बहुत से लोग मंदिर जाते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम रहता है कि मंदिर में प्रवेश के क्या नियम है प्रवेश से लेकर बाहर निकलने तक की प्रक्रिया के सामान्य शास्त्रोक्त विधि विधान के महत्व पूर्ण सूत्र।
- मंदिर के मुख्य द्वारा पर पहुंचते ही सर्वप्रथम नमस्कार करके जूते-चप्पल उचित स्थान पर उतारे जाते हैं। फिर मंदिर की सीढ़ियों को नमन कर मंदिर में प्रदेश करते हैं। यदि मंदिर प्रांगण में ही जूते-चप्पल रखने का स्थान है तो पहले ही नमन कर लिया जाता है।
- जूते-चप्पल उतारने के बाद मंदिर प्रांगण में स्थित जल स्थान पर हाथ पैर धोने के बाद संक्षिप्त आचमन किया जाता है। अर्थात मुंह धोना और चारों ओर पानी के छींटे डालकर कुल्ला करना और अंत में दो बूंद पानी पीना। हालांकि आचमन की प्रक्रिया तो लंबी है, लेकिन शरीर और इंद्रियों को जल से शुद्ध करने के बाद आचमन कर लें। इस शुद्ध करने की प्रक्रिया को ही आचमन कहते हैं।
- उक्त प्रक्रिया करने के बाद कुछ मंदिरों में सिर को ढंक लिया जाता है, रूमाल या अन्य किसी कपड़े से। महिलाएं सिर पर चूनरी या पल्लू ओढ़ लेती हैं। फिर हाथ जोड़ते हुए मंदिर में प्रवेश किया जाता है। ध्यान रहे की कैप, पगड़ी या हैट लगाकर मंदिर में प्रवेश नहीं करते हैं। कहते हैं कि दुर्गा, कालिका और हनुमान मंदिर में सिर ढंककर जाते हैं। महिलाओं को सभी मंदिरों में सिर ढंककर ही जाना चाहिए।
- मंदिर में प्रवेश करने के बाद मूर्ति के समक्ष दाएं या बाएं खड़े होकर नमन हुआ जाता है। एकदम मूर्ति के सामने खड़े नहीं होते हैं। नमन होने के बाद बैठकर प्रार्थना, मंत्र जप, दीप प्रज्वलन, धूपबत्ती जलाना, हार-फूल या प्रसाद चढ़ाना आदि कर्म किया जाता है।
- फिर मंदिर की परिक्रमा की जाती है। किस देवता की कितनी प्रदक्षिणा करनी चाहिए, इस संदर्भ में ‘कर्म लोचन’ नामक ग्रंथ में लिखा गया है कि- ”एका चण्ड्या रवे: सप्त तिस्र: कार्या विनायके। हरेश्चतस्र: कर्तव्या: शिवस्यार्धप्रदक्षिणा।” अर्थात दुर्गाजी की एक, सूर्य की सात, गणेशजी की तीन, विष्णु भगवान की चार एवं शिवजी की आधी प्रदक्षिणा करनी चाहिए। हनुमानजी की तीन परिक्रमा की जाती है। मंदिर की परिक्रमा करते समय मंदिर के पीछे भगवा की पीठ पीछे प्रणाम नहीं करना चाहिये इसे शुभ नहीं मानागया ।।
- परिक्रमा करने के बाद कुछ लोग एक स्थान पर बैठकर पाठ करते है। जैसे हनुमान चालीसा का पाठ, दुर्गा चालीसा का पाठ या अन्य किसी तरह का स्त्रोत पढ़ते हैं। पूजा पाठ के बाद जो भी मनोकामना होती है उसकी प्रार्थना की जाती है।
- इसके बाद मंदिर से बाहर निकलते वक्त कुछ कदम उल्टे चलते हुए हाथ जोड़ते हुए धन्यवाद करते हुए, क्षमा मांगते हुए निकला जाता है।लोटते समय वापस घंटी नहीं बजाना चाहिये
- इसके बाद मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ समय के लिए बैठा जाता है। यह प्रार्थना करने के लिए कि हे प्रभु हम जब भी इस संसार को छोड़कर जाएं तो किसी भी प्रकार की कठिनाइयां ना हो। सरलता से शरीर छूट जाए और आप हमें अपनी शरण में लें।
- इसके बाद खड़े होकर एक बार पुन: मंदिर की ओर या मूर्ति की ओर मुख करके नमन किया जाता है और अपने ईष्टदेव का नाम जपते हुए मंदिर प्रांगण में जूते चप्पलों के स्थान पर जाया जाता है।
मंदिर के प्रति अपराध:
- मंदिर जाने से पहले यह तय कर लें कि वह मंदिर ही है या कि कुछ और क्योंकि कुछ लोगों ने मंदिर के नाम पर देवी और देवताओं को छोड़कर अन्य लोगों के मंदिर बना लिए हैं। जैसे संत, सती, भूत, अप्सरा, यक्ष, यक्षिणी, वीर, गंधर्व, विद्याधर, सिद्ध, दैत्य, दानव, राक्षस, पिशाच, पिशाचिनी, गुह्मक, वेताल, नेता, अभिनेता आदि के मंदिर भी बना रखे हैं। यदि आप ऐसे मंदिरों में जाते हैं तो यह कर्म मंदिर अपराध की श्रेणी में आता है।
- मंदिर है तो उस मंदिर में सिर्फ संध्योपासना की जाती है, जिसे संध्यावंदन भी कहते हैं। संध्योपासना के 5 प्रकार हैं- 1.प्रार्थना, 2.ध्यान, 3.कीर्तन, 4.यज्ञ और 5.पूजा-आरती। व्यक्ति की जिस में जैसी श्रद्धा है वह वैसा करता है। हालांकि मूल संध्योपासना कर्म तो आजकल कोई नहीं करता है।
- एक समय था जब लोग मंदिर में विशेष वस्त्र पहनकर जाते थे। आजकल तो जिंस-पेंट और मोजे पहनकर मंदिर में चले जाते हैं और वहां किसी ने उन्हें कॉल किया है तो उसे भी अटेंड कर ही लेते हैं। अर्थात उनके लिए मंदिर जाना एक औपचारिकता ही है। फिर वहां कोई परिचित मिल गया तो देवमूर्ति के सामने ही गोष्ठी करने लग जाते हैं। यह मंदिर अपराध के अंतर्गत आता है।
- भगवान के मंदिर में खड़ाऊं या सवारी पर चढ़कर जाना, भगवान के सामने जाकर प्रणाम न करना, उच्छिष्ट या अपवित्र अवस्था में भगवान की वन्दना करना, एक हाथ से प्रणाम करना, भगवान के सामने ही एक स्थान पर खड़े-खड़े प्रदक्षिणा करना, भगवान के आगे पांव फैला कर बैठना, मंदिर में पलंग पर बैठना या पलंग लगाना, मंदिर में सोना, मंदिर में बैठकर परस्पर बात करना, मंदिर में रोना या जोर जोर से हंसना, चिल्लाना, फोन पर बात करना, झगड़ना, झूठ बोलना, गाली बकना, खाना या नशा करना, किसी को दंड देना, कंबल ओढ़कर बैठना, अधोवायु का त्याग करना, अपने बल के घंमड में आकर किसी पर अनुग्रह करना, दूसरे की निंदा या स्तुति करना, स्त्रियों के प्रति कठोर बात कहना, भगवत-सम्बन्धी उत्सवों का सेवन न करना, शक्ति रहते हुए गौण उपचारों से पूजा करना, मुख्य उपचारों का प्रबन्ध न करना, भगवान को भोग लगाए बिना ही भोजन करना, सामयिक फल आदि को भगवान की सेवा में अर्पण न करना, उपयोग में लाने से बचे हुए भोजन को भगवान के लिए निवेदन करना, आत्म-प्रशंसा करना, देवताओं को कोसना, आरती के समय उठकर चले जाना, मंदिर के सामने से निकलते हुए प्रणाम न करना। करना तो एक हाथ उठाकर, भजन-कीर्तन आदि के दौरान किसी भी भगवान का वेश बनाकर खुद की पूजा करवाना, मूर्ति के ठीक सामने खड़े होना, मंदिर से बाहर निकलते वक्त भगवान को पीठ दिखाकर बाहर निकलना, हिन्दू देवी-देवताओं को छोड़कर अन्य किसी का मंदिर बनाना आदि सभी घोर अपराध है।
मंदिर में रुपये या पैसे फेंकना भी अपराध है। अक्सर आपने देखा होगा कि लोग मंदिर में सिक्का या नोट भगवान के सामने फेंकते हैं और फिर हाथ जोड़कर भगवान से मनोकामना मांगते हैं। 10 रुपये चढ़ाकर करते हैं करोड़ों कि कामना।
आचार्य पं.प्रशांत व्यास नीमच म.प्र.|