा गये और जलाशय की तरफ लपके।
कुछ देर बाद मोम की मूर्ति को लिए पानी से बाहर निकले।
बीरबल भी उस वक्त वहां उपस्थित थे वे बोले – जहाँपनाह, आपके पास सेवक और कनीजों की फौज है फिर आप स्वयं और वह भी नंगे पावं अपने पोते के लिए क्यों दौड़ पड़े ?
आखिर सेवक-सेविकाएं किस काम आयेंगे ?
बादशाह बीरबल का चेहरा देखने लगे – अब भी आपकी आँखे नहीं खुलीं तो सुनिए – जैसे आपको अपना पोता प्यारा है उसी तरह श्री कृष्णजी को अपने भक्त प्यारे हैं। इसलिए उनकी पुकार पर वे दौड़े चले गये थे। यह सुनकर बादशाह को अपनी भूल का एहसास हुआ।

 

सही गलत का अंतर

एक दिन बादशाह अकबर ने सोचा, हम रोज-रोज न्याय करते हैं।
इसके लिए हमें सही गलत का पता लगाना पड़ता है। लेकिन सही और गलत के बीच आखीर अंतर कितना होता है ?
दूसरे दिन बादशाह अकबर ने यह सवाल दरबारियों से पूछा।
दरबारी इस प्रश्न का क्या मतलब देते। वे एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे। बादशाह समझ गये कि किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं है।
इसलिए उन्होंने बीरबल से पूछा, तुम्हीं बताओ सही और गलत में कितना अंतर् है ?
बीरबल चौंके। वह तो समझते थे कि इस सवाल का कोई जवाब नहीं हो सकता। इसलिए बीरबल का जवाब सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, बीरबल। समझाकर बताओ।
जहाँपनाह! आँख और कान के बीच चार अंगुल का अंतर है। यही सही-गलत के बीच की दूरी है। आप जिसे अपनी आँखों से देखते हैं, वह सही है।
जिसे अपने कानों से सुनते हैं वह गलत भी हो सकता है। इसलिए सही और गलत के बीच चार अंगुल का अंतर माना जाएगा।
यह सुनकर बादशाह अकबर बोले – ‘ वाह! बीरबल वाह! तुम्हारी बुद्धि और चतुराई का जवाब नहीं।

 

टेढ़ी गरदन

एक बार अकबर किसी बात पर बीरबल की चतुराई से खुश हो गए।
उन्होंने बीरबल को सौ एकड़ जमीन उपहार में देने का वचन दिया। बीरबल बहुत खुश हुए। लेकिन बहुत दिन बीत जाने पर भी उन्होंने अपना वचन पूरा नहीं किया।
बीरबल कई अवसरों पर अकबर को इस बात की याद दिलाते रहे, लेकिन बादशाह हर बार उनकी बात सुनी -अनसुनी कर देते या गर्दन घुमाकर दूसरी और देखने लगते।
बीरबल समझ गये कि शहंशाह अपना वादा पूरा नहीं करना चाहते। मगर वे भी हार मानने वाले नहीं थे। वे किसी अच्छे अवसर का इंतजार करने लगे।
एक शाम अकबर और बीरबल घूमने निकले। सामने से एक ऊंट आ रहा था। ऊंट को देखकर अकबर ने पूछा, बीरबल, इस ऊंट की गरदन टेढ़ी क्यों है ?
बीरबल ने तुरंत इस अवसर को ताड़ लिया कि सौ एकड़ जमीन की बात उठाने का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा।
वे बोले – जहाँपनाह शायद यह ऊंट किसी को बचन देकर भूल गया है। धार्मिक पुस्तकों में लिखा है कि जो अपना वचन तोड़ता हैं उनकी गरदन टेढ़ी हो जाती है।
शायद इसी कारण ऊंट की गरदन टेढ़ी हो गयी है। अकबर को भी बीरबल को दिया अपना वचन याद आ गया। तुंरत महल वापिस पहुंचकर, उन्होंने बीरबल को उसके इनाम की जमीन दे दी।

 

धोबी का गधा

एक दिन अकबर, बीरबल और अपने दो पुत्रों के साथ स्नान करने नदी पर गये।
उन्होंने बीरबल को अपने कपड़े पकड़ने को कहा। उन्होंने अपने कपड़े उतार कर बीरबल को दे दिए और नदी में उतर गये।
बीरबल नदी किनारे कंधे पर उनके कपड़े रखकर उनका इंतजार करने लगा। अकबर, बीरबल की तरफ देखकर सोचने लगे और बोले बीरबल तुम तो कपड़ों के बोझ से लदे धोबी के गधे लगते हो।
बीरबल ने तुरंत जबाब दिया, मैंने न केवल एक बल्कि तीन-तीन गधों का बोझ उठा रखा हैं। बादशाह निरुत्तर हो गये।

 

आपका नौकर हूँ

जब कभी दरबार में अकबर और बीरबल अकेले होते थे तो किसी न किसी बात पर बहस अवश्य छिड़ जाती थी।
एक दिन बादशाह अकबर बैंगन की सब्जी की खूब तारीफ कर रहे थे।
बीरबल भी बादशाह की हाँ में हाँ मिला रहे थे। इतना ही नहीं वह अपनी तरफ से भी दो-चार बातें बैंगन की तारीफ में कह देते थे।
अचानक एक दिन बैगन की सब्जी खाकर बादशाह के पेट में दर्द उठा तो वे बैंगन की बुराई करने लगे। बीरबल भी बैंगन को बुरा-भला कहने लगे।
आप ठीक कहते हैं, बैंगन बेकार सब्जी है।
यह सुनकर बादशाह क्रोधित हो उठे और बोले, बीरबल, जब हमने इसकी तारीफ की तो तुमने भी इसकी तारीफ की और जब हमने इसकी बुराई की तो तुमने भी इसकी बुराई की, आखिर ऐसा क्यों, तुम अपनी एक बात पर कायम क्यों नहीं हो ?
बीरबल ने नरम् लहजे में कहा, इसलिए कि मैं बैंगन का नहीं आपका नौकर हूँ।

 

अकबर का स्वप्न

एक रात बादशाह अकबर को सपना आया कि उनके एक दांत को छोड़कर सभी दांत टूट गये।
अगली सुबह उन्होंने राज्य के सभी ज्योतिषियों को सपने का अर्थ जानने के लिए सभा में बुलाया।
एक लंबे विचार विमर्श के बाद ज्योतिषियों ने बताया कि बादशाह के सभी रिश्तेदार उनसे पहले मर जाएंगे।
इस बात को सुनकर अकबर बहुत परेशान हुए और उन्होंने सभी विद्वानों को बिना किसी इनाम के वापिस भेज दिया। थोड़ी देर बाद, बीरबल सभा में आये तो अकबर ने उन्हें अपना सपना सुनाया और उसका अर्थ बताने को कहा।
बीरबल ने काफी सोच विचार के बाद बादशाह अकबर को जबाब दिया कि बादशाह अकबर अपने रिश्तेदारों से अधिक व बेहतर जीवन जीएंगे।
अकबर इस उत्तर से खुश हुए और बीरबल को इनाम दिया।

 

अपनी प्रसिद्धि

एक बार एक ब्राह्मण, सेवाराम, बीरबल के पास आया। वह बोला, उसके पूर्वज संस्कृत के प्रकाण्ड-पंडित थे और सब लोग उन्हें पंडितजी कहकर बुलाते थे।
मेरे पास धन नहीं है, न ही मुझे जरूरत है, मैं तो एक साधारण जीवन जीना चाहता हूँ।
लेकिन बस मेरी एक इच्छा है कि लोग मुझे पंडितजी कहकर पुकारें। यह मैं कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ?
बीरबल बोले, बहुत आसान है। यदि ब्राह्मण उसकी सलाह को माने तो यह हो सकता है। बीरबल ने सलाह दी जो उन्हें पंडितजी कहकर बुलाये, वह उस पर चिल्लाये।
उसी गली में कुछ बच्चे रहते थे जिन्हें ब्राह्मण ने की बार डांटा था इसलिए वो सब इस बात का बदला लेना चाहते थे। बीरबल ने उन बच्चों को बताया कि ब्राह्मण को अगर पंडितजी कहकर बुलाया जाए तो उन्हें बुरा लगता है।
तो बच्चे उन्हें पंडितजी कहकर चिढ़ाने लगे और बीरबल के कहे अनुसार ब्राह्मण उनका जवाब चिल्ला कर देने लगा।
बच्चों ने यह बात आस-पास फैला दी और सब उन्हें पंडितजी कहकर बुलाने लगा। तो खेल तो खत्म हो गया लेकिन नाम रह गया।

 

बीरबल की खिचड़ी

एक दिन बादशाह अकबर ने घोषणा की कि जो आदमी सर्दी के इस मौसम में नदी के ठण्डे पानी में रात-भर खड़ा रहेगा, उसे शाही खजाने से पुरस्कृत किया जायेगा।
इस घोषणा को सुनकर एक गरीब धोबी ने सारी रात नदी में खड़े-खड़े बिता दी और अगले दिन बादशाह के दरबार में आकर इनाम मांगने लगा।
बादशाह ने उस धोबी से सवाल किया, क्या तुम बता सकते हो किस शक्ति के सहारे तुम रात नदी में खड़े रहे ?
धोबी ने अदब के साथ जवाब दिया, आलमपनाह, मैं कल सारी रात महल की छत पर जलते हुए चिराग को देखते रहा।
उसी की शक्ति से मैं सारी रात नदी में खड़ा रह सका।
बादशाह ने उसका जवाब सुनकर कहा, इसका मतलब तो यह हुआ की महल की रोशनी की आंच की गरमी के कारण तुम सारी रात पानी में खड़े रह सके, इसलिए तुम इनाम के सच्चे हकदार नहीं हो सकते।
धोबी उदास हो गया और बीरबल के पास जाकर निराशा भरे स्वर में बोला, दरबार में बादशाह ने इनाम देने से इंकार कर दिया है। धोबी ने इसका कारण भी बीरबल को बता दिया।
बीरबल ने गरीब धोबी को सांत्वना देकर घर भेज दिया। बादशाह ने अगले दिन बीरबल को दरबार में न पाकर एक खादिम को उन्हें बुलाने के लिए भेजा।
खादिम ने उन्हें आकर सूचना दी, बीरबल ने कहा है कि जब उनकी खिचड़ी पूरी पक जाएगी तभी वह दरबार में आ सकेंगे।
बादशाह को यह सुनकर बड़ा अचरज हुआ। वह अपने दरबारियों के साथ बीरबल के घर पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि दो लम्बे बांसों के ऊपर एक हंडिया में चावल रखकर उसे लटकाया गया है और नीचे जमीन पर आग जल रही है।
बादशाह ने तत्काल पूछा, बीरबल, यह क्या तमाशा है ?
क्या इतनी दूरी पर रखी हंडिया में खिचड़ी पक जाएगी ?
हुजूर जरूर पक जाएगी। बीरबल ने उत्तर दिया।
कैसे ? बादशाह ने कौतूहलवश पूछा ?
जहाँपनाह बिल्कुल वैसे ही जैसे महल के ऊपर जल रहे दिये की गर्मी के कारण धोबी सारी रात नदी के पानी में खड़ा रहा। बीरबल ने कहा।
बादशाह अकबर बीरबल का यह तर्कसंगत उत्तर सुनकर लज्जित हुए।
उन्होंने तुरन्त धोबी को ढूंढ लाने और पुरस्कृत करने का आदेश जारी कर दिया।

 

छोटी लकीर बड़ी लकीर

बादशाह अकबर का दरबार अजीबोगरीब प्रश्न-उत्तर के संवादों के लिए प्रसिद्ध था।
एक दिन बादशाह अकबर ने कागज पर पेन्सिल से लेकर लम्बी लकीर खींची और बीरबल को अपने पास बुलाकर कहा, बीरबल यह लकीर न तो हटाई जाए और न ही मिटाई जाए। मगर छोटी हो जाए।
बीरबल ने उसी वक्त लकीर के नीचे एक दूसरी बड़ी लकीर पेन्सिल से खींच दी और कहा, अब देखिए जहाँपनाह, आपकी लकीर इससे छोटी हो गयी।
बादशाह अकबर यह देखकर काफी खुश हुए और मन ही मन बीरबल की अक्ल की दाद देने लगे। वह कोशिश करते थे कि किसी प्रकार बीरबल को शिकस्त दें, किन्तु बीरबल, बीरबल थे।

मुर्गी का अंडा

बीरबल हमेशा अकबर को हर बात का जवाब दे देते थे, इसलिए अकबर ने उन्हें मूर्ख बनाने की एक योजना बनायी।
उन्होंने एक सुबह सभी दरबारियों को बीरबल के पहुंचने से पहले एक-एक अंडा दे दिया। जब बीरबल दरबार में पहुंचे तो बादशाह ने कहा, उन्होंने रात को एक स्वप्न देखा है यदि उनके सभी मंत्री शाही बगीचे के तालाब से एक अंडा निकल कर लायेंगे तो वे ईमानदार होंगे।
अकबर ने सभी दरबारियों को एक-एक कर तालाब पर जाने को कहा और अंडा लाने को कहा। एक-एक कर, उनके सभी मंत्री तालाब पर गये और अंडे को लेकर वापिस आ गये।
अब बीरबल की बारी थी। वह तालाब में कूदा पर कोई अंडा नहीं मिला। वह समझ गया कि अकबर उसके लिए कोई चाल चल रहे है।
बीरबल दरबार में मुर्गे की आवाज निकालते हुए दाखिल हुए।
बादशाह ने उन्हें चुप होने को कहा और अंडा दिखाने को कहा। बीरबल मुस्कुराये और बोले, केवल मुर्गी ही अंडे देती है और मैं तो मुर्गा हूँ। इसलिए अंडा नहीं दे सकता।
हर कोई हंसने लगा और बादशाह को एहसास हो गया कि बीरबल को आसानी से मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।

राज्य में कौवे

एक दिन बादशाह अकबर और बीरबल महल के बगीचे में टहल रहे थे। गर्मी का मौसम था और तालाब के किनारे बहुत सारे कौवे थे।
कौवे को देखते हुए अकबर के मन में एक प्रश्न उठा। वह प्रश्न था कि राज्य में कुल कितने कौवे हैं ?
बीरबल उनके साथ था, तो उन्होंने यह प्रश्न बीरबल से पूछा।
एक पल सोचकर बीरबल ने जवाब दिया, जहाँपनाह हमारे राज्य में पंचानवे हजार चार सौ कौवे हैं। तुंरत जवाब सुनकर बादशाह ने कहा, अगर इससे ज्यादा कौवे निकले तो ?
बिना हिचकिचाहट के बीरबल बोले, अगर मेरे जवाब से अधिक कौवे निकले, तो इसका अर्थ है कि पड़ोस के राज्य से कुछ कौवे यहां घूमने आये हैं।
और अगर कौवे कम निकले तो ? अकबर बोले। तो फिर हमारे राज्य के कुछ कौवे पड़ोसी राज्य में घूमने गये हैं।

तीन प्रश्न

बादशाह अकबर बीरबल को बहुत मानते थे। इस कारण बहुत से दरबारी हमेशा से मुख्यमंत्री बनना चाहता था, लेकिन यह मुम्किन नहीं था क्योंकि उस जगह पर बीरबल था क्योंकि उस जगह पर बीरबल था।
एक दिन अकबर ने उस दरबारी के सामने बीरबल की तारीफ कर दी।
इससे दरबारी को गुस्सा आया और बोला, बादशाह बेवजह ही बीरबल की तारीफ करते रहते हैं, यदि बीरबल उसके तीन प्रश्नों का उत्तर दे तो वह भी उसे बुद्धिमान मान लेगा।
अकबर जो हमेशा बीरबल की जवाबदेही की परीक्षा लेने का आनन्द लेते थे, सहमत हो गये।
आसमान में कितने तारे हैं ?
पृथ्वी का केंद्र कहाँ हैं ?
दुनिया में कितने स्त्री और पुरुष हैं ?
अकबर ने तीनों प्रश्न बीरबल से पूछे और कहा यदि वह इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाया तो उसे मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ेगा।
पहले प्रश्न का उत्तर देने के लिए, बीरबल एक भेड़ लेकर आये और बोले, जितने इस भेद के शरीर पर बाल हैं, उतने ही तारे आसमान में है मेरे मित्र अगर चाहे तो नाप कर देख सकते हैं।
दूसरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए, बीरबल ने फर्श पर दो लकीरें खींची और उनके बीच में लोहे की छड़ रखते हुए बोले, यह पृथ्वी का केंद्र है, यदि दरबारी चाहे तो नाप कर देख सकते हैं।
तीसरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए बीरबल बोले, दुनिया में स्त्री और पुरुष की गिनती करना संभव नहीं हैं क्योंकि कुछ ऐसे व्यक्ति भी है, जो हमारे दरबारी की तरह, न तो स्त्री की गिनती में आते हैं और न ही पुरुषों की। यदि ऐसे व्यक्तियों को मार दिया जाए तो गिनती संभव है।

 

तोता मर गया

एक आदमी तोते पकड़कर उन्हें पढ़ाने-सिखाने के बाद किसी बड़े आदमी को भेंट करके इनाम पाने का धंधा करता था।
एक दिन उसे एक बड़ा सुंदर तोता मिला।
उसने तोते को पढ़ाया और उसे इंसानी बोली सिखाई।
उस आदमी ने वह तोता बादशाह अकबर को भेंट करके बड़ा अच्छा इनाम पाया।
बादशाह ने तोते की देख-रेख के लिए एक आदमी रख लिया। उसे आज्ञा दी कि यदि तोता मर गया तो तुम्हें सूली पर चढ़ा दिया जाएगा।
जो तोता मरने की खबर देगा उसे भी यही दंड मिलेगा।
वह आदमी तोते की खूब सेवा करता था, रखवाली करता था। परन्तु ईश्वर की मर्जी ऐसी हुई कि अचानक वह तोता मर गया। तोते का रखवाला घबरा गया।
वह भगा हुआ बीरबल के पास पहुंचा और सारी बात बताते हुए कहा, अब मेरी जान नहीं बच सकती सरकार, मुझे आप ही बचा सकते हैं। मैं जाकर तोते की मौत की खबर बादशाह को दूँगा, तब भी प्राणदंड और बादशाह स्वयं पता लगाते हैं तब भी प्राणदंड। अब मैं क्या करूँ ?
तुम निश्चिंत रहो, कुछ नहीं होगा। मैं बात संभाला लूंगा।
बीरबल ने उसे सांत्वना दी।
बीरबल बादशाह के पास आकर बोले, हुजूर आपका तोता था………….. और उन्होंने वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
क्या हुआ तोते को ?
मैं नहीं कह सकता, इतना कह सकता। इतना कह सकता हूँ कि आपका तोता आज न खाता है, न पीता है, न मुहँ खोलता है, न बात करता है, न चलता है न हिलता है, उठता भी नहीं हैं, फुदकता भी नहीं।
क्या हुआ उसे चलकर देखते हैं।
बादशाह ने आकर मरे हुए तोते को देखा और बोले, वहीं पर नहीं बता सकते थे कि तोता मर गया।
ऐसा कैसे बताता ? प्राणदंड मिलता। क्योंकि आपने कह रखा था की मरने की खबर देनेवाले को भी प्राणदंड मिलेगा। बीरबल बोले।
और इसलिए वह रखवाला गायब है, बादशाह हँसे। जबकि वह बेकसूर है हुजूर, तोता तो अपने मौत मरा है।
बादशाह ने रखवाले को माफ़ कर दिया। बीरबल की चतुराई से वह बच गया।

 

धोबी और कुम्हार

आगरा शहर में एक धोबी और एक कुम्हार पास-पास रहते थे। एक दिन कुम्हार ने मिट्टी के बहुत सारे बर्तन बनाए।
उसने उन बर्तनों को सुखाने के लिए धूप में रख दिया और आराम करने घर के अंदर चला गया।
तभी वहां दो गधे आए। वे आपस में झगरने लगे। इस कारण कुम्हार के सारे बर्तन टूट गए। वह लाठी लेकर बाहर आया। उसने अपनी लाठी को घुमाया और एक गधे पर जोर से मारा।
गधा ढेंचू-ढेंचू का शोर मचता हुआ बाहर की ओर भागा। इस पर कुम्हार का पड़ोसी दौड़कर आया और बोला, अरे, अरे! यह क्या करते हो ?
यह मेरा गधा है।
कुम्हार ने नाराज होकर कहा, तो क्या हुआ ? इसने मेरे सारे बर्तन चूर-चूर कर दिए हैं।
धोबी बोला, तुम मेरे गधे को पीटते क्यों हो ? तुम्हारे बर्तन टूट गए हैं। तुम उनके पैसे ले लो।
कुम्हार ने सोचा – इस धोबी ने सबके सामने मेरी इज्जत उतार दी। मैं इस बच्चू को ऐसा मजा चखाऊँगा कि यह भी याद करेगा।
दूसरे दिन सुबह-सुबह कुम्हार बादशाह अकबर के दरबार में पहुंचा।
उसने बादशाह को आदाब किया बोला, जहाँपनाह मैं अदना-सा कुम्हार हूँ।
आपके शहर में रहता हूँ।
अकबर – बताओ, तुम्हें क्या परेशानी है ?
कुम्हार – जहाँपनाह ! मैं एक जरूरी बात बताने के लिए आया हूँ।
अकबर – तो फिर जल्दी बताओ।
कुम्हार – जहाँपनाह ! मेरा एक दोस्त फारस गया था। वह कुछ दिन पहले ही वापिस आया है। उसने बताया – वहां आपके नाम का डंका बजता है। आपकी बड़ी इज्जत है वहां। मगर। ……!
यह कहकर कुम्हार चुप हो गया।
अकबर ने पूछा, हाँ आगे बताओ, बात पूरी करो।
कुम्हार बोला, आपके हाथियों के बारे में उनका खयाल अच्छा नहीं है। अकबर ने आश्चर्य-भरे स्वर में पूछा, हाथियों के बारे में! तुम क्या कहना चाहते हो ?
जी हा हजूर! उनका कहना है कि हमारे हाथी बड़े गंदे और काले हैं। हुजूर शाही हाथियों को तो साफ-सुथरा होना चाहिए। कुम्हार ने बात पूरी की।
बात तुम्हारी ठीक है, कुम्हार। अकबर बोले और हुजूर, मेरे दोस्त ने बताया कि फारस के शाह के हाथीखाने में सारे हाथी दूध की तरह सफेद हैं।
अकबर ने समझ लिया कि यह कोई चालबाज आदमी है। फिर भी उन्होंने पूछा, मगर फारस के शाह अपने हाथियों को इतना साफ-सुथरा कैसे रखते हैं ?
कुम्हार ने उत्तर दिया, सीधी-सी बात है हुजूर! इस काम के लिए उनहोंने बढ़िया धोबियों की पूरी फौज लगा रखी है।
तो हम भी शहर के तमाम धोबियों को इस काम पर लगाए देते हैं। अकबर ने कहा। इस पर कुम्हार बोला, जहाँपनाह ! शहर का एक बेहतरीन धोबी मेरे पड़ोस में रहता है।
वह अकेला इस काम के लिए काफी है।
अकबर ने मन-ही-मन सोचा – तो यह अपने पड़ोसी को फँसाना चाहता है। लेकिन उन्होंने कहा, ठीक है, हम उसी को बुला लेते हैं।
अकबर के आदेश पर धोबी को दरबार में हाजिर किया गया। वह डर के कारण काँप रहा था। उसने डरते हुए कहा, जहाँपनाह ! हुजूर!
अकबर ने आदेश दिया, देखो हमारे हाथीखाने के सारे हाथी काले हैं।
तुम्हें इन्हें धोकर सफेद करना है।
जी हुजूर! धोबी बोला।
उसके सामने एक हाथी लाया गया। वह सुबह से शाम तक उसे धोता रहा। किन्तु काला हाथी सफेद न हो सका। निराश होकर वह अपने घर की ओर चल पड़ा। उसने सोचा, यह सब उस कुम्हार की करतूत है।
पर मैं करूँ तो क्या करूँ ?
तभी उसे बीरबल आते हुए दिखाई दिए। वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। बीरबल ने पूछा, क्या हुआ भाई! इस तरह मुँह लटकाए क्यों खड़े हो ?
कुम्हार ने सारी घटना बताई। बीरबल ने उसकी सारी परेशानी सुनी और उसके कान में कुछ कहा।
दूसरे दिन धोबी हाथीखाने में पहुंचा। कुछ देर बाद अकबर भी वहां पहुंच गए। उन्होंने हाथी को देखा और धोबी से बोले, यह हाथी तो वैसा ही है। जरा भी सफेद नहीं हुआ। तुम कल दिनभर क्या करते रहे ?
धोबी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, परवरदिगार, बात यह है……. ।
हाँ क्या बात है ? अकबर ने पूछा।
हुजूर अगर कोई बड़ा-सा बरतन हो, जिसमें यह हाथी खड़ा हो सके तो काम आसान हो जाएगा। धोबी ने बताया।
अकबर ने आदेश दिया कि हाथी के खड़े होने के लिए बड़ा बर्तन बनवाया जाए। बर्तन बनाने का काम उसी कुम्हार को सौंपा गया।
एक हप्ते बाद कुम्हार बर्तन लेकर हाजिर हुआ। मन-ही-मन वह सोच रहा था – धोबी का बच्चा समझता होगा कि फँस जाऊंगा। अब देखता हूँ, धोबी कैसे बचेगा ?
अकबर ने बर्तन को देखा और आदेश दिया हाथी को बर्तन में खड़ा किया जाए।
जैसे ही हाथी को बर्तन में खड़ा किया गया, बर्तन चूर-चूर हो गया। अकबर ने नाराज होकर कहा, क्यों रे, यह कैसा बर्तन बनाया है ?
यह तो एक बार में ही टूट गया। जल्दी से दूसरा दूसरा बर्तन बनाकर ला।
कुम्हार बर्तन बनाकर बनाकर लाता रहा और वह बार-बार टूटता रहा।
आखिर वह बादशाह के पैरों में गिर पड़ा, हुजूर मुझे माफ करें। मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
इस पर अकबर ने धोबी से कहा, धोबी मैं जानता था कि यह तुम्हें फँसाना चाहता है। पर तुमने इसकी चाल का मुहतोड़ जवाब दिया। हम तुम्हें इनाम देंगे।
धोबी हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। उसने कहा, जहाँपनाह! इनाम के असली हकदार तो बीरबल जी हैं।
उन्हीं ने मुझे यह तरकीब सुझाई थी। बादशाह अकबर ने बीरबल की और देखा। बीरबल धीमे-धीमे मुस्करा रहे थे।
अकबर बोले, बीरबल तुम हमारे दरबार के अनमोल रत्न हो ! तुम गरीबों के रक्षक भी हो।