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पूजा में दीपक का महत्व और इसे जलाते समय इन बातों का रखें ध्यान

आज हम आपको बताने जा रहे है दीपक जलाने के बारे में, जिसका अपना ही महत्व। जी हां, वैसे तो घर में पूजा करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है, वही हिन्दू धर्म में पूजा के समय दीपक जलाने का अपना अलग ही महत्व है। पूजा के समय दीपक जलाने के पीछे यह मन्‍याता है कि इसे शुभ माना जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। साथ ही, ऐसा भी माना जाता घर में दीपक जलाने से वास्तु दोष दूर होता है। हम आपको बताने वाले है पूजा में दीपक जलाने के महत्व के बारे में। पुराणों की मानें तो पूजा में घी और तेल का दीपक जलाना चाहिए। वैसे दीपक जलाने को सकारात्‍मक रूप में भी देखा जाता है, इसे अपने जीवन से अंधकार हटाकर प्रकाश फैलाने से भी जोड़ा जाता है। प्रकाश प्रतीक होता है ज्ञान का। इसलिए कहा जाता है कि पूजा में दीपक जलाकर हम अंधकार को अपने जीवन से बाहर करते हैं।

दीपक जलाने के कुछ नियम होते है, जिसका पालन करने से लाभ मिलता है। कुछ लोगों को इसके नियमों के बारे में पता नहीं होता है। जिसकी वजह से भी वह लोग लाभ से वंचित रह जाते हैं। आज हम आपको बताने वाले है दीपक जलाने के महत्‍व के बारे में और कुछ नियमों के बारे में।

दीपक जलाते समय इन खास बातों रखें ध्यान-

पूजा में कभी भी खंडित दीपक नहीं जलाना चाहिए। नहीं तो शुभ फल मिलने की जगह आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

ध्‍यान रखें कि पूजा के दौरान बीच में दीपक ना बुझे। ऐसा होना अशुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है ऐसा होने पर पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है।

पूजा करते समय अगर घी का दीपक हो, तो इसे अपने बायें हाथ की ओर ही जलाएं। यदि दीपक तेल का है तो अपने दाएं हाथ की ओर जलाएं।

इस बात का ध्‍यान रखें कि दीपक हमेशा भगवान की प्रतिमा के ठीक सामने लगाएं। कई बार हम भगवान की प्रतिमा के सामने दीपक न लगाकर कही और लगा देते है, तो सही नहीं होता है।

घी के दीपक के लिए सफेद रुई की बत्ती इस्‍तेमाल ही करें। जबकि तेल के दीपक के लिए लाल धागे की बत्ती श्रेष्ठ रहती है।

दीपक जलाने के लाभ-

दीपक अंधकार को मिटाकर घर में रोशनी देता है, जिससे घर परिवार का माहौल खुशनुमा बना रहता है। दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और साथ ही घर का वातावरण भी संतुलित बना रहता है। बिना दीपक के पूजा पूरी नहीं मानी जाती।

ऐसा माना जाता है कि शाम को दीपक जलाने से लक्ष्मी माता प्रसन्न होती है, इसीलिए हर शाम घर पर दीपक जरूर जलाएं।

दीपक और दीपोत्सव का पौराणिक महत्व और इतिहास –

दीपक का प्रकाश भगवत प्रकाश होने के कारण जीव, माया और ब्रह्म तीनों ही इस महोत्सव में पूजे जाते हैं। अतः यह दीपोत्सव भगवान विष्णु का गृहस्थ रूप है। यदि गणेश जी का पूजन न किया जाए तो लक्ष्मी जी भी नहीं टिकेंगी। अतः दोनों का पूजन आवश्यक है। इस महोत्सव का ‘पर्वकाल’ धनत्रयोदशी (धनतेरस) से प्रारंभ हो जाता है। इन तीनों दिनों में सूर्यास्त के उपरांत ‘प्रदोषकाल’ में दीपदान अवश्य करना चाहिए। धनतेरस को सायंकाल घर के प्रवेश द्वार के बाहर यमराज के निमिŸा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। प्रकाश की उपासना सूर्य, अग्नि और दीपक के रूप में सदा होती रही है। सूर्य भी प्राणियों को जन्म देने के लिए, उन्हें प्रकाश प्रदान करने के लिए भगवान के दक्षिण नेत्र से प्रकट हुआ। उसने अपने तेज का आधान अग्नि में किया और वह तेज अग्नि से दीपक को मिला। दीपक शब्द की व्युत्पŸिा दीप-दीप्तौ नामक धातु से है, जिसका अर्थ है चमकना, जलना, ज्योतिर्मय होना, प्रकाशित होना।

इसके अतिरिक्त और भी अनेक अर्थ हैं। प्रत्येक संप्रदाय और मजहब में दीपक का महŸव स्वीकारा गया है। लंका विजयोपरांत भी अयोध्या में घी के दीपक जलाये गये थे। इस प्रकार सभी धर्मों की प्रार्थना व उपासनाएं जुड़ी हैं। कार्तिक मास की अमावस्या घनघोर अंधकार से व्याप्त रहती है जिसमें बाधाओं-विघ्नों का आना संभव है। ये विघ्न आधिदैहिक, आधिभौतिक, आधिदैविक हैं। ये विघ्न जीवात्मा को पीड़ित करते हैं। अतः विघ्न विनाशक स्वरूप गणेश की आवश्यकता हुई। पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश इन पांच तत्वों से दीपक की दिव्यता प्रकाशित हुई है और ये ही पंचतत्व सृष्टि के उपादान-कारण भी हैं। इनमें प्रकाश होने से ही आत्मतेज की अनुभूति होती है। तेल से भरे हुए इन दीपकों के प्रकाश से, तेल (स्नेह) की गंध से विषैले कीटाणुओं का नाश होता है, वातावरण में शुद्धता व पवित्रता उत्पन्न होती है तथा चमक-दमक से स्फूर्ति और प्रसन्नता मिलती है। सभी के लिए इन दीपकों का अर्चन, वंदन और पूजन करने की छूट है।

दीपावली का यह महोत्सव एक नवीन जीवंतता का भी श्रीगणेश करता है। पुराणों के अनुसार कथा यह है कि वामनावतार में बलि के द्वारा संपूर्ण पृथ्वी के दान से संतुष्ट होकर भगवान विष्णु ने उन्हें यह वरदान दिया था कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तीनों दिन पृथ्वी पर यमराज की प्रसन्नता के उद्देश्य से दीपदान करने वाले को यमराज की यातना नहीं भोगनी पड़ेगी तथा इन तीनों दिन दीपावली का दीपोत्सव करने वाले के घर को भगवती लक्ष्मी कभी नहीं त्यागेंगी। निर्धनता दूर करने के लिए गृहस्थजनों को अपने पूजागृह में धनतेरस की शाम से दीपावली की रात तक अखंड दीपक जलाना चाहिए। धनतेरस से भैया दूज तक घर में अखंड दीपक पांचों दिन प्रज्ज्वलित रखने से पांचों तत्व संतुलित हो जाते हैं जिससे वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं जिसका प्रभाव पूरे वर्ष रहता है। दीपावली वस्तुतः दीपोत्सव का पर्व है, जो भगवान विष्णु का गृहस्थ रूप है।

मंत्र:  “घृतवर्ती समायुक्तं महोतेजो महोज्वलम्।
           दीपं दास्यामि देवेशि सुप्रीतो भव सर्वदा॥”

यह मंत्र दीपक के लिए है। प्रकाश का यह तेज पुंज तो सर्व विघ्नों का नाश करने वाला गणेश ही है।

 

– अन्तर्राष्ट्रीय वास्तुविद् वास्तुरत्न ज्योतिषाचार्य पं प्रशांत व्यासजी
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