sad

खुदा ने किस्मत में साँसे लिखी थी
इंसानो ने रोक दी

हाँ याद आया इसके आखरी अलफ़ाज़ ये थे
अगर जी सको तो जी लेना अगर मर जाओ तो अच्छा है

मेरी वफा की कदर ना की अपनी पसन्द पे एतबार किया होता
सुना है वो उनकी भी ना हुई मुझे छोड़ दिया था तो उसे अपना लिया होता

ज़ख़्म दे कर ना पूछ तू मेरे दर्द की शिद्दत
दर तो फिर दर्द है काम क्या ज्यादा क्या

मुद्दतों बाद भी नहीं मिलते हम जैसे नायाब लोग
तेरे हाथ क्या लग गए तुमने तो हमे आम समझ लिया

बहुत थे मेरे भी इस दुनिया मेँ अपने
फिर हुआ इश्क और हम लावारिस हो गए

मेरी हर शायरी दिल के दर्द को करता बयां
तुम्हारी आँख न भर आये कही पढ़ते पढ़ते

इन्हे अपना भी नहीं सकता मागत इतना क्या कम है
कुछ मुद्दतें हसीं खवाबो मैं खो कर जी लिया हमने

कबूल ऐ करते हे तेरे कदमो मे गिरकर
सजाए मौत मनजूर है मगर अब मोहब्बत नही करनी

दुश्मनो की अब किसे जरूरत है
अपने ही काफी है दर्द देने के लिए

खामोशियां कभी बेवजह नहीं होती
कुछ दर्द ऐसे भी होते है जो आवाज़ छीन लेती है

हँसता हूँ पर दिल में गम भरा है
याद में तेरे दिल आज भी रो पड़ा है

मोहब्बत में हम उन्हें भी हारे है
जो कहते थे हम सिर्फ तुम्हारे है

ऐ ज़िन्दगी ख़त्म कर सांसों का आना जाना
मै थक चूका हूँ खुद को ज़िंदा समझते समझते

हमने कब कहा मोहब्बत नहीं मिली हुमको
मोहबात तो मिली मगर तुम से ना मिली हुमको

खामोशियाँ कर देते है बयां तो अलग बात है
कुछ दर्द है जो लफ़्ज़ों में उतरे नहीं जाते

बड़ी हसरत थी कोई हमे टूट कर चाहे
लेकिन हम ही टूट गए किसी को चाहते चाहते

अब तो आदत सी बन गयी है
तुम दर्द दो हम मुस्कुरायेंगे

वो जिनको देख कर आँखों में आसूं जाते है
वहीं कुछ लोग ज़िन्दगी वीरान कर जाते है

डूबा है मेरा बदन मेरे ही खून से
ये कांच के टुकड़ों पे भरोसे की सजा है

बे ज़ुबाँ बादलो को अपनी दास्ताँ सुना रहा है कोई
लगता है आसमानों को सुना रहा है कोई दर्द की दास्ताँ

सुनी थी हमने ग़ज़लों में जुदाई की बातें
अब खुद पे बीती तो हक़ीक़त का अंदाज़ा हुआ

मैं चाहा था की जखम भर जाये
ज़ख्म ही ज़ख्म भर गए मुझ मैं

अगर मोहब्बत की हद नहीं कोई,
तो दर्द का हिसाब क्यूँ रखूं।

नसीहत अच्छी देती है दुनिया,
अगर दर्द किसी ग़ैर का हो।

गुलशन की बहारों पे सर-ए-शाम लिखा है,
फिर उस ने किताबों पे मेरा नाम लिखा है,
ये दर्द इसी तरह मेरी दुनिया में रहेगा,
कुछ सोच के उस ने मेरा अंजाम लिखा है।

खामोशियाँ कर देतीं बयान तो अलग बात है,
कुछ दर्द हैं जो लफ़्ज़ों में उतारे नहीं जाते।

आँखों में उमड़ आता है बादल बन कर,
दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता।

रोज़ पिलाता हूँ एक ज़हर का प्याला उसे,
एक दर्द जो दिल में है मरता ही नहीं है।

दर्द मोहब्बत का ऐ दोस्त बहुत खूब होगा,
न चुभेगा.. न दिखेगा.. बस महसूस होगा।

लोग मुन्तज़िर ही रहे कि हमें टूटा हुआ देखें,
और हम थे कि दर्द सहते-सहते पत्थर के हो गए।

पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है,
फैलता जाता है फिर आँख के काजल की तरह।

तकलीफ ये नहीं कि तुम्हें अज़ीज़ कोई और है,
दर्द तब हुआ जब हम नजरंदाज किए गए।

अपना कोई मिल जाता तो हम फूट के रो लेते,
यहाँ सब गैर हैं तो हँस के गुजर जायेगी।

अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उमीदों,
बहुत दर्द सह लिए मैंने बहुत दिन जी लिया मैंने।

तुझसे पहले भी कई जख्म थे सीने में मगर,
अब के वह दर्द है दिल में कि रगें टूटती हैं।

और भी कर देता है मेरे दर्द में इज़ाफ़ा,
तेरे रहते हुए गैरों का दिलासा देना।

सब सो गए अपना दर्द अपनों को सुना के,
कोई होता मेरा तो मुझे भी नींद आ जाती।

झूठी हँसी से जख्म और बढ़ता गया,
इससे बेहतर था खुलकर रो लिए होते।

दिल के ज़ख्मों को हवा लगती है,
साँस लेना भी यहाँ आसान नहीं है।

मुझको तो दर्द-ए-दिल का मज़ा याद आ गया,
तुम क्यों हुए उदास तुम्हें क्या याद आ गया?
कहने को जिंदगी थी बहुत मुख्तसर मगर,
कुछ यूँ बसर हुई कि खुदा याद आ गया।

किस दर्द को लिखते हो इतना डूब कर,
एक नया दर्द दे दिया है उसने ये पूछकर।

एक दो ज़ख्म नहीं जिस्म है सारा छलनी,
दर्द बेचारा परेशान है कहाँ से निकले।

हमें देख कर जब उसने मुँह मोड़ लिया,
एक तसल्ली हो गयी चलो पहचानते तो हैं।

अब दर्द उठा है तो गज़ल भी है जरूरी,
पहले भी हुआ करता था इस बार बहुत है।

वो तो अपना दर्द रो-रो कर सुनाते रहे,
हमारी तन्हाइयों से भी आँख चुराते रहे,
हमें ही मिल गया खिताब-ए-बेवफा क्योंकि,
हम हर दर्द मुस्कुरा कर छुपाते रहे।

हँसते हुए ज़ख्मों को भुलाने लगे हैं हम,
हर दर्द के निशान मिटाने लगे हैं हम,
अब और कोई ज़ुल्म सताएगा क्या भला,
ज़ुल्मों सितम को अब तो सताने लगे हैं हम।

दर्द हमने संभाला है हमने आँसू बहाए हैं,
बेशक वजह तुम थे पर दिल तो हमारा था।

ज़हर देता है कोई कोई दवा देता है,
जो भी मिलता है मेरा दर्द बढ़ा देता है।

मंजिलों से बेगाना आज भी सफ़र मेरा,
है रात बेसहर मेरी दर्द बेअसर मेरा।

अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं,
उसे खोकर मेरे पास रहा कुछ भी नहीं।

लोग जलते रहे मेरी मुस्कान पर,
मैंने दर्द की अपने नुमाईश न की
जब जहाँ जो मिला अपना लिया,
जो न मिला उसकी ख्वाहिश न की।

यूँ तो हर एक दिल में दर्द नया होता है,
बस बयान करने का अंदाज़ जुदा होता है,
कुछ लोग आँखों से दर्द को बहा लेते हैं
और किसी की हँसी में भी दर्द छुपा होता है।

मेरे इस दर्द की वजह भी वो हैं,
और मेरे दर्द की दवा भी तो वो हैं,
वो नमक ज़ख्मों पे लगाते हैं तो क्या,
मोहब्बत करने की वजह भी तो वो हैं।

 

एक नया दर्द मेरे दिल में जगा कर चला गया,
कल फिर वो मेरे शहर में आकर चला गया,
जिसे ढूंढते रहे हम लोगों की भीड़ में,
मुझसे वो अपने आप को छुपा कर चला गया।

तू है सूरज तुझे मालूम कहाँ रात का दर्द,
तू किसी रोज मेरे घर में उतर शाम के बाद।

शायरी में कहाँ सिमटता है दर्द-ए-दिल दोस्तो,
बहला रहे हैं खुद को जरा कागजों के साथ।

 

आरजू नहीं के ग़म का तूफान टल जाये,
फ़िक्र तो ये है तेरा दिल न बदल जाये,
भुलाना हो अगर मुझको तो एक एहसान करना,
दर्द इतना देना कि मेरी जान निकल जाये।

दिल में है जो दर्द वो दर्द किसे बताएं,
हंसते हुए ये ज़ख्म किसे दिखाएँ,
कहती है ये दुनिया हमे खुश नसीब,
मगर इस नसीब की दास्ताँ किसे बताएं।

इस तरह मेरी तरफ मेरा मसीहा देखे,
दर्द दिल में ही रहे और दवा हो जाए।

जिंदगी को मिले कोई हुनर ऐसा भी,
सबमे मौजूद भी हो और फना हो जाए।

मोहब्बत का मेरे सफर आख़िरी है,
ये कागज कलम ये गजल आख़िरी है,
मैं फिर ना मिलूँगा कहीं ढूंढ लेना,
तेरे दर्द का अब ये असर आख़िरी है।

दर्द से हाथ न मिलाते तो और क्या करते,
गम में आँसू न बहते तो और क्या करते,
उसने मांगी थी हमसे रौशनी की दुआ,
हम अपना दिल न जलाते तो और क्या करते।

 

कौन तोलेगा हीरों में अब तुम्हारे आंसू फ़राज़,
वो जो एक दर्द का ताजिर था दुकां छोड़ गया।

आँखें खुली तो जाग उठी हसरतें फराज़,
उसको भी खो दिया जिसे पाया था ख्वाब में।

सजा कैसी मिली हमको तुझसे दिल लगाने की,
रोना ही पड़ा जब कोशिश की मुस्कुराने की,
कौन बनेगा यहाँ मेरी दर्द भरी रातों का हमराज,
दर्द ही मिला है जो तूने कोशिश की आजमाने की।

ना कर तू इतनी कोशिशे,
मेरे दर्द को समझने की,
पहले इश्क़ कर,
फिर ज़ख्म खा,
फिर लिख दवा मेरे दर्द की।

बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती है,
यह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती है,
तड़प उठता हूँ मैं दर्द के मारे,
ज़ख्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती है,
अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ,
मुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है।

वो जान गयी थी हमें दर्द में मुस्कराने की आदत है,
देती थी नया जख्म वो रोज मेरी ख़ुशी के लिए।

मोहब्बत ख़ूबसूरत होगी किसी और दुनिया में,
इधर तो हम पर जो गुज़री है हम ही जानते हैं।

मुझे क़बूल है हर दर्द, हर तकलीफ़ तेरी चाहत में..
सिर्फ़ इतना बता दे, क्या तुझे मेरी मोहब्बत क़बूल है?

लोग कहते है हर दर्द की एक हद होती है,
शायद उन्होंने मेरा हदों से गुजरना नहीं देखा।

प्यार सभी को जीना सिखा देता है,
वफ़ा के नाम पे मरना सिखा देता है,
प्यार नहीं किया तो करके देख लो यार,
ज़ालिम हर दर्द सहना सिखा देता है।

प्यार मुहब्बत का सिला कुछ नहीं,
एक दर्द के सिवा मिला कुछ नहीं,
सारे अरमान जल कर ख़ाक हो गए,
लोग फिर भी कहते हैं जला कुछ भी नहीं।

जिस दिल पे चोट न आई कभी,
वो दर्द किसी का क्या जाने,
खुद शम्मा को मालूम नहीं,
क्यूँ जल जाते हैं परवाने।

ना किया कर अपने दर्द को
शायरी में बयान ऐ दिल,
कुछ लोग टूट जाते हैं
इसे अपनी दास्तान समझकर।

हम ने कब माँगा है तुम से
अपनी वफ़ाओं का सिला,
बस दर्द देते रहा करो
मोहब्बत बढ़ती जाएगी।

दर्द है दिल में पर इसका एहसास नहीं होता,
रोता है दिल जब वो पास नहीं होता,
बर्बाद हो गए हम उसके प्यार में,
और वो कहते हैं इस तरह प्यार नहीं होता।

नफ़रत करना तो हमने कभी सीखा ही नहीं,
मैंने तो दर्द को भी चाहा है अपना समझ कर।

मेरी हर शायरी दिल के दर्द को करेगी बयाँ,
तुम्हारी आँख ना भर आयें कहीं पढ़ते पढ़ते।

ज़ख्म दे कर ना पूछ तू मेरे दर्द की शिद्दत,
दर्द तो फिर दर्द है कम क्या ज्यादा क्या।

लोग कहते है हम मुस्कुराते बहुत है,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते।

दुख इस बात का नहीं, कि तुम मेरी ना हुई.
दुख इस बात का है, तुम यादों से ना गयी !!

तेरे बदलने का दुःख नहीं है मुझको
मैं तो अपने यकीन पर शर्मिंदा हूं

कितना पागल है ये दिल कैसे समझाऊँ इसे,
कि जिसे तू खोना नही चाहता है,
वो तेरा होना नही चाहता है।

तू किसी और को मयस्सर है,
इससे बढ़कर सजा क्या होगी।

वक़्त से पहले बहोत हादसों से लड़ा हूँ,
मै अपनी उम्र से कई साल बड़ा हूँ।

कितने दुख देते हो,
थक तो नहीं जाते।

तेरे बाद मैंने मोहब्बत को,
जब भी लिखा गुनाह लिखा।

चेहरों को बेनक़ाब करने में,
ए बुरे वक़्त तेरा हज़ार बार शुक्रिया।

बहुत दर्द देती हैं तेरी यादें
सो जाऊं तो जगा देती हैं
जग जाऊं तो रुला देती हैं

मुझे मुर्दा समझकर रोले,
अब अगर मै ज़िंदह हूँ,
तो तेरे लिए नहीं हूँ।

लगता है इस बादल का भी दिल टूटा है,
बोलता कुछ भी नहीं बस रोये जा रहा है।

काश चाहने वाले
हमेशा चाहने वाले ही रहते!!!
पर लोग अक्सर बदल जाते है
मोहब्बत हो जाने के बाद

क्या करोगे अब मेरे पास आकर
खो दिया तुमने बार बार आज़मा कर

इश्क़ अधूरा रहा तो क्या हुआ,
हम तो पूरे बर्बाद हुए।

अल्फ़ाज़ सिर्फ चुभते हैं,
खामोशियां मार देते हैं।

कोई ताबीर नहीं थी जिसमें
हमने वो ख़्वाब मुसलसल देखा

बेवजह छोड़ गए हो
बस इतना बताओ सुकून मिला की नहीं

शोक मनाओ साहब
अब हम तुम्हारे नहीं रहे

वो जिसने हिरान्झा की जान ली
मर्ज़ हमें भी वही है साहब

हमसे ज़िन्दगी की हकीकत न पूछो वसी
बहोत खुलूस लोग थे जो तनहा कर गए

मुझसे किये गए वादे जब
वो किसी और से करता होगा
हाय वो मुझे याद तो करता होगा

हाय उसे खबर नहीं होती
मैं जब जब तड़पता हूँ उसके लिए

तुम्हे शिकायत है की मुझे बदल दिया वक़्त ने
खुद से पूछो, क्या तुम वही हो

गुजारिश हमारी वह मान न सके
मज़बूरी हमारी वह जान न सके
कहते हैं मरने के बाद भी याद रखेंगे
जीते जी जो हमें पहचान न सके

इस दिल की दास्तां भी बडी अजीब होती है
बडा मुस्किल से इसे खुशी नसीब होती है
किसी के पास आने पर खुशी हो न हो
पर दुर जाने पर बडी तकलीफ होती है

तुझे मेरे बाहों में रहने कि इजाजत हैं।
आजकल पल पल कुछ भि कहने कि इजाजत हैं ।
तुम तो इजाजत हो मेरी जिंदगी कि,
तेरी हर खुशी मेरे लिये एक इबादत है ।

बड़े शौक से बनाया तुमने मेरे दिल मे अपना घर

जब रहने की बारी आई तो तुमने ठिकाना बदल दिया

जो लोग सबकी फिक्र करते है अक्सर उन्ही की फिक्र करने वाला कोई नहीं होता

वो आज करते है नजर अंदाज तो बुरा क्या मानू, !

टूट कर पागलो की तरह मोहब्बत भी तो सिर्फ मैंने की थी !!

तकलीफ ये नहीं की किश्मत ने मुझे धोखा दिया ! तकलीफ तो ये है मेरा यकीन तुम पे था किश्मत पे नहीं !!

अब शिकायते तुमसे नहीं खुद से है माना की सारे झूठ तेरे थे लेकिन उनपर यकीन तो मेरा था !!

जख्म जब मेरे सीने में भर जाएंगे

आँसू भी मोती बनकर बिखर जाएंगे

ये मत पूछना किस किस ने धोखा दिया

वरना कुछ अपनों के चेहरे उतर जाएंगे !!

हर ऱोज हर वक़्त हर पल बस तेरा ही तेरा ख्याल

ना जाने मेरे कौनसे कर्ज की किश्त हो तुम !!

बहुत रोयी होगी वो खाली कागज देख कर खत में उसने पुछा था ज़िंदगी कैसी बीत रही है

परवाह करनेवाले अक्सर रुला जाते है !

अपना कहकर पराया कर जाते है !

वफ़ा जितनी भी करो कोई फर्क नहीं !

मुझे मत छोड़ना कहकर खुद छोड़ जाते है !!

पूँछा जो मैंने उससे मुझको भुला दिया कैसे
चुटकी बजा के वो बोला- ऐसे ऐसे ऐसे !!

मिल गया होगा कोई गज़ब का हमसफर !

वरना मेरा यार यूँ बदलने वाला तो ना था !!

जब कोई ख्वाब अधुरा रह जाते हैं !

तब दिल के दर्द आंसु बनकर बाहर आते हैं !

जो कहते है हम आप ही के हैं !

पता नही जिन्दगी मे कैसे अलविदा कह जाते हैं !!

ऐसे वीराने में एक दिन, घूट के मर जायेंगे हम

जितना जी चाहे पुकारो, फिर नहीं आयेंगे हम !!

होने लगा है हिसाब, नफे और नुकसान का

मासूम सी मोहब्ब़त, व्यापार हो गई …!!

मेरी पागल सी मोहब्बत तुम्हे बहुत याद आएगी !

जब हँसाने वाले कम और रुलाने वाले ज्यादा होंगे !!

बस एक लफ्ज उनको सुनाने के लिये !

जाने कितने अल्फाज लिखे हमने जमाने के लिये !!

मिटा दिया हर जगह से तेरा नाम मगर !

आज भी जिन्दा है तेरा वजूद अश्कों में मेरे!!

तुम्हे मैं याद करता हूँ तो खुद को भूल जाता हूँ !

हद-ए-बेबसी देखो न तुम मेरे न मैं अपना !!

मैं रोज अपने खून का दिया जलाऊँगा !
ऐ इश्क तू एक बार अपनी मजार तो बता !!

 

हमारी क़ब्र पर कभी चराग़ जला देना,
ज़िन्दगी में अंधेरा भी तुम्हारी ही रहमत है,

हर अश्क़ बयां करता है बेरुखी तेरी,
हर ज़ख्म-ए-दिल, तेरे इश्क़ की अलामत है।

 

दर्द के मिलने से…
दर्द के मिलने से ऐ यार बुरा क्यों माना,
उसको कुछ और सिवा दीद के मंज़ूर न था।

 

ज़ख्म भर गए…
भर गए हैं अब वो ज़ख्म,
जो तूने कभी दिए थे,
लेकिन हैं याद अभी भी वो वादे,
जो तूने कभी किये थे.

वक़्त गुजर गया लम्हे गुजर गए,
हम चुपचाप ये ख़ामोशी सह गए,
तुम कहाँ से कहाँ,
और हम वहीं रह गए.

रह गए तेरे वादों के दरमियाँ,
और ज़िन्दगी यूँ ही गुजरती रही,
जश्न-ए-ख़ामोशी में,
हर रात सुलगती रही.

सुलग गए मेरे अरमान भी,
जूनून-ए-मोहब्बत में कभी किये थे,
भर गए हैं अब वो ज़ख्म,
जो तूने कभी दिए थे.

दर्द यहाँ मिलता है…
हौंसला मत हार, गिरकर ऐ मुसाफिर..!
अगर दर्द यहाँ मिलता है तो, दवा भी यहीं मिलेगी..!!

 

तेरा हाथ छूटना…
इतना गुरूर जो था, मुझे अपने प्यार पर,
वो टूटना भी जरूरी था,
कुछ ज्यादा ही प्यार से, जो थामा तेरा हाथ,
वो छूटना भी जरूरी था।