ज़िन्दगी के पत्थर, कंकड़ और रेत
Philosophy के एक professor ने कुछ चीजों के साथ class में प्रवेश किया. जब class शुरू हुई तो उन्होंने एक बड़ा सा खाली शीशे का जार लिया और उसमे पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े भरने लगे. फिर उन्होंने students से पूछा कि क्या जार भर गया है ? और सभी ने कहा “हाँ
तब प्रोफ़ेसर ने छोटे-छोटे कंकडों से भरा एक box लिया और उन्हें जार में भरने लगे. जार को थोडा हिलाने पर ये कंकड़ पत्थरों के बीच settle हो गए. एक बार फिर उन्होंने छात्रों से पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने हाँ में उत्तर दिया.
तभी professor ने एक sand box निकाला और उसमे भरी रेत को जार में डालने लगे. रेत ने बची-खुची जगह भी भर दी. और एक बार फिर उन्होंने पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने एक साथ उत्तर दिया,” हाँ”
फिर professor ने समझाना शुरू किया,” मैं चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें कि ये जार आपकी life को represent करता है. बड़े-बड़े पत्थर आपके जीवन की ज़रूरी चीजें हैंआपकी family,आपका partner,आपकी health, आपके बच्चे – ऐसी चीजें कि अगर आपकी बाकी सारी चीजें खो भी जाएँ और सिर्फ ये रहे तो भी आपकी ज़िन्दगी पूर्ण रहेगी.
ये कंकड़ कुछ अन्य चीजें हैं जो matter करती हैं जैसे कि आपकीjob, आपका घर, इत्यादि.
और ये रेत बाकी सभी छोटी-मोटी चीजों को दर्शाती है.
अगर आप जार को पहले रेत से भर देंगे तो कंकडों और पत्थरों के लिए कोई जगह नहीं बचेगी. यही आपकी life के साथ होता है. अगर आप अपनी सारा समय और उर्जा छोटीछोटी चीजों में लगा देंगे तो आपके पास कभी उन चीजों के लिए time नहीं होगा जो आपके लिए important हैं.
उन चीजों पर ध्यान दीजिये जो आपकी happiness के लिए ज़रूरी हैं.बच्चों के साथ खेलिए, अपने partner के साथ dance कीजिये. काम पर जाने के लिए, घर साफ़ करने के लिए,party देने के लिए, हमेशा वक़्त होगा. पर पहले पत्थरों पर ध्यान दीजिये- ऐसी चीजें जो सचमुच matter करती हैं . अपनी priorities set कीजिये. बाकी चीजें बस रेत हैं.”
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :
गुरु-दक्षिणा
पढ़े: बोले हुए शब्द वापस नहीं आते
गुरु जी पहले तो मंद-मंद मुस्कराये और फिर बड़े स्नेहपूर्वक कहने लगे-‘मुझे तुमसे गुरुदक्षिणा में एक थैला भर के सूखी पत्तियां चाहिए,ला सकोगे?’ वे तीनों मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें लगा कि वे बड़ी आसानी से अपने गुरु जी की इच्छा पूरी कर सकेंगे |
सूखी पत्तियाँ तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती हैं। वे उत्साहपूर्वक एक ही स्वर में बोले-‘जी गुरु जी, जैसी आपकी आज्ञा|
अब वे तीनों शिष्य चलते-चलते एक समीपस्थ जंगल में पहुँच चुके थे | लेकिन यह देखकर कि वहाँ पर तो सूखी पत्तियाँ केवल एक मुट्ठी भर ही थीं,उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा |
वे सोच में पड़ गये कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठा कर ले गया होगा? इतने में ही उन्हें दूर से आता हुआ कोई किसान दिखाई दिया | वे उसके पास पहुँच कर, उससे विनम्रतापूर्वक याचना करने लगे कि वह उन्हें केवल एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दे |
अब उस किसान ने उनसे क्षमायाचना क न्हें यह बताया कि वह उनकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि उसने सूखी पत्तियों का ईंधन के रूप में पहले ही उपयोग कर लिया था | अब, वे तीनों, पास में ही बसे एक गाँव की ओर इस आशा से बढ़ने लगे थे कि हो सकता है वहाँ उस गाँव में उनकी कोई सहायता कर सके |
वहाँ पहँच कर उन्होंने जब एक व्यापारी को देखा तो बड़ी उम्मीद से उससे एक थैला भर सूखी पत्तियां देने के लिए प्रार्थना करने लगे लेकिन उन्हें फिर से एकबार निराशा ही हाथ आई क्योंकि उस व्यापारी ने तो, पहले ही, कुछ पैसे कमाने के लिए सूखी पत्तियों के दोने बनाकर बेच दिए थे लेकिन उस व्यापारी ने उदारता दिखाते हुए उन्हें एक बूढी माँ का पता बताया जो सूखी पत्तियां एकत्रित किया करती थी|
पर भाग्य ने यहाँ पर भी उनका साथ नहीं दिया क्योंकि वह बूढी माँ तो उन पत्तियों को अलग-अलग करके कई प्रकार की ओषधियाँ बनाया करती थी |अब निराश होकर वे तीनों खाली हाथ ही गुरुकुल लौट गये | गुरु जी ने उन्हें देखते ही स्नेहपूर्वक पूछा’पुत्रो,ले आये गुरुदक्षिणा ?’ तीनों ने सर झुका लिया |
गुरू जी द्वारा दोबारा पूछे जाने पर उनमें से एक शिष्य कहने लगा- ‘गुरुदेव,हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाये | हमने सोचा था कि सूखी पत्तियां तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती होंगी लेकिन बड़े ही आश्चर्य की बात है कि लोग उनका भी कितनी तरह से उपयोग करते हैं |
‘गुरु जी फिर पहले ही की तरह मुस्कराते हुए प्रेमपूर्वक बोले-‘निराश क्यों होते हो ?प्रसन्न हो जाओ और यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं; मुझे गुरुदक्षिणा के रूप में दे दो |’तीनों शिष्य गुरु जी को प्रणाम करके खुशी-खुशी अपने-अपने घर की ओर चले गये।
वह शिष्य जो गुरु जी की कहानी एकाग्रचित्त हो कर सुन रहा था,अचानक बड़े उत्साह से बोला- गुरु जी,अब मुझे अच्छी तरह से ज्ञात हो गया है कि आप क्या कहना चाहते हैं |
आप का संकेत, वस्तुतः इसी ओर है न कि जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी निरर्थक या बेकार नहीं होती हैं तो फिर हम कैसे, किसी भी वस्तु या व्यक्ति को छोटा और महत्त्वहीन मान कर उसका तिरस्कार कर सकते हैं?चींटी से लेकर हाथी तक और सुई से लेकर तलवार तकसभी का अपना-अपना महत्त्व होता है ।
गुरु जी भी तुरंत ही बोले-‘हाँ, पुत्र,मेरे कहने का भी यही तात्पर्य है कि हम जब भी किसी से मिलें तो उसे यथायोग्य मान देने का भरसक प्रयास करें ताकि आपस में स्नेह, सद्भावना,सहानुभूति एवं सहिष्णुता का विस्तार होता रहे और हमारा जीवन संघर्ष के बजाय उत्सव बन सके |
दूसरे,यदि जीवन को एक खेल ही माना जाए तो बेहतर यही होगा कि हम निर्विक्षेप,स्वस्थ एवं शांत प्रतियोगिता में ही भाग लें |
और अपने निष्पादन तथा निर्माण को ऊंचाई के शिखर पर ले जाने का अथक प्रयास करें ।’अब शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट था | अंततः,मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि हम मन, वचन और कर्म- इन तीनों ही स्तरों पर इस कहानी का मूल्यांकन करें, तो भी यह कहानी खरी ही उतरेगी |
सब के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त मन वाला व्यक्ति अपने वचनों से कभी भी किसी को आहत करने का दःसाहस नहीं करता और उसकी यही ऊर्जा उसके पुरुषार्थ के मार्ग की समस्त बाधाओं को हर लेती है |वस्तुतः,हमारे जीवन का सबसे बड़ा ‘उत्सव’ पुरुषार्थ ही होता है-ऐसा विद्वानों का मत हैं |
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :
आज ही क्यों नहीं ?
एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था |गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था |
सदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था | अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जाये|
आलस्य में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है |ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता है। वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता है,तो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता|
यहाँ तक कि अपने पर्यावरण के प्रति भी सजग नहीं रहता है और न भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है । उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बना ली |
एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा – ‘मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, कहीं दूसरे गाँव जा रहा हूँ।
जिस भी लोहे की वस्तु को तुम इससे स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण में परिवर्तित हो जायेगी| पर याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात मैं इसे तुमसे वापस ले लूँगा।’
शिष्य इस सुअवसर को पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ लेकिन आलसी होने के कारण उसने अपना पहला दिन यह कल्पना करते-करते बिता दिया कि जब उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होगा तब वह कितना प्रसन्न, सुखी,समृद्ध और संतुष्ट रहेगा, इतने नौकर-चाकर होंगे कि उसे पानी पीने के लिए भी नहीं उठाना पड़ेगा |
फिर दूसरे दिन जब वह प्रातःकाल जागा,उसे अच्छी तरह से स्मरण था कि आज स्वर्ण पाने का दूसरा और अंतिम दिन है |उसने मन में पक्का विचार किया कि आज वह गुरूजी द्वारा दिए गये काले पत्थर का लाभ ज़रूर उठाएगा |
उसने निश्चय किया कि वो बाज़ार से लोहे के बड़े-बड़े सामान खरीद कर लायेगा और उन्हें स्वर्ण में परिवर्तित कर देगा. दिन बीतता गया, पर वह इसी सोच में बैठा रहा की अभी तो बहुत समय है, कभी भी बाज़ार जाकर सामान लेता आएगा.
उसने सोचा कि अब तो दोपहर का भोजन करने के पश्चात ही सामान लेने निकलूंगा.पर भोजन करने के बाद उसे विश्राम करने की आदत थी , और उसने बजाये उठ के मेहनत करने के थोड़ी देर आराम करना उचित समझा. पर आलस्य से परिपूर्ण उसका शरीर नीद की गहराइयों में खो गया, और जब वो उठा तो सूर्यास्त होने को था.
अब वह जल्दी-जल्दी बाज़ार की तरफ भागने लगा, पर रास्ते में ही उसे गुरूजी मिल गए उनको देखते ही वह उनके चरणों पर गिरकर, उस जादुई पत्थर को एक दिन और अपने पास रखने के लिए याचना करने लगा लेकिन गुरूजी नहीं माने और उस शिष्य का धनी होने का सपना चूर-चूर हो गया |
पर इस घटना की वजह से शिष्य को एक बहुत बड़ी सीख मिल गयी: उसे अपने आलस्य पर पछतावा होने लगा, वह समझ गया कि आलस्य उसके जीवन के लिए एक अभिशाप है और उसने प्रण किया कि अब वो कभी भी काम से जी नहीं चुराएगा और एक कर्मठ, सजग और सक्रिय व्यक्ति बन कर दिखायेगा.
मित्रों, जीवन में हर किसी को एक से बढ़कर एक अवसर मिलते हैं , पर कई लोग इन्हें बस अपने आलस्य के कारण गवां देते हैं. इसलिए मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि आप सफल, सुखी, भाग्यशाली, धनी अथवा महान बनना चाहते हैं
तो आलस्य और दीर्घसूत्रता को त्यागकर, अपने अंदर विवेक, कष्टसाध्य श्रम,और सतत् जागरूकता जैसे गुणों को विकसित कीजिये और जब कभी आपके मन में किसी आवश्यक काम को टालने का विचार आये तो स्वयं से एक प्रश्न कीजिये – “आज ही क्यों नहीं ?”
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :
दूसरों में ‘अच्छाइयाँ’ ढूँढ़ें
एक दिन श्रील चेतन्य महाप्रभु पुरी (उड़ीसा) के जगन्नाथ मंदिर में ‘गुरूड़ स्तंभ’ के सहारे खड़े होकर दर्शन कर रहे थे।
एक स्त्री वहां श्रद्धालु भक्तों की भीड़ को चीरती हुई देव-दर्शन हेतु उसी स्तंभ पर चढ़ गई और अपना एक पांव महाप्रभुजी के दाएं कंधे पर रखकर दर्शन करने में लीन हो गई।
यह दुशय देखकर महाप्रभु का एक भक्त घबड़ाकर धीमे स्वर में बोला, ‘हाय, सर्वनाश हो गया! जो प्रभु स्त्री के नाम से दूर भागते हैं, उन्हीं को आज एक स्त्री का पाँव पेश हो गया! न जाने आज ये क्या कर डालेंगे।’
वह उस स्त्री को नीचे उतारने के लिए आगे बढ़ा ही था कि उन्होंने सहज भावपूर्ण शब्दों में उससे कहा –’अरे नहीं, इसको भी जी भरकर जगन्नाथ जी के दर्शन करने दो, इस देवी के तन–मन–प्राण में कृष्ण समा गए हैं, तभी यह इतनी तन्मयी हो गई कि इसको न तो अपनी देह और मेरी देह का ज्ञान रहा….
अहा! ठसकी तन्मयता तो धन्य है….इसकी कृपा से मुझे भी ऐसा व्याकुल प्रेम हो जाए।
सीख ( Moral ) :-
” काम करते समय दूसरों की गलतियों की बजाय अच्छाइयां ढूँढ़ना अपनी आदत में लें, जिससे हमारे का की गुणवत्ता बढ़े और समय की बचत हो। साथ में यह आदत हमारे शिष्ट-व्यवहार को दर्शाएगी “
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :
अपना दृष्टिकोण व्यापक बनाएं
थॉर्नबरी ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता थे। सितारों की स्थिति का अध्ययन करने की धुन में उनकी नजर सदा आसमान में रहती थी।
एक बार वे तारों की स्थिति का अध्ययन करते जा रहे थे कि एक गहरे गड्ढे में गिर पड़े। एक बूढ़ी महिला ने उन्हें बाहर निकाला।
पूछने पर बड़े गर्व से थॉर्नबरी ने कहा – ‘मैं एक बहुत बड़ा ज्योतिषी हूँ। दुनियाभर के ज्योतिषी तारों की स्थिती पूछने के लिए मेरे पास आते हैं।
अगर तुम्हें कभी कुछ पूछना हो तो मेरे पास आना।’ उस स्त्री ने कहा-‘बेटे, मैं कभी तेरे पास नहीं आऊंगी।’ ‘क्यों?’ – थॉर्नबरी ने चौंककर पूछा।
स्त्री ने कहा – ‘क्योंकि जिसे धरती के गड्ढ़ों की जानकारी नहीं है, उसे तारों की क्या जानकारी होगी?’ उन्हें यह बात चुभ गई।
उन्होंने उसी दिन से ज्योतिष के साथ-साथ भू-गर्भ का भी अध्ययन शुरू कर दिया और धरती में छिपे अनेकानेक महान् रहस्यों की खोज कर डाली।
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :- “देखने की शक्ति हमारे अंदर है। हमारा नजरिया ऐसा हो कि मन की खिड़कियाँ सदा खुली रहें, जिससे चारों तरफ की स्थिति पर हम नजर डाल सकें। लक्ष्यों के निर्माण में हमें अपने जीवन-उद्देश्य की गहराई तक की सोच बनानी पड़ती है, तभी हमें स्थायी सफलता मिलती है।
याद रखें : कभी-कभी अच्छा पाने के लिए हमें काफी गहराई में जाना पड़ता है, क्योंकि हो सकता है कि ऊपर से यह साफ न दिखाई दे रहा हो। “
जापानी नेवला
जापान में एक बहुत सुंदर जगह है- नारूमी। वहाँ पर एक नदी के किनारे एक नेवला रहता था। वह नेवला नदी के पार जाकर जंगल के जानवरों को परेशान करता था।
वह सबको सताता भी रहता था। यदि किसी को चोट लग जाए तो प्यार से उसे मरहम लगाने को देता था। लेकिन यह मरहम नींबू के रस और काली मिर्च से बना होता था।
इस कारण मरहम लगानेवाले को और ज्यादा पीड़ा होने लगती थी। नेवले को यह सब देखकर और भी मज़ा आता था। उसने एक दिन ख़रगोश के साथ ऐसा ही किया।
खरगोश ने उसी दिन सोच लिया कि वह दुष्ट नेवले को सबक जरूर सिखाएगा। और एक दिन खरगोश को एक बढ़िया उपाय सूझ गया।
उसने दो टोकरियाँ लीं, एक बड़ी और एक छोटी। बड़ी टोकरी के नीचे उसने तारकोल लगा दिया। खरगोश दानों टोकरियाँ लेकर नेवले केपास पहुंचा और उससे बोला, ‘चलो, पहाड़ी के ऊपर चलें। वहाँ बहुत मीठे आमों का एक पेड़ है। वहाँ से आम लेकर आएँगे।’
लालची नेवले ने तुरंत बड़ी वाली टोकरी उससे ले ली। खरगोश तो यही चाहता था।
पहाड़ी के ऊपर जाकर दोनों ने आमों से टोकरियाँ भर लीं। बड़ी वाली टोकरी भारी हो गई। नेवले ने भारी होने के कारण नीचे रख दी। टोकरी के नीचे तारकोल लगा हुआ था।
इसलिए टोकरी जमीन से चिपक गई। आमों से भरी टोकरी को नेवला छोड़ना नहीं चाहताा था। इसलिए उसने पूरा जोर लगाकर टोकरी उठाई। इससे उसके पंजे छिल गए।
खरगोश ने उससे कहा, ‘दोस्त, तुम्हें दर्द हो रहा होगा। ये लो दवा लगा लो।’
नेवले ने जब दवा लगाई तो दर्द से चिल्लाने लगा।
असल में यह वही नींबू और काली मिर्च का मरहम था, जो नेवला सबको दिया करता था।
नेवला परेशान होकर नदी की ओर भागा। वह नदी पार करके जल्दी अपने घर पहुंचना चाहता था।
नदी के किनारे पर दो नावें खड़ी हुई थी। एक पुरानी थी और नई चमचमाती हुई। वह तुरंत नई नाव में बैठ गया। इस नाव में एक छेद था। नाव डूबने लगी। नेवला किसी तरह नदी पार करके दूसरे किनारे तक पहुंचा। उसके छिले हुए पंजों पर मिर्च का जो मरहम था, उसका दर्द अभी तक हो रहा था। ऊपर से पानी में भीगने का कारण जख्म और ज्यादा दर्द कर रहे थे।
उस दिन नेवले को इस बात का अनुभव हुआ कि उसकी हरकतों से दूसरे जानवरों को कितनी तकलीफ होती होगी। उस दिन से उसने कान पकड़ लिए कि वह कभी किसी को नहीं सताएगा।
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :
संतुलित जीवन से ही चित्त को शांति
अमेरिका के उघोगपति एंड्रयू कार्नेगी अरबपति थे। जब वह मरने को थे तो उन्होंने अपने सेक्रेटरी से पूछा – ‘देख, तेरा-मेरा जिंदगीभर का साथ है। एक बात मैं बहुत दिनों से पूछना चाहता था।
ईश्वर को साक्षी मानकर सच बताओ कि अगर अंत समय परमात्मा तुझसे पूछे कि तू कार्नेगी बनना चाहेगा या सेक्रेटरी, तो तू क्या जवाब देगा?’ सेक्रेटरी ने बेबाक उत्तर दिया- ‘सर! मैं तो सेक्रेटरी ही बनना चाहूँगा।’
अरबपति कार्नेगी बोले- ‘क्यों?’ इस पर सेक्रेटरी ने कहा- ‘मैं आपको 40 साल से देख रहा हूँ। आप दफ्तर में चपरासियों से भी पहले आ धमकते हैं और सबके बाद जाते हैं।
आपने जितना धन आदि इकट्ठा कर लिया उससे अधिक के लिए निरंतर चिंतित रहते हैं। आप ठीक से खा नहीं सकते, रात को सो नहीं सकते।
मैं तो स्वयं आपसे पूछने वाला था कि आप दौड़े बहुत, लेकिन पहुँचे कहां? यह क्या कोई सार्थक जिंदगी है? आपकी लालसा, चिंता और संताप देखकर ही मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि हे भगवान! तरी बड़ी कृपा, जो तूने मुझे एंड्रयू कार्नेगी नहीं बनाया।’
यह सुनकर कार्नेगी ने अपने सेक्रेटरी से कहा – ‘मेरे मरने के बाद तुम अपना निष्कर्ष सारी दुनिया में प्रचारित कर देना। तुम सही कहते हो।
मैं धनपति कुबेर हूँ लेकिन काम से फुर्सत ही नहीं मिली-बच्चों को समय नहीं दे पाया, पत्नी से अपरिचित ही रह गया, मित्रों को दूर ही रखा, बस अपने साम्राज्य को बचाने-बढ़ाने की निरंतर चिंता।
अब लग रहा है कि यह दौड़ व्यर्थ थी। कल ही मुझसे किसी ने पुछा था, ‘क्या तुम तृप्त होकर मर पाओगे?’ मैंने उत्तर दिया- ‘मैं मात्र दस अरब डॉलर छोड़कर मर रहा हूँ। सौ खरब की आकांक्षा थी, जो अधूरी रह गई।
सीख ( Moral ) :-
यह उदाहरण उन लोगों के लिए शिक्षाप्रद सिदध हो सकता है, जो पाश्चात्य संस्कति की दौड़ में धन की लालसा लिए चिंता, भय, तनाव, ईर्ष्या आदि जैसे मनोरोगों से ग्रसित होकर सार्थक जीवन के वास्तविक आनंद से वंचित हो रहे हैं। कार्नेगी के सेक्रेटरी की भांति उत्तम चरित्र वाले व्यक्ति पॉजिटिव लाइफ में विश्वास करते हैं, जिससे उनका जीवन संतुलित रहता है, क्योंकि वे जानते हैं कि वर्तमान में ही भावी जीवन का निर्माण होता है और इसके लिए धन संचय की प्रवृत्ति निर्मूल है।
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
एक बार पंक्षियों का राजा अपने दल के साथ भोजन की खोज में एक जंगल में गया। ‘जाओ और जाकर दाने और बीज ढूंढ़ो। मिले तो बताना। सब मिलकर खाएगें।’
राजा ने पंक्षियों को आदेश दिया। सभी पक्षी दानों की तलाश में उधर निकल पड़े। उड़ते-उड़ते एक चिड़िया उस सड़क पर आ गई जहां से गाड़ियों में लदकर अनाज जाता था।
उसने सड़क पर अनाज बिखरा देखा। उसने सोचा कि वह राजा को इस जगह के बारे में नहीं बताएगी। पर किसी और चिडिया ने इधर आकर यह अनाज देख लिया तो…? ठीक है, बता भी दूंगी लेकिन यहां तक नहीं पहुंचने दूंगी। वह वापस अपने राजा के पास पहुंच गई।
उसने वहां जाकर बताया कि राजमार्ग पर अनाज के ढेरों दाने पड़े हैं। लेकिन वहां खतरा बहुत है। तब राजा ने कहा कि कोई भी वहां न जाए। इस तरह सब पक्षियों ने राजा की बात मान ली।
वह चिड़िया चुपचाप अकेली ही राजमार्ग की ओर उड़ चली और जाकर दाने चुगने लगी। अभी कुछ ही देर बीती कि उसने देखा एक गाड़ी तेजी से आ रही थी।
चिड़िया ने सोचा, गाड़ी तो अभी दूर है। क्यों न दो-चार दाने और चुग लूं। देखते-देखते गाड़ी चिड़िया के उपर से गुजर गई और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
उधर शाम को राजा ने देखा कि वह चिड़िया नहीं आई है तो उसने सैनिकों को उसे ढूंढ़ने का आदेश दिया। वे सब ढूंढते-ढूंढ़ते राजमार्ग पर पहुंच गए।
वहां देखा तो वह चिड़िया मरी पड़ी थी। राजा ने कहा, ‘इसने हम सबको तो मना किया था किंतु लालचवश वह अपने को नहीं रोक पाई और प्राणों से हाथ धो बैठी।
सीख ( Moral ) :-
” अत्यधिक लाभ का फल कभी-कभी प्राणघातक भी हो सकता है। “
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :
जीवन मधुरस से परिपूर्ण है
एक बार एक व्यक्ति ने लियो टॉल्सटॉय से पूछा, ‘जीवन क्या है?’ उन्होंने एक क्षण उस व्यक्ति की ओर देखा, फिर कहा – “एक बार एक यात्री जंगल से गुजर रहा था।
अचानक एक जंगली हाथी उसकी तरफ झपटा, बचाव का अन्य कोई उपाय न देखकर वह रास्ते के एक कुएं में कूद गया। कुएं के बीच में बरगद का एक मोटा पेड़ था।
यात्री उस पेड़ की जटा पकड़कर लटक गया। कुछ देर बाद उसकी निगाह कुएं में नीचे की ओर गई, नीचे एक विशाल मगरमच्छ अपना मुंह फाड़े उसके नीचे टपकने का इंतजार कर रहा था।
डर के मारे उसने अपनी निगाह उपर कर ली। उपर उसने देखा कि शहद के एक छत्ते से बूंद-बूंद मधु टपक रहा था। स्वाद के सामने वह भय को भूल गया।
उसने टपकते हुए मधु की ओर बढ़कर अपना मुंह खोल दिया और तल्लीन होकर बूंद-बूंद मधु पीने लगा, परन्तु यह क्या? उसने आश्चर्यचकित होकर देखा कि वह जटा के जिस मूल को पकड़कर लटका हुआ था, उसे एक सफेद और एक काला चूहा कुतर-कुतर कर काट रहे थे।
प्रश्नकर्ता की प्रश्नसूचक मुद्रा को देखकर टॉल्सटॉय ने कहा, ‘नहीं समझे तुम?’ उसने कहा, ‘आप ही बताइए।’ तब वे समझाते हुए उससे बोले- ‘वह हाथी ‘काल’ था, मगरमच्छ ‘मृत्यु’ थी। मधु ‘जीवन-रस’ था और काला तथा सफेद चूहा ‘रात और दिन’। इन सबका सम्मिलित नाम ही जीवन है।
याद रखें:
हर एक के जीवन में सुख और दुःख दोनों आते हैं जैसे कि समुद्र में ज्वार-भाटा। हमें चाहिए कि इन दोनों को एक ‘समभाव’ में लेते हुए समय का आदर करें यानि इसका एक क्षण भी व्यर्थ न जाने दें।
अगर कोई यह कहे कि ‘अभी मेरी यूथ एज है, 40-50 का होने के बाद मैं जीवन के प्रति गंभीरता से सोचूंगा, तो यह उसका कोरा भ्रम है, क्योंकि जीवन तो जन्म से ही चलता आ रहा है।
महान् व्यक्तियों की जीवनियां बताती हैं कि व्यक्ति के जीवन का मूल्य उसकी लम्बी उम्र से नहीं, बल्कि उसकी कृतियों से आंका जाता है।
यहां कुछ ऐसे व्यक्यिों के उदाहरण हैं जो 40-50 की आयु से ऊपर नहीं पहुंचे और वे अपनी महान् कृतियों और उपलब्धियों के द्वारा विश्व में अपना नाम छोड़ गए, |
जैसे- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, स्वामी विवेकानंद, स्वामी शंकराचार्य, जयशंकर प्रसाद, लाला हरदयाल, जॉन कीट्स, पी.बी. शैली, फ्रेंच दार्शनिक पास्कल, जॉन एफ. कैनेडी इत्यादि ।
मानव-जीवन बार-बार नहीं मिलता है। अतः इस सीमित जीवन में हमें ऐसे प्रशंसनीय कार्य करके अपनी अमिट छाप यहां छोड़े कि आगे चलकर दूसरे लोग उनसे ‘प्ररणा’ लेते रहें।’
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :- ” वर्तमान में हमारा जीवन सीमित समय तक के लिए है और हमें इसकी डैडलाइन भी मालूम नहीं है। फिर भी हम किसी प्रकार के भय से मुक्त रहकर अपने निर्धारित कामों में आनंदपूर्वक तल्लीन रहें। इसी का नाम जीवन है, जो मधुरस से परिपूर्ण है। “
सबसे कीमती चीज
एक जाने-माने स्पीकर ने हाथ में पांच सौ का नोट लहराते हुए अपनी सेमीनार शुरू की. हाल में बैठे सैकड़ों लोगों से उसने पूछा ,” ये पांच सौ का नोट कौन लेना चाहता है?” हाथ उठना शुरू हो गए.
फिर उसने कहा ,” मैं इस नोट को आपमें से किसी एक को दूंगा पर उससे पहले मुझे ये कर लेने दीजिये .” और उसने नोट को अपनी मुट्ठी में चिमोड़ना शुरू कर दिया. और फिर उसने पूछा,” कौन है जो अब भी यह नोट लेना चाहता है?” अभी भी लोगों के हाथ उठने शुरू हो गए.
“अच्छा” उसने कहा,” अगर मैं ये कर दूं ?” और उसने नोट को नीचे गिराकर पैरों से कुचलना शुरू कर दिया. उसने नोट उठाई , वह बिल्कुल चिमुड़ी और गन्दी हो गयी थी.
” क्या अभी भी कोई है जो इसे लेना चाहता है?”. और एक बार फिर हाथ उठने शुरू हो गए.
” दोस्तों , आप लोगों ने आज एक बहुत महत्त्वपूर्ण पाठ सीखा है. मैंने इस नोट के साथ इतना कुछ किया पर फिर भी आप इसे लेना चाहते थे क्योंकि ये सब होने के बावजूद नोट की कीमत घटी नहीं,उसका मूल्य अभी भी 500 था.
जीवन में कई बार हम गिरते हैं, हारते हैं, हमारे लिए हुए निर्णय हमें मिटटी में मिला देते हैं. हमें ऐसा लगने लगता है कि हमारी कोई कीमत नहीं है. लेकिन आपके साथ चाहे जो हुआ हो या भविष्य में जो हो जाए , आपका मूल्य कम नहीं होता. आप स्पेशल हैं, इस बात को कभी मत भूलिए.
कभी भी बीते हुए कल की निराशा को आने वाले कल के सपनो को बर्बाद मत करने दीजिये. याद रखिये आपके पास जो सबसे कीमती चीज है, वो है आपका जीवन.”
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :
छू नहीं सकता
गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की बढ़ती हुई कीर्ति जब कुछ लोगों को सहन नहीं हुई तो वे लोग उनके विषय में उलटी सीधी बातें फैलाने लगे।
लेकिन गुरुदेव समान भाव से सब बरदाश्त करते रहे। शरच्चंद्र चटर्जी से जब ये कटु आलोचनाएँ नहीं सही गईं तो उन्होंने गुरुदेव से कहा कि आप इन आलोचकों का मुँह बंद करने के लिए कोई उपाय तो करिए।
गुरुदेव फिर भी शांत-सरल भाव से बोले, “उपाय क्या है, शरत् बाबू? जिस शस्त्र को लेकर वे लड़ाई करते हैं, उसको तो मैं हाथ भी नहीं लगा सकता।”
Moral of Hindi Stories for Reading – कुत्तों के भौंकने पर भी शेर खामोश ही रहते हैं।
संसार की रचना
भगवान् मपुंगू, सबसे बड़े देवता ने धरती और आकाश बनाया, दो मनुष्य-एक पुरुष और एक स्त्री बनाई; जिन्हें दिमाग दिया। किंतु अब तक इन दोनों मनुष्यों को उन्होंने हृदय नहीं दिया था।
भगवान् मपुंगू के चार बच्चे थे। चंद्र, सूर्य, अंधकार और बरसात। उन्होंने चारों को एक साथ बुलाया और कहा, “मैं अब निवृत्त होना चाहता हूँ। अतः मनुष्य अब कभी मुझे देख न सकेंगे।
मैं अपनी जगह पर एक हृदय को धरती पर भेजूँगा। किंतु जाने से पहले मैं जानना चाहता हूँ कि तुम लोग क्या-क्या करोगे?” बरसात ने कहा, “मैं मूसलाधार पानी बरसाऊँगा और हर चीज को पानी में डुबो दूँगा।”
“नहीं।” भगवान् मपुंगू ने कहा, “ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए। इन दोनों की तरफ देखो।” उन्होंने स्त्री और पुरुष की ओर इशारा किया, “क्या ये लोग पानी के भीतर रह सकेंगे? तुम सूर्य से इस काम में मदद लो।
जब तुम जरूरत भर का पानी बरसा दो तब सूर्य को काम करने देना। वह अपनी गरमी से उसे सुखा देगा।” “और तुम किस तरह काम करोगे?” भगवान् मपुंगू ने सूर्य “मैं चाहता हूँ, मैं इतना तेज चमकूँ कि मेरी गरमी से सब से पूछा।
जल जाएँ!” उनके दूसरे पुत्र सूर्य ने कहा। “नहीं।” भगवान् मपुंगू ने कहा, “यह होगा तो फिर मेरे बनाए इन मनुष्यों को भोजन कैसे मिलेगा ? देखो, जब अपनी गरमी से सबकुछ झुलसाने लगोगे तब बरसात को मौका देना।
वह पानी बरसाकर राहत देगा और फल अनाज उगने में सहायता करेगा।” “और तुम, अंधकार! तुम्हारे कार्यक्रम की क्या रूपरेखा है?” भगवान् ने अंधकार से पूछा। “मैं हमेशा-हमेशा के लिए राज्य करना चाहता हूँ।”
अंधकार ने उत्तर दिया। “दयालु बनो।” भगवान् ने सौम्य स्वर में कहा, “क्या तुम मेरी इस अद्भुत रचना को खत्म कर देना चाहते हो? क्या तुम चाहते हो कि शेर, चीते, सर्प सब अँधेरे में घूमते रहें और मेरी बनाई दुनिया न देख सकें? चाँद को भी कुछ करने का मौका दो।
उसे धरती पर चमकने दो। जब वह चौथाई रह जाए तब पुनः तुम अपना साम्राज्य फैला सकते हो। मुझे काफी देर हो गई है। अब मुझे जाना चाहिए।’’ और भगवान् मपुंगू अंतर्धान हो गए।
कुछ समय के बाद हृदय एक पतली सी झिल्ली से आवृत्त उनके पास आया। वह रो रहा था। उसने सूर्य, चंद्रमा, अंधकार और बरसात से पूछा, ‘‘हमारे पिता भगवान् मपुंगू कहाँ हैं?’’ ‘‘पिताजी चले गए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम जानते भी नहीं हैं कि वे कहाँ गए!’’ ‘‘हाय! मेरी कितनी इच्छा थी कि उनके साथ उनमें लीन हो जाऊँ। किंतु…खैर, जब तक वे नहीं मिलते, मैं आदमी में प्रवेश करूँगा और उसके माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी ईश्वर को खोजूँगा।’’ हृदय ने कहा। और यही हुआ। मनुष्य से पैदा होनेवाले हर बच्चे के पास हृदय होता है, जो आज भी ईश्वर को चाहता है।
Moral of Hindi Stories for Reading – ईश्वर सबमें है।