Sheikh-Chilli

शेख चिलली कोन था ?

शेख चिलली कोन था? इसका किसी को नहीं पत्ता, पर शेख चिल्ली की कहानियों ने भारत और पाकिस्तान में कई पीढ़ियों का मन बहलाया हैं।
शेख चिल्‍ली को अक्सर एक बेवकूफ और ऐसे सरल इंसान जेंसे दर्शाया जाता है जो किसी भी काम को ठीक नहीं कर पाता है! वो दिन में सपने देखता है और हवाई महल बुनता है।
उसकी पैदाइश एक शेख परिवार में हुई।
शेख – मुसलमानों की चार मुख्य उपजातियों में से एक हैं। शेख चिलल्‍ली की मां एक गरीब विधवा थी। शेख चिल्लौ के बारे में बहुत कम जानकारी हैं। इसलिए उसके बारे में लिखी कहानियों में सच्चाई और झूठ को अलग-अलग करना बहुत कठिन हो जाता हैं।
एक मत्त को अनुसार शेख चिल्ली का जन्म पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हुआ, फिर वो हरियाणा में आ गया जहां उसने कई वर्ष झज्जर के नवाब के लिए काम किया। उसकी मृत्यु कृसक्षेत्र में हुई जहां आज भी शेख चिल्ली/ के मकबरें को देखा जा सकता है।
ऐसा कहां जाता था कि बुढ़ापे में शेख चिलली फकौर बन गया था। उसका नाम “चिल्ली’ शायद उसके द्वारा चालौस दिन तक लगातार प्रार्थना – जिसे ‘चिल्ला’ कहते हैं – करने के कारण पड़ा हो।
यह मत एतिहासिक रूप से सच है या नहीं इसकी पुष्टि करना संभव नहीं है।
इस मसहाहीप में बीरबल और तेनालीराम नाम के दो मजाकिया पात्र, काफी मशहूर हैं। शेख चिहली में इन दोनों हस्तियों की हाजिस्जवाबी
भले ही न हो परंतु उसे बचपन से जवानी तक महज लोगों के उपहास का पात्र मानना, इंसानियत के खिलाफ सरासर नाईसाफी होगी। यो एक साधा खादा इस्रान था। उसके समाज के अनुसार चलने के तरीके शायद हैस हास्यास्पद लगे परंतु उसको नियत में कोई खोट नहीं थीं।
उसके दिल में किसी के खिलाफ ईर्ष्या या नफरत नहीं थी, वो चालाकी, छल और फरेब से दूर एक निष्कपट और मददगार इंसान था। दिन में सपने इख्ना – शायद यह गलत हो। परंतु फिर वो कौन है जो आने वाले सुनहर॑ कल के सपने नहीं देखता ?
सच बात तो यह है कि हम सभी में शेख चिल्ली का कछ-न-कछ अंश हैं। इतने बरसों से शेख चिल्‍ली की लोकप्रियता का शायद यही सच्चा कारण हैं।

 

तेल का गिलास

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
शेर चिलली इस घमय वहीं कर रहा था जिसमें उसे सबसे ज़्यादा मजा आता था – पतंगबाजी।
वो इस समय अपने घर को छत पर खड़ा था और आसमान में लाल और हरी पतंगों के उड़ने का मजा ले रहा था ।
शेख की कल्पना भी उडान भरने लगी। वो सोचने लगा – काश मैं इतना छोटा होता कि पतंग पर बैठ कर हवा में उड़ पाता ।
“बेटा, तुम कहां हो ?”
उसकी अम्मी ने धूप की चौंध से आंखों को बचाते हुए छत की ओर देखते हुए कहा।
*बस अभी आया अम्मी,” शेख ने कहा।
काफी दुखी होते हुए उसने अपनी उडती पतंग को जमीन पर उतार और फिर दौड़ता हुआ नीचे गया।
शेंख अपनी मां की इकलौती औलाद था।
पति कौ मौत के बाद शेख ही उनका एकमात्र रिश्तेदार था।
इसलिए अम्मी शेख का बहुत प्यार करती थीं।
बेटा, झट से इसमें आठ आने का सरसों का तेल ले आओ,” उन्होंने कहा और अठन्नी के साथ-साथ शेखर को एक गिलास भी थमा दिया !
“तेल जरा सावधानी से लाना और जल्दी से वापिस आना।
रास्ते में सपने नहीं देखने लग जाना, कया तुम मेरी बात को सुन रहे हो ?”
हां, अम्मी,” शेख ने कहा । “आप बिल्कुल फिक्र न करें। जब आप फिक्र करती हैं तब आप कम सुंदर लगती हैं।”
“क्रम सुंदर,” उसकी मां ने हताश होते हुए कहा।
“मेरे पास सुंदर लगने के लिए पैसे और वक्‍त ही कहां हैं ?
अच्छा, अब चापलूसी बंद करो। फटाफट बाजार से तेल लेकर आओ।”
शेख दौड़ता हुआ बाजार गया। वैसे वो आराम से बाजार जाता परंतु उसकी अम्मी ने उससे झटपट जाने को कहा था इसलिए वो दौड़ रहा था।
“लालाजी, अम्मी को आठ आने का सरसों का तेल चाहिए,” उसने दुकानदार लाला तेलीराम से कहा। उसके बाद उसने दुकानदार को गिलास और सिक्का थमा दिया ।
दुकानदार ने एक बड़े पींपे में से आठ आने का सरसों का तेल नापा और फिर वो उसे गिलास में उंडेलने लगा। गिलास जल्दी ही पूरा भर गया।
“भई इस गिलास में तो बस सात आने का तेल हीं आएगा,” उसने शेख से कहा।
“मैं बाकी का क्या करूँ ?
क्‍या तुम्हारे पास और कोई बर्त्तन है, या फिर मैं तुम्हें एक आना वापिस लौटा दूं ?”
शेख दुब्रिधा में पड़ गया। उसकी अम्मी ने उसे न तो दूसरा गिलास दिया था और न ही पैसे वापिस लाने को कहा था।
वो अब क्‍या करे ?
तभी उसे एक नायाब तरकीब समझ में आई ! गिलास में नीचे एक गड्डा – यानी छोटो सी कटोरी जैसी जगह थी । बाकी तेल उसमें आसानी से समा जाएगा !
उसने खुशी-खुशी तेल से भरे गिलास को उल्टा किया । साय तेल वह गया। फिर शेख ने गिलास के पेंदे में बनीं छोटो कटोरी की ओर इशारा किया । “बाकी तेल यहां डाल दो,” उसने कहा ।
लाला तेलीराम को शेख को बेवकूफी पर यकीन नहीं हुआ। उन्होंने सिर हिलाते हुए शेख की आज्ञा का पालन किया। शेख ने गिलास का स्रावधानी से उठाया और फिर वो घर की ओर चला।
इस घटना पर लोगों ने टिप्पणियां की । पर शेख पर उनका कोई असर नहीं पड़ा ।
जब जो घर पहुंचा तब उसकी मां कपडे धो रही थी। “बाकी तेल कहां है ?” मां ने गिलास के पेंदे की छोटी कयेरी में रखे तेल को देखकर पूछा !
यहां ! शेख ने गिलास को सीधा करने की कोशिश की और ऐसा करने के दौरान बचा खुचा तेल भी बहा दिया ।
“बाकी तेल यहां था अम्मीजान, में सच कह रहा हूं।
मैंने लालाजी को तेल इसमें डालते हुए देखा था। वो कहां चला गया ?”
“जमीन के अंदर ! तुम्हारी बेवकूफी के साथ-साथ !” उसको मां ने गुस्से में कहा।
“क्या तुम्हारी बेवकूफी का कोई अंत भी है ?”
शेख ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया। “मैंने बिल्कुल वही किया जो आपने मुझसे करने को कहा था,” उसने कहा। “ आपने मुझसे इस गिलास में आठ आने का तेल लाने को कहा था, और बही मैंने किया।
गिलास छोटा होने पर मुझे क्या करना है, यह आपने मुझे बताया ही नहीं था और अब आप मुझ पर नाराज हो रही हैं।
आप गुस्सा न करें अम्मी। जब आप गुस्से में होती हैं तब आप…”
“अगर तुम मेरे सामने से तुरंत दफा नहीं हुए तो मैं तुम्हारे चेहरे को खूबसूरत बनाती हूं !” अम्मी ने पास पड़ी झाड़ू उठाते हुए कहा। “मेरी सहनशक्ति की भी एक सीमा है, जबकि तुम्हारी बेबकूफी असीमित हैं !”
शेख अपनी पतंग लैकर लपक कर छत पर गया। मां दुखी होकर दुबारा कपड़े धोने में लग गयी ।
उन्हें अब तेल लाने के लिए खुद बनिये को दुकान पर जाना पड़ेगा। शेख ने बहुमूल्य समय के साथ-साथ बेशकीमती पैसों को भी गंबाया।
उसके बावजूद उनका मानना था कि उनका बेटा बहुत ही आज्ञाकारी और प्यारा था।
तभी किसी ने बाहर से दरवाजा खटखटाया। लाला तेलीराम का छोटा लड़का तेल को बोतल लिए खड़ा था। “बुआजी, यह आपके लिए हैं,” उसने कहा। “मेरे पिताजी ने इसे भेजा है। जब शेख भैया ने तेल से भरे गिलास को उल्टा, तो किस्मत से तेल वापिस पींपे में जा गिरा ! भैया कहां हैं ?
उन्होंने मुझे पतंग उड़ाना सिखाने का वादा किया था।”
“वो ऊपर हैं।
बेटा, तुम छत्त पर चले जाओ,” शेख की मां ने तेल लेते हुए और उस छोटे लड़के के गाल को थपथपाते हुए कहा। फिर जो मुस्कुराती हुए दुबारा अपने काम में जुट गयीं।
अल्लाह उस गरीब विधवा को भूला नहीं था !

 

सिपाही और शेख कुआंं में

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
शेख चिल्ली अपने पैरों को इतने ध्यानमग्न होकर देख रहा था कि वो सीधे एक पेड से जाकर टकराया !
“उफ ! ” वो अपनी दुखती नाक को रगड़ते हुए चिल्लाया।
अरे भई, यह पेड़ भला सड़क के बीच में खड़ा क्या कर रहा है ?
अम्मी ने उससे दर्जी को दुकान पर जाने को और सड़क के बीचों – बीच चलने को कहा था।
ध्यान रखना, इधर-उधर मत देखना जैसे की तुम्हारी आदत है नहीं तो तुम कभी भी अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पाओगे !” उन्होंने कड़े शब्दों में कहा था । “क्या तुम मेरी बात सुन रहे हो ?
अपनी नजर सड़क पर रखना।”
उन्होंने यह तो नहीं कहा था – पेड से जा टकराना ! फिर वो क्‍यों टकराया ?
क्योंकि वो उस समय एक खेत के बीचों बीच था।
जहां तक सड़क की बात थी वो दूर-दूर तक नदारद थी ! उसके पैर एक दिशा में गए होंगे और सड़क कहीं दूसरी ओर होगी। शेख ने अपने पैरों को गुस्से से देखा परंतु उससे कुछ फायदा नहीं हुआ।
अच्छा! चलो जब पेड उसके सामने है तो जनाब पेड़ पर चढ़कर देख ही लेते हैं कि कहीं वो नदारद सड़क, जिस पर उसे होना चाहिए था दिख जाए।
सड़क काफी दूर, दाएं को थी। शेख पेड की एक निचली टहनी पकड़ कर बस कूदने हो बाला था जब उसे अपने ठीक नीचे एक कूुँआ दिखाई दिया ! कुएं की गहराई में झिलमिलाता हुआ पानी बडा सुंदर दिखाई पड़ रहा था।
शेख टहनी से एक सूखी इमली की तरह लटका और झुलता रहा। उसने अपनी आँखे बंद कर ली और कल्पना करने लगा कि वो हवा में अपनी प्रिय पतंग पर बैठकर उड़े जा रहा हो।
“ढुक! धड़ाक! ढुक! धड़ाक!”
उसका पालतू हाथी नीचे पगडंडों पर दौड़ा जा रहा था और अम्मी उसको पीठ पर बैठी थों। वो लाल साटिन के कपड़ें पहने थीं बिल्कुल वैसे ही जैसे सुलतान शेख चिललों की मां को पहनने चाहिए थे।
“ढुक! धड़ाक! ढुक! धड़ाक!”
शेख ने अपनों आंखें खोली। उसे दूर – दूर तक कोई हाथी का नामोंनिशां नहीं मिला।
वो अभी भी कुएं के ऊपर लटका हुआ था ! परंतु खेत में से गुजरती कई पगडंडियों में से एक पर, घोड़े पर सवार एक सिपाही उसकी तरफ आ रहा था।
“घबराओं मत!” सिपाही चिल्लाया। “मैं तुम्हें बचा लुंगा ! घबराओ मत!” घोड़े से उतरते सिपाही को शेख ने काफी रूचि से देखा।
सिपाही को बहुत सुंदर मूंछे थीं। मूंछें सिरों पर मुड्डी हुई थीं। सिपाही का पूरा शरीर – पगड़ी से लेकर जूतियों तक घूल में लथपथ था।
“शांत रहो,” घुड़्सवार ने कहा, “और मेरी बात को बहुत ध्यान से सुनो। मेरा घोड़ा कुएं के उस पार छलांग लगाएगा।
तुम्हारे नीचे पहुंचते ही मैं तुम्हारे पैर पकड़ लूंगा। उसी क्षण तुम पेड़ की टहनी को छोड देना| इस तरह तुम मेरे साथ घोड़े पर सुरक्षित रहोगे।
समझे मेरी बात ?”
शेख ने जोर से अपना सिर हिलाया। सिपाही अपने घोड़े पर चढ़ा। घोड़ा कूछ कदम पीछे गया और फिर कुएं की ओर तेजी से दौड़ा और फिर कुएं के क्रपर से कदा !
शेख के नीचे आते ही सिपाही ने उसके पैरों को पकड़ लिया।
परंतु शेख जिस टहनी से लटका था उससे लटका ही रहा! घोड़ा तो छलांग लगाकर कुएं के उस पार पहुंच गया परंतु उसका मालिक शेख के पैरों से लटका रह गया।
“तुमने टहनी क्‍यों नहों छोड़ी?” सिपाही ने कड़कदार पर आश्चर्य की आवाज में पूछा।
फिर उसने अपनी गर्दन उठाकर शेख को समझने की कोशिश की।
शेख को भी काफी अचरज हुआ! “मैं माफी चाहता हूं,” उसने कहा, “ऐसा मैंने क्‍यों किया यह मुझे भी नहीं पत्ता !”
उसने अपना आश्चर्य जताने के लिए अपने दोनों हाथ पसारे। उसका नतीजा यह हुआ कि वो और सिपाही दोनों सीधे कुएं में जाकर गिरे
धड़ाम !
घोड़े को आवाज से कुछ खतरा महसूस हुआ और वो वहां से भाग लिया। पास के खेत पर काम करते किसान घोड़े को वापिस लाए और उन्होंने शेख और गुस्से में आए सिपाही को कुएं से बाहर निकाला।
शेख ख़ुशनसीब निकला क्योंकि जब वो मिट्टी से सना और गीला, दर्जी को बिना संदेश पहुंचाए वापिस घर पहुंचा तो उसको अम्मों बिल्कुल भी नाराज नहीं हुयीं।
“ अच्छा ही हुआ कि तुम दर्जी के घर नहीं गए,” अम्मी ने कहा। “क्योकि वो तो मुझे यहीं पर मिल गया। पर उसके घर के पास तो कोई कुआं है नहीं, फिर तुम कैसे…”
कुआं न जाने कहां से आ गया था, शेख को याद आया। और साथ में बो पेड़ और घोड़े पर सवार सिपाहों भी। कितना रोमांचक अनुभव था! शेख उसे याद करते हुए मुस्क्राया और फिर उसने अपनी पतंग उठाई।
“ अम्मीजान, “” छत की ओर दोड्ते हुए उसने कहा, “जब मैं बड़ा होंऊंगा वो में अपनी मूंछों को इतना बढ़ाऊंगा कि आप उन्हें दंख कर दंगे रह जाएंगी।”

 

बीमार दरांंती

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
शेख चिल्ली की मां गांव के रईस घरों में इधर -उधर के काम करके अपनी आजीविका चलाती थी।
“बेटा शेख,” उन्होंने एक दिन सुबह को कहा, “देखो में फातिमा बीबी के घर उनकी लड़की की शादी की तैयारी में मदद के लिए जा रही हूं।
मैं अब रात को ही वापिस लौटूंगी।
हों सकता हैं कि मैं शायद अपने लाडले को लिए कुछ मिठाई वगैरा भी साथ में लाऊं।
फातिमा बीबी काफी दरियादिल औरत हैं।”
बेटा तुम दरांती लेकर जंगल में जाना और वहां से पड़ोसी की गाय क॑ लिए जितनी हों सके उतनी घास काट कर लाना।
इंशाअल्लाह, आज हम दोनों मिलकर काफी कमाई कर सकते हैं। देखों अपना वक्‍त बरबाद मत करना और न हीं दिन में सपने देंखना।
तुमने अगर सावधानी से काम नहीं किया तो तुम्हें दरांती से चोट भी लग सकती हैं।
“ आप मेरे बारे में बिल्कुल भी फिक्र न करें अम्मीजान,” शेख ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा। और फिर वो खुशी-खुशी जंगल को ओर चला।
वो रास्ते में उन मिटाइयों के बारे में सोचता रहा जो उसको अम्मी, फातिमा बीबों के घर से लाएंगी। क्या वो नर्म, भूरे, चाशनी में डूबे गुलाब जामुन होंगे, जो उसने एक बार पहले कभी खाए थे ?
उनका स्वाद उसे बार-बार याद आ रहा था।
बंद करो यह बकवास!” उसने खुद को झिड़कते हुए कहा। “अम्मी ने कहा था न कि दिन में सपने नहीं देखना।”
वो जंगल में पहुंचनें के बाद काफी लगन से काम में लग गया। दोपहर के खाने के समय तक उसने काफी सारी घास काट डाली थी। उसने उसका एक बड़ा बंडल बनाया और उसे घर ले आया।
पड़ोसी के घर घास छोड़ने के बाद और कुछ आने कमाने के बाद वो घर लौटा और उसने चटनी के साथ मोटी रोटी खायी। तब उसे याद आया कि वो अपनी दरांती को तो जंगल में ही भूल आया था। वो दौड़कर वापिस जंगल गया। दरांती वहाँ पड़ी थी जहां उसने उसे छोड़ा था।
तपती धूप में दरांती का ब्लेड एकदम गर्म हों गया था और शेख ने जब उस गर्म लोहे को छुआ तो उसे एक झटका सा लगा। उसकी दरांती को आखिर क्या हुआ? वो अपनी दरांतीं का मुआयना कर रहा था तभी पड़ोस का लल्लन उस रास्ते से गुजरा।
“मियां, तुम किसे इतनी गौर से देख रहे हों ?”
उसने पूछा अपनी दरांती को। उसे कुछ हो गया है। वो काफी गर्म हैं !”
“हाय राम! उसे बुखार हो गया है!” लल्लन ने शेख की नासमझी पर हंसते हुए कहा। “तुम उसे किसी हकीम के पास ले जाओ।
पर जरा रूकों। मुझे मालूम है कि तेज बुखार में हकीमजी क्‍या दवाई देते हैं। आओ मेरें साथ चलो।”
दरांती के लकड़ी के हैंडल को सावधानी से पकड़कर लल्लन, शेख को एक कुँए के पास ले गया।
वहां उसने दरांती को एक लंबी रस्सी से बांधा और फिर उसे कए के ठंडे पानी में लटकाया।
“अब तुम इसे इसी हालत में छोड़कर घर चले जाओ,” उसने शेख से कहा। “अब तुम रात होने से पहले आना।
तब तक दंसंती का बुखार उत्तर गया होगा।” अरे बेवकूफ! उतनी देर में मैं दरांतों को भी वहां से गायब कर दूंगा, लललन ने चुपचाप कहा।
मैं उसे छिपा दूंगा या फिर बेच दुंगा और फिर शेख की मां दरांती खोने के लिए उसकी खूब मरम्मत करेगी!
“यकीन करो मियां,” उसने जोर से कहा। “बुखार का यहीं सबसे
अच्छा इलाज है!”
शेख चिल्ली ने उसकी बात पर विश्वास किया और घर वापिस चला गया। फिर वो सो गया और जब उसकी नींद खुली उस समय सूरज ढल रहा था।
“मैं अम्मी के घर आने से पहले ही दरांती ले आता हूं,” उसने सोचा। “अब तक उसका बुखार उतर गया होगा।”
फिर वो कुएं की तरफ चला। लल्लन के घर के सामने से गुजरते समय उसे अंदर से किसी के कराहने की आवाज आई। शेख अंदर गया।
लल्लन कौ दादी आंगन में एक खाट पर पड़ी इधर-उधर करवटें बदल रहीं थी। शेख जब उनके पास पहुंचा तो एकदम डर गया। उनका शरीर बहुत गर्म था।
उन्हें तेज बुखार था और शेख के अलाबा उनकी मदद करने बाला और कोई न था। परंतु अब लल्लन की दया से शेख को तेज बुखार का सही इलाज पता था।
शेख ने बूढ़ी औरत को सावधानी से अपने कंधे पर उठाया और फिर वो कुएं को ओर बढ़ने लगा।
“मियां, तुम लल्लन की दादी को कहां लिए जा रहे हो ?”
एक पड़ोसी ने पुछा।

 

तरबूज और चोर

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
शेख चिल्ली को नींद नहीं आई।
फातिमा बीबी ने उस शाम शेख को अम्मी को एक तरबूज दिया था, जो वो इत्तफाक से घर लाना भूल गयीं।
बस शेख उसी तरबूज के बारे में ही सोचता रहा।
पूरे पिछले हफ्ते अम्मी रोजाना कई घंटों के लिए फातिमा बीबी के यहां उनकी बड़ी लड़की की शादी की तैयारियों में मदद करने को जाती थीं।
और हर शाम अम्मी शेख के लिए फातिमा बीबी द्वारा दी गईं चीजे लाती थी। पहले दिन वो रसीले गुलाब जामुन लाथीं थीं।
उसके बाद में खीर और फिर केले। आज अम्मी को एक बड़ा तरबूज मिला था।
शेख के मुंह में तरबूज के बारे में सिर्फ सोच कर ही पानी आने लगा! अम्मी को तरबूज का बजन बहुत भारी लगा इसलिए वो उसे फातिमा बीबी के घर के आंगन में ही छोड आयी।
शेख सुबह जाकर तरबूज को ला सकता था। परंतु वो तो तरबूज अभी खाना चाहता था। अभी! तुरंत! उसका भूखा पेट उसे आदेश दे रहा था।
शेख उठा।
अम्मी अभी गहरी नींद में सोई थीं।
उसने चुपचाप, रात के अंधेरे में और गांव की सुनसान गलियों में फातिमा बीबी के घर की ओर चलना शुरू किया।
जैसे ही वो आंगन की चारदोबारी पर से कूदा उसे सामने अपना तरबूज पड़ा हुआ दिखाई दिया। तरबूज कोयले के एक ढेर के ऊपर पड़ा हुआ था।
वो बस तरबूज को उठा कर चलने वाला ही था कि उसे घर के अंदर से आती कछ आबाजें सुनाई पडीं। वहां कौन हो सकता हैं ?
घर तों खाली था। पूरा परिवार तो पास के गांव में रिश्तेदारी में गया हुआ था।
क्या वे सब जल्दी लौटकर वापिस आ गए थे ?
फिर उनके घर के बाहर ताला क्‍यों लगा हुआ था ?
शेख इन सब बातों के बारे में सोच रहा था तभी उसे अपनी ओर आते कुछ कदम सुनाई पड़े।
“हाय राम!” कराहने को आवाज आई।
वो आवाज लल्लन की थी।
उसे पहचानने में शेख को कोई दिक्कत नहीं हुई।
“मैं उस बेबकूफ शेख चिल्ली को मार डालूंगा! उसकी वजह से ही मेरे पिता ने मुझे इतनी बुरी तरह मारा है कि मेरी हड्डी-हड्डी दुख रही है! और अब खिड़की से घुसते हुए टूटे हुए कांच से मेरा हाथ कट गया है।”
अब कराहना बंद भी करों!” एक दबी सी आवाज आई। शेख इस आवाज को नहीं पहचान सका।
जैसे ही वो दोनों लोग सामने आए शेख कोयले के बोरों के पीछे छिप गया।
वो कोयलों के बोरों के बीच की झिरी में से उन्हें देखता रहा। लल्लन के साथ कोई बुरी नियत वाला अजनबी था जिसे शेख ने बाजार में घूमते हुए देखा था।
लल्लन एक थैले में कुछ भर कर ले जा रहा था।
जल्दी करों,” अजनबी ने कहा। “चलो, फटाफट माल को बांट लेते हैं।”
जब अजनबी ठीक बोरों के सामने अपनी पीठ करके बेठ गया तो शेख बेचारा बहुत घबराया।
अजनबी ने थैले को लल्लन से छीना और उसके अंदर के सारे माल को जमीन पर उंडेल दिया।
गले के हार, सोने और चांदी की चूडियां, चांदी के गिलास और सोने के सिक्के, हल्की चांदनी में झिलमिलाने लगे। शेख उन सब गहनों को ताकता रहा। उसे मालूम था कि फातिमा बीबी ने उन्हें अपनी लड़की की शादी के लिए इकट्ठा किया था।
अम्मी ने शेख को उनमें से हर एक के बारे में बताया था! और अब यह दोनों लोग उन गहनों को चुरा रहे थे !
“तुमने आधे से ज़्यादा हिस्सा ले लिया है!” लल्लन ने कंमजोर आवाज में अपना विरोध दर्शाया।
उसके बाद उस अजनबी ने लूट का थोड़ा सा और माल उसकी ओर बढ़ा दिया।
“गनीमत हैं कि तुम्हें इतना भी माल मिल रहा हैं!” अजनबी
घुर्राया । “मेरे बिना तो तुम्हारी घर में चोरी करने की हिम्मत ही नहीं होती!
“यह घर भुतहा है,” लल्लन ने फुसफुसाते हुए इधर-उधर बेचेनी से देखते हुए कहा। “कुछ लोग अब भी इस घर को भुतहा मानते हैं।”
“तो चलो इससे पहले कि भूत हमें पकड़े हम यहां से भाग लेते हैं।” अजनबी हंसा।
उसकी हंसी में चालाकी छिपी थी। “ अगर तुम लूट का कुछ और माल चाहते हों तो अपने साथ उस तरबूज को भी ले जाओ! ”
अजनबी ने कोई तीन-चौथाई सोने और चांदी को थैले में भरा । बाकी को अपनी जेबों में भरते समय वो कुछ बुदबुदा रहा था। लल्लन ने खड़े होकर तरबूज को उठाने की कोशिश करी।
परंतु बोरों के पीछे से शेख चिल्ली भी तब तक खड़ा हो गया था और तरबूज को अपनी पूरी त्तकत से पकड़े हुए था! जैसे ही शेख की उंगलियां, लल्लन की उंगलियों से तकरायी वैसे ही वो लल्लन को अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा धक्का लगा!
“भूत!” वो बुदबुदाया। “भू… भूत!”
शेख बोरों से टिककर तरबूज को कसकर पकडें रहा। कोयले के दो बोरे अचानक लुढ़के और लल्‍लन और उस अजनबी के ऊपर जाकर गिरे ।
अब लल्लन ने सारी सावधानी को ताक पर रख दिया।
“भूतः” वो जोर से चिल्लाया।
“भूत!” डरा हुआ शेख चिल्ली भी जोर से घिल्लाया। “भूत! चोर! भूत!”
इससे पहलों कि दोनों चोर भाग पाते भीड़ जमा हो गई।
कोयले की धूल में सने दोनों चोरों को कोतवाली ले जाया गया।
लल्लन अभी भी बुदबुदा रहा था, “भूत! ‘भूत!
एक पड़ोसी फातिसा बीबी के परिवार के वापिस आने तक लूट के गहनों की पहरेदारी करता रहा।
शेख को लोग हीरो जैसे उसके प्यारे तरबूज के साथ घर बापिस पहुंचाने के लिए गए।

 

बुरा सपना

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
बेटा शेख क्‍या तुमने दुबारा वही सपना देखा ?
शेख चिल्ली की चिंतित मां ने उससे एक सुबह पूछा।
“तुम पूरी रात बेचैन रहे और करवटें बदलते रहे।”
शेख चिलली ने अपना सिर हिलाया और फिर अपनी बाहों को अम्मी के गले में डाला।
अम्मी ही तो उसका पूरा परिवार थीं।
“आज मैं तुम्हें हकीमजी के पास ले चलूंगी ,” अम्मी ने कहा।
“इंशाअल्लाह वो तुम्हारे इन खराब सपनों का खात्म कर देंगे।”
हकीम ने बड़े धैर्य से शेख चिल्‍ली की कहानीं को सुना। कई रातों से शेख चिल्‍ली को एक बुरा सपना आ रहा था जिसमें वो खुद एक चूहा होता था और गांव की सारी बिल्लियां उसका पीछा कर रही होती थीं।
जागने के बाद भी बड़ी मुश्किल से ही’ शेख चिल्‍ली अपने आपको यह समझा पाता था कि वो एक चूहा नहीं बल्कि एक लड़का है।
मेरे बच्चे को यह तकलीफ क्‍यों हैं ?
शेख की मां ने हकीम से पूछा। “जब वो छोटा था तो एक जंगली बिल्ली ने मेरे बचाने से पहले, उसे जोर से नोचा था।
क्‍या वो उसी सपने को बार-बार देखता है ?
“शायद,” हकीम ने कहा। “पर आप इसकी ज़्यादा परवाह न करें।
ख़राब सपनों की बीमारी जल्दी ही ठीक हों जाएगी। बेटा शेख, आज से हर शाम को तुम मेरे पास दवा के लिए आना। और यह मत भूलना कि तुम एक चूहा नहीं बल्कि एक खूबसूरत नौजवान हो।” यह सुनकर शेख का चेहरा मुस्कान से खिल उठा।
हर शाम हकीम, बिता बाप के इस लड़के से कोई एक घंटा बातचीत करते थे।
फिर उसे कोई अहानिकारक दवाई देकर घर भेज देते जिससे कि शेख को रात को अच्छी नींद आए।
धीरे-धीरे शेख चिल्ली और हकीम अच्छे दोस्त बन गए। हकीम ने शेख को अच्छी सेहत और साफ-सफाई के बारे में सरल बातें बतायीं।
“बेटा शेख,” उन्होंने एक शाम को कहा, “अगर मेरा एक कान गिर जाए तो क्या होगा ?”
“हकीमजी, तब आप आधे बहरें हो जाएंगे,” शेख ने हकीम के बड़े – बड़े कानों को घूरते हुए कहा।
“ठीक फर्माया,” हकीमजी ने कहा। “और अगर मेरा दूसरा भी कान गिर जाए तो?”
तो फिर आप अंधे हो जाएंगे, हकीमजी,” शेख ने कहा।
“अंधा?” घबराए हुए हकीमजी ने पूछा।
हां।” शेखर ने उत्तर दिया। “अगर आपके कान नहीं होंगे, तो फिर क्‍या आपका चश्मां नहीं गिरेगा ?”
हकीमजी यह सुनकर ठहाका मार कर हंसे। “तुम ठीक कहते हो शेख बेटा,” उन्होंने कहा। “इसके बारे में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था!”
धीरे-धीरे शेख के खराब सपने बंद हो गए। कि वो एक चुहा हैं इस बात कौ सपने में उसने कल्पना करनी बंद कर दी। एक दिन हकीम का एक पुराना दोस्त उनसे मिलने के लिए आया। शेख से बाजार से कुछ गर्म जलेबियां लाने के लिए कहा गया।
वो बस निकल ही रहा था कि उसे कुछ फीट की दूरी पर एक बड़ी बिल्ली दिखाई दी।
“हकीमजी, मुझे बचाइए!” शेख, हकीमजी के पीछे छिपकर गिड़गिड़ाया।
मेरे बेटे, अब तुम चूहा नहीं हो। कया तुम्हें यह पता नहीं है ?”
“मुझे अच्छी तरह पता हैं हकीमजी,” शेख को अभी भी डर लग रहा था। “पर क्‍या बिल्ली को यह बात किसी ने बताई है ?”
अपनी मुस्कराहट को दबाते हुए हकीम ने बिल्ली को ‘भगा दिया। उसके बाद शेख को दिलासा दिलाने के बाद उन्होंने उसे जलेबियां लेने के लिए भेजा।
मैं इस लड़के के पिता को अच्छी तरह जानता था,” हकीमजी के मेहमान ने शेख चिल्ली क॑ बारे में कुछ सुनने के बाद कहा। “मैं उसके घर जाकर उसकी मां से दुआ-सलाम करना चाहूंगा।”
“शेख आपको अपने घर ले जाएगा,” हकीमजी ने कहा। कुछ करारी जलेबी खाने के बाद और कहवा पीने के बाद शेख और मेहमान, शेख के घर की ओर चले।
“क्या यह सड़क सीधे तुम्हारे घर को जाती हैं ?”
“नहीं,” शेख ने कहा।
मेहमान को कुछ आश्चर्य हुआ। “मुझे लगा यह जाती होगी,” उन्होंने कहा।
“नहीं, यह सड़क मेरे घर नहों जाती है,” शेख ने कहा।
“फिर वो कहां जाती हैं ?” मेहमान ने पूछा।
“ वो कहीं भी नहों जाती हैँ,” शेख ने शांत भाव में उत्तर दिया।
मेहमान उसकी ओर घूरने लगा। “बेटा, इससे तुम्हारा क्या मतलब हैं ?”
जनाब, ” शेख ने शांति से कहा। “सडक भला कैसे जा सकती है ? उसके पैर तो होते नहीं है।
सड़क तो एक बेजान चीज हैं। वो जहां पर है वही पड़ी रहती है।
परंतु हम इस सडक से मेरे घर तक जा सकते हैं। आपकी मेहमाननवाजी करके मुझे और अम्मी को बहुत खुशी होगी।”
शेख की निष्कपटता से उस उमर दराज इंसान का दिल पसीज गया। कुछ सालों बाद शेख चिल्ली उसका दामाद बना !

 

किस्सा काजी का – 1

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
बेटा तुम अब कोई कामकाज ढूंढो,” शेख चिल्ली की मां ने उसे एक शाम खाना परोसते हुए कहा।
“तुम अब एक नौजवान हो। जल्द ही हमें तुम्हारे लिए एक पत्नी की तलाश करनी होगी!
परंतु जो आदमी कुछ कमाता ही न हो उसे भला कौन अपनी लड़की देगा ?
अब जाकर कोई अच्छी, पक्की नौकरी दूंढों। मैं अब बूढ़ी हो रही हूं। कब तक अकेले दोनों के लिए कमाई करूंगी ?”
“ज़्यादा देर तक नहीं अम्मी,” शेख ने प्यार से कहा।
“तुम बस थोड़ा सा और इंतजार करों। कल शाम तक मेरी नौकरी लग गई होगी।” “ बेटा, ऐसा ही हो!” अम्मी ने काफी भावुक होकर कहा।
कहना तो आसान था परंतु नौकरी मिलना एक कठिन काम था! वो किसके पास जाए इस बारे में शेख सोचने लगा।
गांव में कई लोगों ने उसे पहले नौकरी पर रखा था। परंतु कोई भी नौकरी चंद हफ्तों से अधिक नहीं टिको थीं।
अगली सुबह उसने लाला तेलीराम से पूछने का निश्चय किया कि क्या उन्हें एक और नोकर चाहिए ?
पहले एक बार लालाजी के काम पर जाते समय शेख चिल्ली एक नमक का बोरा लेकर तालाब में जा गिरा था।
पर शेख यह उम्मीद लगाए बेठा था कि शायद लालाजी उस बात को अब तक भूल गए होंगे। आखिर वो सारा नमक कहां गया ?
शेख इस सोच में इतना गहरा डूबा था कि वो सामने से आते दो भाइयों से टकरा गया।
जिन कुछ सालों के लिए शेख गांव के स्कूल में पढ़ा था उस समय यह दोनों भाई उसकी ही कक्षा में थे।
“मियां, आप फिर दिन में सपने देख रहे हैं ?”
बड़े भाई ने पूछा। “तभी तो मौलवी साहब ने आपको स्कूल से निकाल दिया था।”
“भाई, मैं तो नौकरी ढूंढने की बात सोच रहा था,” शेख ने कहा। अम्मी का कहना है कि अगर मेरी नौकरी नहीं लगेगी तो कोई मुझसे शादी नहीं करेगा।”
यह सुनकर दोनों भाई हंसने लगे।
“उनका कहना बिल्कुल ठीक हैं,” एक ने कहा, “और हम अभी तुम्हें एक नौकरी सुझा सकते हैं, परन्तु काम इतना आसान न होगा।
तुम्हें एक बेहद कंजूस काजी के लिए काम करना होगा।
वो तुम्हें महीने के बीस रुपए तनख्वाह देगा। साथ में मुफ्त खाना और रहने का स्थान भी मिलेगा।
परंतु फिर वो तुम्हारी जान हराम कर डालेगा और तुम झक मारकर नौकरी छोड़ने को मजबूर हो जाओगे।
जब तुम नौकरी छोडोंगे तो तुम्हें उस महीने की तनख्वाह नहीं मिलेगी और साथ में काजी तुम्हारे कान का थोंडा सा टुकड़ा भी कुतर लेगा! हमारे साथ-साथ उस काजी ने और बहुत से लोगों के भी कान कुतरे हैं।
उसको आखिरी नौकर अभी दो दिन पहले हीं, रोता हुआ वापिस आया था।”
अगर नौकर के नौकरी छोड़ने की जगह काजी खुद नौकर को निकालता है तो ?
” शेख ने पूछा। उसे वो बहुत सारे मालिक याद आए जिन्होंने उसे निकाला था। “क्या फिर काजी ख़ुद अपना कान कृतरवाने को राजी होगा ?”
“ऐसा आज तक तो हुआ नहीं है और न ही इसके होने की कोई संभावना है। तुम थोड़े सावधान रहना मियां। काजी साहब बहुत ही चालाक आदमी हैं।”
“मुझे उनका पूरा नाम और पता दो,” शेख चिल्ली ने कहा। “मैंने अम्मी से वादा किया हैं कि आज शाम तक मैं कोई नौकरी ढूंढ निकलूंगा।”
शेख कई मील चलकर उस शहर में पहंचा जहां काजी रहते थे।
काजी तभी कचहरी से लौटे थे।
“सलाम सरकार,” शेख ने कहा। “में आपके लिए काम करने आया हूं।”
काजी ने शेख के भोले चेहरे को देखा। चलो एक और बकरा फंसा! उन्होंने सोचा।
यह भी बहुत ज़्यादा दिन नहीं टिकेंगा! उन्होंने जोर से कहा, “क्या तुम्हें नौकरी की शर्तें पता हैं ?”
शेख ने अपना सिर हिलाया। “जी सरकार! बीस रूपए महीना तनख्वाह और साथ में मुफ्त खाना और सोने की जगह।”
“इसके बदले में तुम्हें जो भी काम दिया जाएगा उसे तुम्हें करना होगा,” काजी ने कड़े शब्दों में कहा।
“मैं तुम्हें नौकरी से नहीं निकालूंगा।
परंतु अगर तुमने नौकरी छोड़ी तो तुम्हें उस महीने की तनख्वाह नहीं मिलेगी।
साथ में में तुम्हारा थोड़ा सा कान भी कुतरूंगा जो तुम्हें सारी जिंदगी तुम्हारे बेकार काम को याद दिलाएगा! आयी बात समझ में ?
क्या तुम्हारे कोई सवाल हें ?”
“सिर्फ एक सरकार,” शेख ने कहा। “अगर आप मुझे नौकरी से निकालेंगे, तो… ”
“बो कभी नहीं होगा!” काजी ने उसके बात को बीच में काटते हुए कहा।
“लेकिन अगर ऐसा हुआ तो में आपसे एक साल की तनख्वाह लुंगा और साथ में आपके कान का थोडा सा टुकड़ा भी कुतरूंगा।”
काजी का मुंह लटक गया! किसी ने भी आज तक उनसे इस तरह को बात कहने को जुर्रत नहीं करी थी। यह लड॒का सच में बिल्कुल हों बेवकूफ होगा !
“चलो ठीक है,” उन्होंने रूखाई से कहा। “ मुझे तुम्हारी शर्तें मंजूर हैं। अब अंदर जाओ। बेगम साहिबा तुम्हें काम के बारे में बता देंगीं।”
शेख को इस नौकरी में लगभग सभी काम करने थे – घर की झाड़ू और सफाई, कपड़े धोना, वर्तन मांजना, बाजार जाना और काजी के तीन साल के बेटे की देखभाल करना।
शेख हर आदेश का मुस्कुराते हुए अपनी धीमी गति से पालन करता। उसका नतीजा यह होता कि
कभी, कोई भी काम पूरा नहों होता था।
जब काजी की पत्नी उसे बर्तन मांझने के लिए बुलाती तो वो अधूरे धुले कपड़ें छोड़कर वहां चला जाता। वो बर्तन भी आधे घुले छोड देता क्योंकि तब तक बाजार जाने का वक्त हो जाता।
“इस बार तुमने कितने बड़े बेवकूफ को पकड़ा हैं!” काजी की पत्नी शिकायत के लहजे में कहती थीं। “एक भी काम ऐसा नहीं हैं जो जो ठीक से करता हो।”
“सीख जाएगा,” काजी जवाब में कहते। “या फिर वो काम छोड देगा। बस थोडा धैर्य रखो और उससे जी तोड़ काम लो।”
रात हाने तक शेख थककर चूर-चूर हो जाता। एक रात जब शेख सपने में दूल्हा बना हुआ था तभी काजी ने आकर उसे झकझोर कर जगाया।
“देखो, जरा बच्चे को पेशाब कराना है,” काजी ने कहा। “उसे बाहर ले जाकर घर के पीछे नाली के ऊपर बैठा दो।”
शेख को अपने सुहाने सपने में दखल डालने पर बडा गुस्सा आया। परंतु वो उठा और काजी के बेटे को बाहर ले गया। बाहर अंधेरा था और तेज हवा चल रही थी।
बच्चा शेख से कसकर चिपट गया।
“क्या तुमने कभी भूत देखा हैं ?” शेख ने लड़के से पूछा।
यह सुनकर लड़का शेख से और जोर से चिपट गया। “घबराओं नहीं,” शेख ने उससे कहा।
“मुझे नाली में कुछ तैरता नजर आ रहा है। परंतु वो भूत नहीं हो सकता। क्योंकि ‘भूतों को तेरना नहीं आता।”
सह सुनकर लड़का दहाड़े मार कर रोता हुआ बापिस घर में अपनी मां के पास भागा।
शेख फिर से उस सपने का मजा लेने लगा जिसमें वो एक दूल्हा बना था। इस बीच में काजी के बेटे ने अपनी मां के बिस्तर को गीला ही कर दिया!
बेगम तो आग-बबूला हो उठीं। “इस बेवकूफ से मेरा पिंड छुडाओ!” उन्होंने अगले दिन सुबह के समय अपने पति से कहा। “यह
आदमी तो बच्चे को रात को पेशाब कराने जेसे सरल काम भी नहीं कर सकता हैं।”
मैं उसे नौकरी से नहीं निकाल सकता,” काजी ने गंभीरता से कहा। “परंतु मैं उसे एक ऐसा सबक सिखाऊंगा जिसे वो जिंदगी भर नहीं भूलेगा।” उन्होंने शेख चिल्ली को बुलाया और कहा, “शहर के बाहर जंगल के पास मेरी 10 बीघा जमीन है। तुम अभी वहां पर जाओं।
मेरे हल-बैल मेरे पड़ोसीं के पास हैं। तुम जाकर उस 10 बीघा जमीन को हल से जोत कर आओ ।
हां, जुताई अच्छी तरह से करना।
जो कुछ तुमने किया हैं उसका मैं कल आकर मुआयना करूंगा। और घर वापिस आने से पहले तुम्हें यह दो काम ओर करने हैं।
एक मोटा सा खरगोश पकड़ कर लाना। मुझे आज रात को खाने के लिए स्वादिष्ट गोश्त चाहिए।
हां, और आते वक्‍त अपने सिर पर जलाऊ लकड़ी का गट्ठा भों रखकर लाना मत भूलना और शाम को मेरे कचहरी से लौटकर आने से पहले ही घर वापिस आ जाना।
अच्छा, अब तुम जाओ।”
“मैंने आज सुबह इसे बेवकूफ को कुछ खाने-पीने को भी नहीं दिया है,” काजी की बेगम ने फर्माया। “इसे जरा भूखे पेट मेहनत- मशक्क्त करने दो!”
“तुम आज शत को उसे कुछ हडिडयां चूसने को दे देना!” काजी ने एक कड़वी हंसी के साथ कहा। “मुझे तो लगता हैं कि इतनी कड़ी मेहनत से वो पहले हीं भाग लेगा और खाना देने की नौबत ही नहीं आएगी।”
शेख चिल्‍ली की जेब में जो सिक्के थे उससे उसने चने खरीदे, पानी पीया और फिर वो काजी की जमीन की ओर चला।
उसने हल-बैल से काजी के खेत को दोपहर होने तक जोता। अचानक उसे बाकी दों और काम याद आए और वो जलाऊ लकड़ी ढूंढने लगा।
काटने लायक लकड़ी के सभी पेड़ या तो बहुत बडे थे या फिर वे बहुत दूर थे।
फिर उसकी निगाह हल के ऊपर पड़ी। उसने आश्चर्यचकित शाम सिंह से कुल्हाड़ी मांगी और बलों को रिहा करने के बाद हल के कुल्हाड़ी से टुकड़े-टुकड़े कर डाले!
अब काजी के रात के भोजन के लिए उसे सिर्फ एक खरगोश पकड़ना बाकी था।
खरगोश की तो बात दूर को रही, शेख को खेतों में एक चूहा तक नहीं दिखा था। परंतु उसे सडंक पर एक मर हुआ कुत्ता जुरूर दिखा।
वो शाम को काजी के घर वापिस लौटा।
उसके सिर पर हल के टुकड़ों का गट्ठा था और वो एक मरे हुए कात्ते की पूंछ को खींच कर ला रहा था।
“सरकार,” उसने मुस्कुराते हुए कहा। “यह कुत्ता किसी भी खरगोश से बड़ा हैं।
इससे आपके भोजन के लिए बढ़िया गोश्त बनेगा! और मैं बहुत सारी जलाऊ लकड़ी लाया हूं जिसके लिए हल की लकड़ी मेरे बहुत काम आई!”
“अरे बेवकूफ!” काजी गुस्से में चिललाया। उनका चेहरा गुस्से से आग-बबूला हो गया था। “अभी मेरे सामने से दफा हो जाओ! मैं तुम से बाद में निबटूंगा।”

 

किस्सा काजी का – 2

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
तुमने इस आदमी को नौकरी से क्यों नहीं निकाला ?”
काजी की परेशान बीबी ने रत को उनसे पूछा।
मैं अपना कान कूटरवाऊँ और इस हरामखोर को एक साल की तनख्वाह भी दूं और साथ में पूरे शहर का मजाक भी बनूं ! में ऐसा कभी नहीं करूंगा।”
“तब तुम एक काम करो।
एक और नौकर ढदूंढो,” बीबी ने गुस्से में कहा। “और इस बेशकीमती शेख चिल्ली को तुम सिर्फ अपने काम को लिए ही रखो।”
“बहुत अच्छा,” काजी ने कहा। “तुम शेख चिल्लीं को अब से कम-से-कम खाना देना।
बस इतना खाना देना कि वो मरे नहीं। में उसे रोजाना अपने साथ कचहरी ले जाया करूंगा। देखते हैं कि यों बिना काम और भोजन के कितने दिन जिंदा रह पाता है।”
परंतु काजी को जल्दी हीं अपनी गलती का अहसास हो गया। शेख कचहरी के बाहर बैठे-बैठे, दिन में सपने देखता या फिर और लोगों से गप्पे लगाने में काफी खुश था।
जब लोगों को यह पता चला कि उसे इतना कम खाना मिलता है तो लोगों ने ख़ुद उसे अपना भोजन देना शुरू कर दिया!
एक दिन काजी की पत्ली ने नए नौकर के हाथ कचहरी में काजी के लिए एक संदेश भेजा।
उन्हें आटा खरीदने के लिए तुरंत कुछ पैसों को जरूरत थी। दरबान ने नौकर को कचहरी के अंदर घुसने नहीं दिया। “मैं तुम्हारी मदद करूंगा,” शेख ने कहा।
वो कचहरी के दरवाजे पर खड़ा होकर चिल्लाया, “सरकार, घर में न तो पैसे हैं और न ही आटा! आप जल्दी कुछ करें।”
काजी को यह सुनकर बहुत शर्म आई।
“बेवकूफ!” उन्होंने बाद में शेख को डांट “खबरदार! जो आज से तुमने दुबारा कचहरी में इस तरह का अडंगा डाला!”
कुछ दिनों बाद काजी के घर में आग लग गई।
बेगम का नया नौकर दौड़ता हुआ कचहरी में काजी को इसकी सूचना देने के लिए आया।
“तुम घर जाकर मदद करो,” शेख ने उससे कहा।
“मैं काजी साहब को इसके बारे में बता दूंगा।” क्योंकि शेख को कचहरी के समय काजी साहब के काम में अडंगा डालने क॑ लिए सख्ती से मना किया गया था इसलिए वो शाम तक धैर्य से इंतजार करता रहा।
ज़ब तक काजी का आधे से ज्यादा घर जलकर राख हो चुका था!
काजी की पत्नी एक रईस व्यवसायिक परिवार की थीं।
काजी ने घर को दुबारा बनाने के लिए कर्ज की मांग के लिए अपनी ससुराल जाने की ठानी।
उन्होंने शैतानी से दूर रखने के लिए शेख चिल्ली को भी घोड़े पर अपने साथ ले लिया।
काजी की ससुराल कोई पचास मील दूर होगी।
बीच में काजी को दस्त लगे और उन्हें शौच के लिए जंगल में जाना पड़ा।
तभी सड़क पर से एक काफिला गुजरा। वो शेख चिल्ली को ही घोड़े का असली मालिक समझ बेंठे।
“हम तुम्हें इस घोड़े क॑ लिए 200 रुपए देंगे,” उन्होंने उससे कहा।
“क्या तुम इतने में उसे बेचोगे ?”
“हां,” शेख ने कहा। उसने पेसों को रखा ओर घोड़े की थोड़ी सी पूंछ काटी और फिर जमीन में एक गड्ढा करके उसने पूंछ के बालों को उसमें गाढ़ दिया।
“सरकार, जरा जल्दी कीजिए!” वो काजी को आते देखकर जोर से चिल्लाया। “अभी-अभी भोड़े को खींचकर इस चूहे के बिल में ले जाया गया है! अगर आप मेरी मदद करेंगे तो हम उसे खींचकर बाहर
निकाल लेंगे!” काजी को कुछ समझ नहीं आया फिर भी वो शेख को पकड़े रहे।
और शेख जमीन में गढ़ी घोड़े की पूंछ को खींचता रहा। अंत में पूंछ बाहर निकल आई परंतु शेख और काजी दोनों धड़ाम से जमीन पर जाकर गिरे !
“चूहे हमसे ताकतवर निकले, सरकार,” शेख ने दुखी अंदाज में कहा। “घोड़ा सीधा जुमीन के अंदर चला गया हैँ। अब हमें उसे बाहर निकालने क॑ लिए फावडों के साथ खुदाई करने वाले ताकतवर लोग चाहिए होंगे !”
“तुम यह क्‍या बकवास बक रहे हो, बेवकूफ!”
काजी गुस्से में चिल्लाए। ” भला एक घोड़ा किसी चूहे क॑ बिल में कैसे घुस सकता हैं ?
नम॑कहराम!
जल्दी से बताओ कि तुमने मेरे घोड़े का क्‍या किया हैं ?
घोड़ा कहीं खो गया हैं या तुमने उसे बेच डाला है ?
अब हम आगे का सफर कंसे करेंगे ? पैदल ?”
“सस्कार, पास ही में एक गांव है जहां से आपको एक नया घोड़ा मिल सकता हैं,” शेख ने कहा। “
एक घोड़े के गुम जाने से आप जैसे रईस आदमी को कोई फक नहीं पडेंगा।’
बड्बड़ाते हुए काजी ने अगले गांव से एक और घोड़ा खरीदा और उसे एक पल के लिए भी अपनी आंखों से ओझल नहों होने दिया!
उन्होंने खुद तो घोड़े पर बैठकर यात्रा की और शेख को पहला घोड़ा खोने की सजा में पैदल दौड़ाया।
रात को वे एक सराय में रूकें। काजी ने वहां खाना खाया और उसके बाद शेख की ओर कुछ सूखी रोटो फेंकते हुए कहा, “तुम रात भर उस घोड़े के साथ ही रहना।
तुम उसकी मालिश करते रहना और खबरदार जो तुमने उसे अपनी आंखों के सामने से ओझल होने दिया! क्या तुम मेरी बात समझे ?”
“जी सरकार,” शेख ने अपनी जंभाई को छिपाते हुए बड़े भीरू भाव में कहा।
दिन भर चलने की थकान के बाद जो घोड़े के पास ही बैठ गया और धीरे-धीरे उसकी मालिश करने लगा।
शेख को कब नींद आई और कब कोई घोड़े को चुराकर ले गया इसका उसे पता ही नहीं चला!
वो जब सुबह उठा तो उसने घोड़े को नदारद पाया।
शेख ने उसे चारों ओर ढूंढ़ा। अगर उसने घोड़े को जल्दी नहों खोजा तो काजी उसकी चमडो उधेड़ कर रख दंगा! फिर उसे घास के ढेर में जिसे घोड़ा सा रहा था दो लंबे कान नजर आए।
“वाह!” शेख ने कानों को पकड्ते हुए कहा, “तो तुम यहां छिपे हुए थे !” वो कान एक खरगोश के थे।
शेख जब उन्हें निहार रहा था तभी काजी ‘भी वहां पहुंचे।
“घोड़ा कहां हैं ?” काजी ने कड़कदार आवाज में पूछा।
“यह रहा सरकार,” शेख ने झट से उत्तर दिया।
“ अबे गधे, यह तो खरगोश है, घोड़ा नहीं !”
“सरकार यह सच में घोड़ा हैं मैंने घोड़े कौ इतनी कसकर मालिश की कि वो छोटा होकर खरगोश बन गया।
मैंने उसके कानों को मालिश नहीं की। आप देखिए! वे अभी भी चोडे के नाप के हैं!”
“तुम दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ हो!”
काजी ने कहा।
यह कहते हुए काजी को आवाज गुस्से से लडखड़ाने लगी। “और में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बेवकूफ हूं कि मैंने तुम्हें नौकरों पर रखा !
चलों अब तैयार हो क्योंकि अब चलने का बक्त हो गया है।”
वो बाकी रास्ते पैदल ही चल कर गए।
ससुराल पहुंचने के बाद उनका काफी आदर-सत्कार हुआ।
काजी की सास शेख चिल्लीं को अलग ले गयीं। “तुम्हारे मालिक की तबियत कुछ ठीक नहीं लगती है,” उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि लंबे सफर के कारण उन्हें कुछ थकान हो गई है।”
“उनका पेट कुछ खराब हैं,” शेख ने कहा।
“फिर मैं उनके लिए कुछ खिचड़ी बना देती हूं,” बूढ़ी औरत ने कहा।
“पर आप उसे खूब चटपटा बनाएं,” शेख ने कहा। “उन्हें चटपटा खाना बहुत पसंद हैं।”
रात को भोजन के समय शेख चिल्ली को सबसे स्वादिष्ट बिरयानी, मटन-करी, सब्जियां और खीर परोसी गई।
और काजी को कंवल एक कटोरा भर मसालेदार खिचड़ी ही खाने को मिली।
काजी को इतनी भूख लगी थी कि वो सब खिचड़ी खा गए।
रात को उनके पेट में दर्द हुआ और उन्हें तुरंत शौच क॑ लिए जाना पड़ा।
“मुझे बाहर जाना है,” उन्होंने शेख को उठाया। “तुम भी मेरे साथ चलो।”
“सरकार,” शेख ने नींद में कहां, “वहां कोने में एक मिट्टी का मटका रखा है। आप उस का प्रयोग क्यों नहीं करते? सुबह को उसे खाली कर देंगे।”
काजी को रात में कई बार शौच जाना पड़ा। सुबह तक वो मटका आधा भर चुका था।
इसे बाहर फेंक कर आओ,” उन्होंने शेख को आदेश दिया।
“मैं यह काम नहीं करूंगा,” शेख ने कहा, “मैं मेहतर नहीं हूं।”
काजी को कुछ समझ नहीं आया। गुस्से में आकर उन्होंने मटका उठाया और उसे जंगल में फेंकने चल पड़े! उनका साला उनके पीछे-पीछे दौड़ता हुआ आया।
उसे आते हुए देख काजो ने शर्म के मारे अपनी रफ्तार बढ़ा दी। परंतु उनका साला तेजी से दौड़कर उनके पास पहुंच गया।
भाईजान, आप अपने झिर पर यह बोझ लाद कर कहां जा रहें हैं ? लाईए, में आपकी मदद करता हूं।”
“नहीं! नहीं !” काजी ने विरोध किया। “नहीं, ठीक है।” और काजी ने मटके को कस कर पकड़ने की कोशिश की।
परंतु मटका उसके हाथों से फिसल कर उन दोनों के बीच में जाकर गिरा जिससे दोनों लोग गंदगी से सन गए।
शेख इस पूरे नजारे को खिड़की में से देख रहा था।
“सरकार, वो काजी की ओर दौडता हुआ चिल्लाया। “कहीं आपके चोट तो नहीं आई ! ”
काजी ने विनम्र भाव से अपने दोनों हाथ जोडे।
“में तुमसे विनतती करता हूं शेख चिल्ली, तुम मुझे अकेला छोड़ दो,” उन्होंने कहा। “मैंने तुम्हें बहुत झेला है और बर्दाश्त किया है! तुम जीते। में हारा। में तुम्हें फौरन नौकरी से निकालता हूं।
तुम पूरे साल की तनख्वाह ले लो और मेरे दोनों कान भी कुतर लो, परंतुं मेरी निगाह के सामने से सदा के लिए दफा हो जाओ!”
“आप अपने कान अपने पास ही रखें, सरकार,” शेख ने कहा।
“हां, यह रहे वो दो सौ रूपए जो मुझे आपका पहला घोड़ा बेचकर मिले। मुझे अफसोस है कि दूसरा घोड़ा खरगोश में बदल गया। उस रात आपने घोड़े को मालिश करने के लिए कह कर भारी गलती की!”
एक साल को पूरी तनख्वाह जेब में रखे शेख चिल्ली बड़ी जीत हासिल करके शान से घर लौटा!

 

शेख की नयी नौकरी

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
अब शेख चिल्ली के दूसरी नौकरी दूंढने का समय आ गया था।
काजी से मिले सारे पैसे अब धीरे-धीरे करके खर्च हो गए थे।
एक दिन वो सुबह के समय पास के शहर की ओर चला। सड़क पर उसके आगे एक छोटे कद का आदमी, सिर पर एक बड़ा पीपा रख कर जा रहा था। वो पसीने से एकदम लथपथ हो गया था।
“सुनो,” उसने शेख को पास से गुजरते समय कहा। “अगर तुम इस घी के पीपे को शहर तक ले जाओगे तो में इसको लिए तुम्हें दो आने दूंगा।”
कुछ पैसे कमाने को खुशी में शेख ने पीपे को अपने सिर पर रख लिया और चलने लगा। इन दो आनों से मैं कुछ मुर्गी के चूजे खरीदूंगा, उसने सोचा। जब वो चूजे बड़े हो जाएंगे तो मेरे पास बहुत सारी मुर्गियां और अंडे होंगे।
उन अंडों को बेचकर मैं मालामाल हो जाऊंगा! फिर मैं गांव का सबसे आलीशान मकान खरीदूंगा और दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की के साथ शादी करूंगा! फिर अम्मी को कभी काम करने की जुरूरत नहीं पड़ेगी।
वो और मेरी बेगम आराम से रानियों की तरह बैठी रहेंगी और उनकी सेवा के लिए चालीस नौकरानियां होंगी! मैं पूरे दिन पतंग उड़ाया करूंगा — बड़ी- बड़ी, रंग-बिरंगी पतंगे, जो खास मेरे लिए ही बनी होंगी।
सारा गांव मुझे पतंग उड़ाता हुआ देखने के लिए इकट्ठा होगा – फर्र, फर्र!
अपनी सोच में पूरी तरह मगन शेख ने काल्पनिक पतंग को उड़ाने के लिए अपने दोनों हाथों को हवा में लहराया।
उससे घी का पीपा धड़ाम से जमीन पर आ गिरा और सारा घी बह गया !
“बेवकूफ! तुमने यह क्या किया ?”
वो छोटा आदमी चिल्लाया। तुमने तीस रूपए के घी को पानी की तरह बहा दिया!”
“तीस रूपए कौन सी बड़ी रकम है, पर मेरी तो किस्मत हीं लुट गई,” शेख ने दुखी होते हुए कहा। “मैं तो पूरी तरह तबाह हो गया!”
वो आदमी गुस्से में आग बबुला होकर चला गया। शेख भी चलते-चलते एक बडे घर के गेट के पास पहुंचा जहां एक घोड़ा-गाड़ी खड़ी थी।
“कोचवानजी, ” शेख ने घोड़ा-गाड़ी-के चालक को संबोधित करते हुए कहा, “क्या आप बता सकते हैं कि मुझे कहां नौकरी मिल सकती है ? में कोई भी काम करने को तैयार हंं।”
“तुम अंदर जाकर कोशिश करो,” कोचवान ने कहा, “मुझे लगता है कि रसोइए को एक मददगार की तलाश है।”
शेख घर का चक्कर लगाकर पीछे गया और वहां जाकर रसोइए से मिला। शेख को नौकरी मिल गई। वो पूरे दिन भर सब्जी काटता रहा और बर्तन मांजता रहा।
रात तक वो थककर एकदम पस्त हो गया और उसे जोर की भूख लगी।
“यह लो!” रसोइए ने शेख को ओर दो सूखी रोटो और कुछ अचार फेंकतें हुए कह़ा।
“तुम चाहो तो मेरे कमरे के बाहर सो सकते हो, परंतु सुबह पौं फटते ही उठ जाना। इस घर में सुबह तड़के हो काम शुरू हो जाता है।”
शेख लेटते हो खर्राटें भरने लगा। आधी रात को भूख के कारण उसकी नींद खुल गई।
उसने दुबारा सोने को बंहुते कोशिश की परंतु भूख ने उसे जगाए रखा। अंत में उसने रसोइए के कमरे में झांक कर देखा। रसोइए का कमरा खाली था पर उसे बाहर बाग में से कुछ आवाजें सुनाई दीं। शेख ने थोड़ा करीब जाकर देखा।
रसोइया और माली आपस में चुपचाप बातचीत कर रहे थे। उन दोनों के बीच में नींबूओं का एक ढेर पड़ा था।
“इस बार मुझे एक अच्छा खरीदार मिल गया है,” शेख ने माली को कहते हुए सुना। “अभी तक हमें जो कीमत मिल रही थी वो उससे दुगना मूल्य देगा!”
“अच्छा!” रसोइए ने कहा। “तुम बेफिक्र रहो। बूढ़ी औरत को कोई भी शक नहीं है।”
शेख ने उनका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए गले से कुछ आवाज निकाली। दोनों चोर उसे देखकर एकदम घबराए!
“मुझे बहुत भूख लगी है,” शेख ने कहा। “भूख के मारे मैं सो नहीं सका।”
क्या शेखर को वाकई भूख लगी थी या वो अपना मुंह चुप रखने के लिए कूछ पैसे चाहता था ?
रसोइए को कुछ समझ में नहीं आया। उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले और उसे दे दिए। “किसी से एक शब्द भी नहीं कहना!” उसने गुर्रा कर कहा। “अब जाओ!”
“मैं जा रहा हूं,” शेख ने कहा। परंतु वो आधी रात को अपने लिए खाना कहां से खरीदेगा ? यो गेट की ओर घलते समय सोते हुए कोचवान से टकरा गया। कोचवान जाग गया और उसने शेख से जाने का कारण पूछा।
शेख ने कोचवान को पूरी कहानी सुनाई। “अच्छा तो ये दोनों इस खुराफात में लगे थे।”
कोचवान ने कहा। “मुझे इन पर पहले से ही शक था। सुबह को मैं पहला काम यह करूंगा – बीबीजी को बताऊंगा कि उन्होंने अपने घर में दो चोर पाले हुए हैं! मैं यह पक्‍का करूंगा कि वो इन दोनों चोरों को निकाल दें।”
और वहीं हुआ! शेख को चोरों को रंगे हाथों पकड़ने के लिए पचास रूपयों का इनाम मिला। उनकी जगह एक नए रसोइए और माली को रखा गया।
शेख को रसोइए के मददगार की जगह कोचवान का सहायक बनाया गया।
कुछ दिनों में शेख गाडी चलाना सीख गया और अब कोचवान जब भी छुट्टी पर जाता तो शेख घोड़ा-गांडी को चलाता। शेख बीबीजी को जहां वो कहतीं घुमाने के लिए ले जाता।
फिर बीबीजी का बेटा और उसकी जहू उनके साथ रहने के लिए आ गए और उनके आने से शेख एक बार फिर मुसीबत में फंस गया!
“सीधे बैठो!” बीबीजो के नैजवान बेटे ने शेख को आदेश दिया। संभाल कर गाड़ी चलाओ और अपने मुंह को बंद रखो। मुझे ढीले-ढाले, बातूनी ड्राइवर बिल्कुल नापसंद हैं ।
जी, सरकार!” शेख ने कहा और दिए गए आदेशों का पालन करने लगा।
एक शाम को वो मियां-बीबी को बाजार ले गया। गलती से घर आते समय महिला ने अपना बटुआ गिरा दिया। शेख ने बटुआ गिरते हुए देखा परंतु क्योंकि उससे हर समय बिल्कुल चुप रहने को कहा गया था इसलिए वो कुछ भी नहीं बोला।
“गधे, बेवकूफ! मालिक चीखा जब उन्हें पता चला कि शेख ने बटुए को गिरते हुए देखा था। “ भविष्य में तुम जब भी किसी भी चोज को गिरते हुए देखो तो उसे उठा लेना। समझे ?”
“जी ससकार,” शेख ने कहा।
कुछ दिनों बाद उसका मालिक कुछ मेहमानों के साथ बैठ था जब शेख एक बंडल को लेकर कमरे में घुसा।
“सरकार, यह सड़क पर गिरा हुआ था,” उसने मेज पर बंडल को रखते हुए कहा। “इसलिए आपके आदेशानुसार मैं इसे उठा कर लाया हूं।”
“इसके अंदर कया है?” एक मेहमान ने पूछा। शेख ने बंडल को खोला। बंडल के अंदर घोड़ें की लोद थी, जो घोड़े ने गिराई थी। मालिक की अज्ञानुसार शेख उसे उठा लाया था!
“जाओ!” मालिक अपने मेहमानों के सामने ‘लज्जित होते हुए चिल्लाया। “इसी क्षण मेरा घर छोड़ कर जाओ। में तुम्हें नोकरी से निकालता हूं!”
एक और नौकरी का अंत – वो भी कोई गलती किए बिना, शेख ने सोचा। परंतु उसने चार महीनों की तनख्वाह बचाई थी और बीबीजी नें उसे बतौर इनाम पचास्र रूपए दिए थे। यह सोचकर शेख खुश हो गया।
अम्मी जुरूर खुश होंगी। यह सोचते हुए वो घर की ओर रवाना हुआ। इन पैसों से वो बहुत सारे चूजे खरीद सकंगा। जल्दी ही चूजे बड़े होकर मुर्गियां बन जाएंगी। इस तरह दिन में सपने संजोते हुए वो आराम से आगे बढ़ा।

 

ससुराल की यात्रा

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
आ खिर शेख चिल्ली की अम्मी ने उसको लिए एक चांद जेसे सुंदर चेहरे वाली दुल्हन ढूंढ ही निकाली।
उसका नाम ‘फौजिया था। फौजिया के पिता, शेख को पिता को जानते थे और जब वो कई बरस पहले शेख से हकीमजी के घर मिले थे तो उन्हें शेख पसंद आया था।
शादी के कुछ महीनों बाद शेख चिल्ली को ससुराल जाने का निमंत्रण मिला।
वो अपने सबसे अच्छे कपडे पहनकर सुबह-सुबह ही निकल पड़ा। ससुराल में उसकी पत्नी के माता-पिता, भाई-बहनों ने उसकी बहुत आवभगत की।
ठाठ से भोजन खाने के बाद शेख को उसके साले ने पान खाने को दिया।
शेख ने पहले कभी पान नहीं खाया था। फिर भी उसने पान को अपने मुंह में डाला और उसे चबाने लगा।
पान चबाते समय उसने इत्तफाक से अपने मुंह को आइने में देखा। पान के लाल रस की एक पतली सी धार उसके मुंह से बह रही थी।
शेख उसे खून समझ बेठा। वो डर से एकदम सहम गया !
मैं मर रहा हूँ! उसने सोचा।
मेरे अंदर अचानक कोई चीज टूट गई है या फिर इन लोगों ने मुझे जहर खिला दिया है! पर चाहें जो कूछ भी हो, मैं मर रहा हूं !
उसकी आंखें आंसुओं से भर गयीं।
बिना एक भी शब्द कहे वो खडे होकर सीधे अपने कमरे में गया और वहां पलंग पर जाकर लेट गया।
यह जानने के लिए कि शेख का मिजाज अचानक क्‍यों बिगड़ गया है उसका साला भी उसके पीछे-पीछे चला।
शेख को पलंग पर पड़े, बिना कुछ बोले और बिलख-बिलख कर रोते हुए देखकर उसके साले को कुछ भी समझ में नहीं आया कि आखिर वो क्या करे!
उसी समय शेख के ससुर भी कमरे में पधारे।
“बेटा, मुझे बताओ कि तुम्हें क्या हुआ है ?” उन्होंने शेख से पूछा। “क्या तुम्हें कहीं दर्द हो रहा हैं ?”
“ अब्बू, मैं मर रहा हूं!” शेख ने ऐलान किया। “ मेरा खून मेरे मुंह से रिस-रिस कर बाहर निकल रहा है।” फिर उसने पान के लाल रस की ओर अपनी उंगली से इशारा किया।
“क्या बस इतनी सी बात है ?” ससुर ने अपनी हंसी को दबाते हुए पूछा।
आप क्या इससे भी कुछ ज़्यादा चाहते हैं ?” शेख ने नाराज होते हुए कहा।
शेख के अचानक बीमार हो जाने के रहस्य का आखिर पर्दाफाश हुआ !
पान के लाल रस और खून के बीच में अंतर समझने के बाद शेख की सांस- में-सांस आई।
उसके बाद वो पलंग पर से कूदकर अपने साले के साथ शहर के दर्शनीय स्थल देखने के लिए पैदल निकला।
लौटने से पहले अंधेरा हो गया था।
शेख पलंग पर लेटते हीं गहरी नींद में सों गया। रात में एक मच्छर के भिनभिनाने से उसकी आँख खुली।
शेख नें उसे मारने की बहुत कोशिश की मगर असफल रहा। अंत में उसने मच्छर को मारने के लिए अंधेरे में उसकी ओर अपनी चप्पल फेंकी ।
मच्छर का भिनभिनाना बंद करने के बाद शेख दुबारा सो गया। परंतु उसकी फेंकी हुई चप्पल सीधे शहद से भरे एक छोटे बर्तन से जाकर टकराई थी।
यह वर्तन छत की लकड़ी की बिल्ली से सीधे शेख के ऊपर लटका था।
चप्पल लगने के बाद बर्तन कुछ टेढ़ा हो गया और शेख के मुंह पर शहद टपकने लगा।
सपने में शेख को शहद की मिठास आने लगी। सुबह उठने पर उसने अपने पूरे शरीर को शहद से सना पाया !
उसे नहाने के लिए पास को नदी पर जाना पड़ा।
उसके कमरे से लगा एक भंडार कक्ष था।
शेख बिना किसी को जगाए इस कमरे में से होकर नदी तक जा सकता था।
शेख दबे पांव इस कमरे में घुसा और सीधा रूई के एक ढेर में जा गिरा। रुई की धुनाई हो चुकी थी और उसे सर्दियों क॑ लिए रजाइयों में भरा जाना था।
रूईं शेख के बालों, चेहरें और शरीर पर चिपक गई।
वो अंधेरे में पिछले दरवाजे को तलाश रहा था तभी उसको साली भंडार कक्ष में कुछ लेने क॑ लिए आई। वो एक अजीब रोएंदार आकार को देखकर डर गई और जोर से चिल्लाई, “भूत! भूत!” और फिर कमरे में से तेजी से भागी।
शेख को पिछला दरवाजा मिल गया और वो घर से नदी की ओर दौड़ा। उसने जो अनुमान लगाबा था उससे नदी कुछ दूर थी। रास्ते में भंडों की एक बाड़ थी।
शेख दो-चार मिनट सुस्ताने के लिए वहां बैठ गया।
भंडों के शरीर की गर्मी से शेख को एक झपकी आ गई लेकिन तभी उसे भेड़ों के बीच कोई चलता हुआ दिखाई दिया!
वो एक चोर था! इससे पहले कि शेख कुछ करता उस चोर ने शेख के ऊपर एक कंबल फेंका और फिर शेख को अपने कंधे पर उठाकर दौड़ने लगा।
“अरे! तुम यह क्‍या कर रहे हो ?” शेख ने खुद को छूड़ाते हुए गुस्से में कहा। “में कोई भेड़ थोड़े ही हूं!”
क्या बोलने बाला जानवर! चोर एकदम सहम गवा! उसने कंबल और शेख को फेंका और अपनी जान बचाने के लिए सरपट भागा !
शेख नदी में कूदा और उसने रई और शहद को रगडु-रगड़ कर साफ किया। फिर उसने चोर द्वारा छोड़ें हुए कंबल को ओढा और घर की ओर चला।
भाईजान, आप कहां गए थे ?” शेख के साले ने पूछा। “गनीमत हैं कि आप सही-सलामत हैं। आपके पास वाले कमरे में एक भूत हैं! हम भूत को भगाने के लिए अभी किसी को बुलाकर लाते हैं।”
“इसकी अब कोई जरूरत नहीं है,” शेख चिल्ली ने शांत भाव में कहा। “मैं ख़ुद ही भूत से निबटने के लिए काफी हूं।”
फिर शेख ने खुद को भंडार कक्ष में बंद कर लिया और फिर झाड़ू से रई को खूब धुनाई की।
साथ में वो जोर-जोर से झूठ-मूठ के कुछ मंत्र भी पढ़ता रहा! उसके बाद वो कमरे में से किसी महान विजेता की तरह निकल कर आया।
शेख ने अपना बाकी समय ससुराल में मजे में बिताया।
वो लगातार परिवार्जनों और पड़ोसियों कीं प्रशंसा का पात्र बना रहा।

 

मेहमान जो जाने को तैयार न था

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
शेख चिल्‍ली की अम्मी और उसकी पत्नी फौजिया दोनों एक महीने के लिए कहीं जा रहीं थीं।
परंतु दोनों को ही शेख चिल्ली को घर में अकेले छोड़कर जाने की बात अखर रहा थी।
“पिछली बार जब हमने तुम्हें सिर्फ एक दिन के लिए अकेले छोड़ा था, तो तुमनें घर को जलाकर लगभग राख कर दिया था!” फौजिया ने कहा।
“अगर हम तुम्हें पुरे महीने के लिए अकेले छोड़कर गयी तो फिर तो अल्लाह ही मालिक है !”
“बेगम, तुम बिना किसी बात के फ़िक्र करती हो,” शेख ने उसकी हिम्मत बांधने के लिए कहां।
“में अपनी और घर की देखभाल करने के लिए पूरी तरह सक्षम हूं।
परंतु तुम्हारी तसल्‍ली के लिए मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि तुम्हारी गैर-मौजूदगी में मैं अपने पुराने दोस्त और चचेरे भाई इरफान भाई से मिलने के लिए जाऊंगा।”
“ठीक है।” शेख की बीबी को अब कुछ शांति मिली।
“हमारे आने के एक दिन बाद तुम भी वापिस आ जाना।”
शेख चिल्लों का चचेरा भाई इरफान पास के ही गांव में अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था।
उसकी एक छोटी सी कपडे की दुकान थी।
इरफान ने बचपन में शेख ओर उसकी अम्मी के साथ काफी दिन गुजारे थे।
उन गर्दिश के हालातों में भी जब उनकी माली हालत॑ बहुत खराब थी, उन्होंने इरफान का हमेशा बहुत ख्याल रखा था।
जब शेखर अचानक से इरफान के घर पहुंचा तो इरफान को बहुत खुशी हुई। इरफान को अपने ऊपर लदे तमाम अहसानों को चुकाने का यह अच्छा मौका नजर आया।
शेख का पहला हफ्ता बड़े आराम से बीता। परंतु जब उसने जाने का कोई नाम नहीं लिया तो इरफान की पत्नी कुछ गुस्सा हुई।
“तुम्हारा भाई यहां और कितने दिन रहेगा?” उसने अपने पति से पूछा।
उसकी मर्जी,” इरफान ने जवाब दिया। “तुम क्यों फिक्र कर रही हों।
वो पूरा दिन दुकान में मेरे साथ गुजारता है और फिर शाम को आकर रोज तुम्हारी और बच्चों की कुछ मदद करता है।”
“वो सब टीक है,” बीबी ने रूखाई से कहा, “पर देखो वो खाता कितना ज्यादा है! उससे हमारा खर्च कितना अधिक बढ़ गया है!”
“मेरे ऊपर उस परिवार का बहुत बड़ा कर्ज हैं और इस थोड़े से “खर्च की मुझे कोई परवाह नहीं हैं,” इरफान से कहा।
“देखो बेगम, कुछ
दिन थोड़ा कम खाने और एके मेहमान को खिलाने से तुम्हार कुछ ख़ास बिगड़ेगा नहीं !”
उसकी मोटी बीबी गुस्से में रोने लगी।
“तुमसे बात करने से क्‍या फायदा,” उससे नाक बिचकाते हुए कहा, “अब मुझे हो इसकी बारे में कुछ सोचना होगा।”
कुछ दिनों के बाद एक दिन इरफान जब शेख के साथ घर वापिस लौटे तो उन्होंने देखा कि उनकी बीबी और बच्चे किसी यात्रा के लिए तैयार थे।
भाईजान,” इरफान की बीबी ने शेख से कहा, “मुझे अभी-अभी अपने पिता के सख्त बीमार होने की खबर मिली है।
इसलिए हमें आज रात को ही वहां जाना होगा।”
अल्लाह जल्दी हीं आपके पिता को ठीक करे, भाभीजी,”” शेख ने कहा।
“आप लोग घर की कोई चिंता न करें। आपके वापिस आने तक मैं घर की हिफाजत करूंगा।”
“पर भाईजान,” इरफान की बीबी ने विरोध प्रकट करते हुए कहा, “आप यहां रहेंगे कैसे? घर में तो कुछ खाने को नहीं है।
खैरियत इसी में हैं कि आफ वापिस अपने घर लौट जाएं।”
“तब मैं कल सुबह चला जाऊंगा,” शेख ने कहा। “मेरे घर में ताला पड़ा हैं। मुझे कल किस दोस्त के घर जाना है यह बात में आज रात को तय कर लूंगा।”
अगले दिन सुबह घर छोड़ने से पहले शेख ने घर की थोड़ी सफाई करने की सोची।
बच्चों के पलंग क॑ गद्दे क॑ नीचे उसे एक छोटी चाबी दिखी। वो रसोई की अलमारी की चाबी थी।
इरफान की बीबी ने उसे यहां पर छिपा कर रखा था! अलमारी में कई दिनों के लिए आटा और दाल रखा था।
शेख ने सोचा कि अब अम्मी और फौजिया के आने से पहले मुझे घर जाने की कोई जुरूरत ही नहों है। यह सोचकर शेख अपने लिए खाना बनाने लगा।
इस बीच जब इरफान को पता चला कि उसकी बीबी पिता के बीमारी की कहानी एकदप मन-गढंत थीं तो वो अपनी बीबी पर बौखला उठा।
दो दिन बाद इरफान का पूरा परिवार जब घर लौटा तो शेख ने बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया!
कुछ दिन और बीत गए।
शेख ने अभी भी जाने का कोई नाम नहीं लिया। इरफान की बीबी का लगातार पारा चढ़ रहा था।
एक शाम को वो पलंग पर जा पड़ी और जोर-जोर से कराहने लगी।
“हाय! हाय!” उसने अपने पति से कराहते हुए कहा, “यह दर्द तो मुझे लेकर हीं मरेंगा! वह बिल्कुल उसी तरह का दर्द है जो भाईजान की अम्मी को होता था।
उनसे कहो कि वो उसी हकीम के पास जाएं जिन्होंने उनकी अम्मी को ठीक किया था और मेरे लिए भी उस मर्ज को दवा लेकर आएं।
हां, उन्हें दवाई लेकर यहां आने की जरूरत नहीं है। हम किसी को भेज कर दबा मंगवा लेंगे। कृपा करके भाईजान से जल्दी जाने को कहों!”
“भाभीजी, मैं सुबह होते हीं यहां से चला जाऊंगा,” शेख ने उन्हें दिलासा दिलाते हुए कहा। “रात के अंधेरे में मैं अपना रास्ता भूल सकता हूं।
इंशाअल्लाह, आप की तबियत जल्दी ही दुरुस्त हो जाएगी!”
इरफान की बीबी सारी रात कराहती रही। उसकी कराहटों को सुन कर शेख को एक बुरा सपना आया।
सपने में उसे लगा जैसे कोई खूंखार शेर उसका पीछा कर रहा हो। शेर से पीछा छुड़ाने के प्रयास में शेख पलंग से नीचे गिर पड़ा और लुढ़क कर उसके नीचे चला गया।
उसके बाद बुरा सपना खत्म हुआ और शेख गहरी नींद सो पाया।
अगली सुबह इरफान को शेख का पलंग खालों नजर आया। “बेगम, वो तो पहले ही जा चुका है,” इरफान ने अपनी बीबी से कहा।
बीबी अपने पलंग से कूद कर दौड़ती हुई आई।
“में सच में बीमार नहीं थी!” उसने हंसते हुए अपने पति से कहा।
“और मैं भी सच में अभी गया नहीं हूँ!” शेख चिल्ली ने पलंग के नीचे से निकलते हुए कहा। “ और वैसे भी अब भाभीजी की तबियत ठीक हो गई है!

 

काला धागा

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
शेख चिल्ली की एक नौकरी अभी छूटी थी और वो दूसरी की तलाश कर रहा था।
उन्हीं दिनों उसने कुछ पैसे कमाने को लिए जंगल जाकर लकड़ी काटकर लाने की बात सोची।
वो एक बहुत सुहाना दिन था और शेख चिल्ली अपनी कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर चला।
जंगल में वो एक पेड़ पर चढ़कर एक बहुत मजबूत डाल को काटने लगा।
उस डाल पर बहुत सारी चींटियां उसके पास से होकर जा रहीं थीं।
शेख ने उनका बहुत बारीकी से अध्ययन किया।
चींटियां कितनी व्यस्त थीं! परंतु वे जा कहां रहीं थीं ?
वो चींटियों का तने पर चढ़ना देखता रहा और साथ में पेड़ की डाल भी काटता रहा।
वो डाल काठते समय बीच में आई चींटियां को हटाता रहा।
सारी चींटियां अपने सुल्तान से मिलने के लिए जा रही होंगी, शेर ने सोचा।
वो उसे मेरे बारे में बताएंगी।
फिर सुलतान खुद मुझसे मिलने के लिए आएगा।
उसके सिर पर एक छोटी सुनहरी पगड़ी होगी।
उसे देखकर ही मैं उसे पहचान जाऊंगा! वो इतनी सारी चींटियां की जान बचाने के लिए मेरा शुक्रिया अदा करेगा।
फिर वो मेरी कुछ मदद करना चाहेगा। वो मुझे फलां
“सावधान! तुम गिरने वाले हो।” नीचे से गुजरता एक राहगीर चिल्लाया।
कर्र… की एक जोरदार आवाज हुई और जिस डाल को शेख काट रहा था वो टूट कर नीचे गिरी और उसके साथ-साथ शेख भी गिरा!
“तुम्हें चोट तो नहीं आई?” राहगीर ने शेख को उठाते हुए पूछा।
“नहीं,” शेख ने कहा। शेख भाग्यशाली निकला क्योंकि वो पत्तियों के एक ढेर के ऊपर जाकर गिरा।
“अच्छा यह बताइए कि आपको यह कैसे पता चला कि मैं गिरने वाला हूं ? क्या आप कोई ज्योतिषी हैं ?”
राहगीर एक दर्जी थां, ज्योतिषी नहीं।
परंतु वो पैसे बनाने का यह मौका गंवाना नहीं चाहता था।
इसलिए उसने कहा कि वो एक ज्योतिषी हैं।
“तुम अगर मुझे एक रुपया दोगे,” उसने कहा, “तो में तुम्हारा पूरा भविष्य बता दुंगा।”
“परंतु मेरे पास तो सिर्फ एक आना है,” शेख ने अपनी जेब में से सिक्के को टटोलते और उसे देते हुए कहा।
“कम-से-कम मुझे इतना ही बता दो कि में कब तक जिंदा रहूंगा।”
दर्जी ने शेख की हथेली को बहुत करीबी से पढ़ने का नाटक किया।
“मौत तुम्हारा पीछा कर रही है!” उसने बड़ी गंभीरता से कहा !
“हाय अल्लाह!” शेख ने आह भरी।
“परंतु यह तुम्हारी रक्षा करेगा,” दर्जी ने अपनी जेब से एक काला धागा निकालते हुए कूछ मंत्र पढ़ा और फिर धागे को शेख के गले में बांध दिया।
“जब तक धागा टूटेगा नहीं तब तक तुम जीवित रहोगे।”
शेख ने दर्जी का शुक्रिया अदा किया, फिर कटी टहनियों को इकट्ठा किया और फिर गंभीरता से सोचते हुए घर की ओर रवाना हुआ।
“क्या बात है ?” उसकी बीबी फौजिया ने यूछा।
वो घर की कमाई बढ़ाने के लिए कपड़े पर कुछ कढ़ाई कर रही थीं।
कढ़ाई को रखकर वो शेख के पीने के लिए ठंडा पानी लाई अपने गले में बंधे काले धागे को सहलाते हुए सहमी हुई हालत में शेख ने फौजिया को अपनी पूरी आपबीती सुनाई।
फौजिया ने सब सुनने के बाद तुरंत काले धागे को खींचकर तोड़ दिया। “ अब तुम इस पूरी बकवास को हमेशा के लिए भूल सकते हो!” उसने कहा।
शेख तुरंत अपनी आंखे बंद करके लेट गया।
“क्या हुआ ?” फोजिया ने पूछा।
“मैं मर गया हूं,” शेख ने कहा। “तुम्हारे धागा तोड़ने से में अब मर गया हूं!”
तभी उसकी अम्मी घर में घुसीं। “हाय अल्लाह।” वो रोने लगीं, “मेरे बेटे को यह क्‍या हो गया ?”
“अम्मी, आपका लाडला समझ रहा हैं कि वो मर चुका है !”
फौजियों ने कहा और उसके बाद उसने अम्मी को पूरी कहानी सुनाई।
अब अम्मी की बारी थी शेख चिल्ली की बेवकूफी पर हंसने की !
अम्मी और फौजिया ने शेख को बहुत समझाया कि वो मरा नहीं बल्कि अच्छी तरह जिंदा है परंतु शेख उनको एक भी बात सुनने को तैयार नहीं हुआ !
फिर शेख को उसके हाल पर छोड़कर दोनों औरतें घर को अन्य कामों में लग गरयीं। इस बीच शेख जमीन पर एकदम स्रीधा लेटा रहा।
कुछ देर बाद उसने अपनी आंखें खोलीं और चारों ओर देखा।
पर जैसे ही फौजिया ने उसकी तरफ देखा शेख ने झट से अपनी आंखें बंद कर लीं!
फौजिया एक होशियार महिला थी। “अम्मीजी,” उसने जोर से कहा, “अब तो यह मातम का घर है। इस समय मिठाई खाने के बारे में भला कोई कैसे सोच सकता हैं ?
अम्मी, आप जो गर्म-गर्म गुलाब जामुन लायीं हैं, उन्हें हम फेक देते हैं।”
गुलाब जामुन ? शेख की सबसे मनपसंद मिठाई! शेख अब मौत को पूरी तरह भूल चुका था।
“नहीं! नहीं!” उसने उठते हुए कहा। कृपा कर उन्हें मत फेंको। में अब जिंदा हो गया हूं।

 

तेंदुए का शिकार

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
अंत में शेख चिल्ली का भाग्य जागा।
झज्जर के नवाब ने शेख चिल्लीं को नौकरी पर रख लिया था।
शेख चिल्‍ली अब समाज का एक गणमान्य व्यक्ति था।
एक दिन नवाब साहब शिकार के लिए जा रहे थे।
शेख चिल्ली ने भी साथ आने की विनती की।
“अरे मियां, तुम घने जंगलों में क्या करोगे ?”
नवाब ने पूछा। “जंगल कोई दिन में सपने देखने की जगह थोड़े ही है।
क्‍या तुमने कभी किसी चूहे का शिकार किया है, जो तुम अब तेंदुए का शिकार करोगे ?”
“सरकार, आप मुझे बस एक मौका दीजिए अपनी कुशलता दिखाने का,” शेख चिल्ली ने बड़े अदब के साथ फर्माया।
तो अब जनाब शेख चिल्ली भी हाथ में बंदूक थामे शिकार पार्टी के साथ हो लिए।
उसने अपने आपको एक मचाने के ऊपर पाया। थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा पेड़ था जिससे तेंदुए का भोजन – एक बकरी बंधी थी।
चांदनी रात भी। इस माहौल में जब भी तेंदुआ बकरी के ऊपर कूदेगा तो वो साफ दिखाई देगा।
दूसरी मचानों पर नवाब साहब और उनके अनुभवी शिकारी चुपचाप तेंदुए के आने का इंतजार कर रहे थे।
इस तरह जब कई घंटे बीत गए तो शेख चिल्ली कुछ बैचैन होने लगा।
“वो कमबख्त तेंदुआ कहां है ?” उसने मचान पर अपने साथ बैठे दूसरे शिकारी से पूछा।
“चुप बेठो!” शिकारी ने फुसफूुसाते हुए कहा। “इस तरह तुम पूरा बेड़ा ही गर्क कर दोगे।”
शेख चिल्ली चुप हो गया परंतु उसे यह अच्छा नहीं लगा।
यह भी भला कोई शिकार है ? हम सब लोग पेड़ों में छिपे बैठे हैं और एक गरीब से जानवर का इंतजार कर रहे हैं!
हमें अपनी बंदूकें उठाए पैदल चलना चाहिए ! परंतु लोग कहते हैं कि तेंदुआ बहुत तेज दौड़ता है। वो जंगल में उसी तरह दौड़ता है जैसे मेरी पतंग आसमान में दोडती है!
खैर छोड़ो भी। हम उसके पीछे-पीछे दौड़ेंगे। हम अख़िर तक उसका पीछा करेंगे।
धीरे-धीरे करके बाकी शिकारी पीछे रह जाएंगे। मैं उन सब को पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाऊंगा। मैं तेंदुए के एकदम पीछे जाऊंगा।
तेंदुए को पता होगा कि मैं उसके एकदम पीछे हूं। वो रूकेगा। वो मुडेगा।
उसे पता होगा कि अब उसका अँत नजदीक हैं। वो सीधा मेरी आंखों में देखेगा। एक शिकारी की आंखों में देखेगा। और फिर मैँ….
धांय! ओर तेंदुआ, मिमियाती बकरी के सामने मर कर गिर गया। वो बस बकरी की दबोचने वाला ही था!
एक शिकारी बड़ी सावधानी से तेंदुए के मृत शरीर को देखने के लिए गया। तेंदुआ मर चुका था। पर इतनी फूर्ती से उसे किसने मारा था ?
शेख चिल्ली के साथी ने पीठ ठोककर शेख चिल्ली को शाबाशी दी।
“क्या गजब का निशाना है!” उसने कहा। “तुमने तो हम सबको मात कर दिया और आश्चर्य में डाल दिया!”
“शाबाश मियां! शाबाश!” नवाब साहब ने शेख चिल्ली को बधाई देते हुए कहा।
इस बीच में पूरी शिकार पार्टी शेख द्वारा मारे गए तेंदुए का मुआयना करने के लिए इकट्ठी हो गई थी।
“मुझे लगा कि कोई भी शिकार मुझे चुनौती नहीं दे पाएगा, परंतु शेख चिल्ली ने हम सबको सबक सिखा दिया। वाह! क्‍या उम्दा निशाना था!”
शेख चिल्ली ने बड़े अदब से अपना सिर झुकावा। वो तेंदुआ कब आया और कैसे उसकी बंदूक चली इसका शेख चिल्ली को कोई भी अंदाज नहीं था!
परंतु तेंदुआ मर चुका था। और अब शेख चिल्ली एक अन्वल दर्जे का शिकारी बन चुका था! इस बारे में अब किसी को कोई शक नहीं था!

 

सबसे झूठा कौन ?

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
झज्जर के नवाब युद्ध लड़ने के लिए कई महीनों से बाहर गए थें।
उनकी अनुपस्थिति में उनके छोटे भाई – छोटे नवाब ही राज-पाट का सारा काम संभालते थे।
नवाब साहब धीरे-धीरे करके शेख चिल्ली को चाहने लगे थें।
उन्हें उसकी सरलता में आनंद आता था। परंतु छोटे नवाब शेख चिल्ली को पूरी तरह बेवकूफ और कामचोर मानते थे। एक दिन उन्होंने भरी सभा में शेख चिल्ली को डांट और उसका अपमान किया।
“एक अच्छा आदमी बताए हुए काम से भी कहीं ज़्यादा काम करता हैं और एक तुम हों जो सरल से काम को भी ठीक ढंग से नहीं कर पाते हो,” उन्होंने कहा।
“तुम अस्तबल में घोड़ा लेकर जाते हो पर उसे बांधना भूल जाते हो। तुम जब कोई बोझा उठाते हो तो या तो गिर जाते हो या फिर तुम्हारे पैर लड़खड़ाते हैं! तुम जो काम करते हों उसे ध्यान लगाकर क्‍यों नहों करतें हो!”
दरबार में कई सदस्यों को यह सुनकर मजा आया। इस दौरान शेख चिल्ली अपना मुंह लटकाए रहा। उसके कुछ दिनों बाद शेख चिल्ली छोटे नवाब के घर के सामने से होकर जा रहा था जब उसे तुरंत अंदर बुलाया गया।
“किसी अच्छे हकीम को बुलाकर लाओ। जल्दी! बेगम काफी बीमार हैं।”
“जी सरकार,” शेख चिल्‍ली ने कहा और आदेश का पालन करने में फटाफट लग गया। थोड़ी ही देर में एक हकीम, एक कफन बनाने
वाला और दो कब्र खोदने वाले मजदूर भी वहां पहुंच गए!
“यह सब क्‍या हो रहा है ?” छोटे नवाब ने गुस्से में पूछा। “यहां तो कोई भरा नहीं हैं। मैंने तो सिर्फ एक हकीम को बुला लाने के लिए कहा था। बाकी लोगों को कौन बुलाकर लाया हे ?”
“मैं सरकार!” शेख चिल्ली ने कहा। “आपने ही तो कहा था कि एक अच्छा आदमी बताए गए काम से भी बहुत ज्यादा काम करता है।
इसलिए मेने सभी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया। अल्लाह करें कि बेगम साहिबा जल्दी से ठोक हो जाएं। पर हारी-बीमारी में क्या हों जाए यह किसे पता!”
छोटे नवाब शाज-पाट के काम में ज़्यादा रुचि नहीं लेते थे।
वो अपना अधिकतर समय शिकार, शतरंज या अन्य खेलों को खेलने में बिताते थे।
एक दिन उन्होंने एक प्रतियोगिता रखी जिसमें सबसे बड़े झूठ बोलने वाले को विजयी घोषित किया जाना था! जीतने वाले को सोने की एक हजार दीनारें भी मिलनी थीं।
कई झूठ बोलने में माहिर लोग इनाम जीतने के लिए सामने आए। एक ने कहा, “सरकार, मेंने भेंसों से भी बड़ी चींटियां देखीं हैं जो एक बार में चालीस सेर दूध देती हैं!”
“क्यों नहीं?” छोटे नवाब ने कहा। “यह संभव है।”
“सरकार, हर रात मैं चंद्रमा तक उड़ते हुए जाता हूं और सुबह होने से पहले ही उड़कर वापिस आ जाता हूं!” एक अन्य झूठ बोलने वाले ने डींग हांकी।
“हों सकता हैं,” छोटे नवाब ने कहा। “हो सकता है तुम्हारे पास कोई रहस्थमयी ताकत हो।”
“सस्कार,” एक तोंद निकले मोटे आदमी ने कहा, “जबसे मैंने एक तरबूज के कुछ बीज निगले हैं तब से मेरें पेट में छोटे-छोटे तरबूज पैदा हो रहे हैं।
जब कोई तरबूज पक जाता है तो वो फूट जाता है और उससे मुझे अपना भोजन मिल जाता है। अब मुझे और कुछ खाने की जरूरत ही नहीं पड़ती है।”
“तुमने किसी ताकतवर तरबूज के बोज निगल लिए होंगे,” छोटे नवाब ने बिना पलकें झपके कहा।
“सरकार, क्या मुझे भी बोलने की इजाजत है ?” शेख चिल्ली ने पुछा।
“जरूर, छोटे नवाब ने ताना कसते हुए कहा। “तुमसे हम किन प्रतिभाशाली शब्दों की उम्मीद करें ?”
“सरकार, ” शेख चिल्लीं ने जोर से कहा, “आप इस पूरे राज्य के सबसे बड़े बेवकूफ आदमी हैं। आपको नवाब के सिंहासन पर बैठने का कोई हक नहीं हैं।”
पूरी राजसभा में सन्नाटा छा गया। तब छोटे नवाब चिल्लाए, “पहरेदारों, इस नाचीज को गिरफ्तार कर लो!”
शेख चिल्ली को फ्कड़ा गया और खींच कर लाया गया।
“निकम्मे, बेशरम!” छोटे नवाब का गुस्सा उबल कर बाहर निकला, “तुम्हारी यह जुर्रत कैसे हुई! अगर तुमने इसी वक्‍त हमारें पैरों में गिरकर माफ़ी नहीं मांगी तो तुम्होरा सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा!”
“पर सरकार,” शेख चिल्ली ने विरोध जताते हुए कहा, “आपने ही तो कहा था कि आप दुनिया का सबसे बड़ा झूठ सुनना चाहते हैं!” फिर वो निष्कपट भाव से छोटे नवाब को देखने लगा। “जो कुछ मैंने कहा उससे बड़ा क्या और कोई झूठ हो सकता हे ?”
छोटे नवाब को समझ में नहीं आया कि क्या करें! क्‍या शेख चिल्‍ली अब झूठ बोल रहा है या वो पहले झूठ बोल रहा था ? शेख चिल्ली उतना बड़ा बेवकूफ नहीं था जितना छोटे नवाब उसे समझते थे!
छोटे नवाब धीमे से हंसे और उन्होंने कहा, “शाबाश! तुम ईनाम जीते! ”
सब लोगों ने शेख चिल्‍ली की अकल को सराहा। वो शान से हजार सोने की दीनारें लेकर घर गया। छोटे नवाब चाहें थोडे बेवकूफ हों परंतु वो हैं दिलदार, शेख ने सोचा।

 

चोरी और इनाम

शेखचिल्ली की कहानी – Shekh Chilli Ki Kahani
झज्जर राज्य पूरी तरह डर के माहौल में ग्रस्त था।
कई हफ्तों से लगातार चोरियां हो रहीं थीं और हर बार चोर आसानी से भागने में सफल हो जाता था।
रईसों के घरों में चोरी हुई थी और गरीबों के घरों में भी।
जब राजकोश में चोरी हुई तब नवाब साहब कुछ जागे।
एक राजसी फरमान जारी किया गया।
जो कोई भी चोर को पकडेगा उसका नवाब साहब सम्मान करेंगे और उसे इतना धन दिया जाएगा जिससे वो अपनी बाकी जिंदगी सुख-चैन से बिता सके।
शेख चिल्ली इस पूरे नाटक से अविचलित था।
उसके घर में चोर को आमंत्रित करने वाला कुछ था ही नही।
नवाब साहब से अच्छी तनख्वाह पाने के बाद भी शेख चिल्ली और उसकी पत्नी की कोई बहुत अच्छी हालत नहीं थीं।
अक्सर वो अपनों तनख्वाह का कुछ हिस्सा बेकार के सपनों या काम के समय किसी बेवकूफी में गंवा देता था।
जब कभी भी उसकी जेब में पैसे होते तो वो उन्हें बड़ी खुशी और दरियादिली से खर्च करता। वो गरीब लोगों की मदद करने से कभी नहीं चूकता।
एक दिन शेंख चिल्ली ने पड़ोसी राज्य में जाकर एक मशहूर फकीर की दुआ लेने की सोची।
इसका मतलब उसे घर से चार दिनों के लिए बाहर रहना था।
“हाय अल्लाह! तुम मुझे इस डर के माहौल में इतने दिनों के लिए छोडकर जाने की बात सोच रहे हो!”
उसको बीबी फौजिया ने कहा। “ अगर इस बीच में घर में चोर आ धमका तो क्या होगा ?”
“बेगम, कोई भी समझदार चोर हम पर अपना समय बरबाद नहीं करेगा!” शेखर ने उसे दिलासा दिलाते हुए कहा! “जब तक मैं वापिस नहीं आता तब तक हमारी पड़ोसिन तुम्हारे साथ रात को आ कर सोया करेंगी।
और किसे पता ? यह भी हो सकता है मैं, हम दोनों के लिए कोई अच्छी तकदीर लेकर वापिस लौटूं !”
अगली सुबह वो रवाना हो गया और फिर कुछ दिनों बाद उस फकीर का दिया हुआ एक तावीज लेकर वापिस लौटा।
“फकीर ने कहा कि इस तावीज से हमारे घर में सुख और शांति कायम रहेगी,” शेख चिल्ली ने कहा।
फौजिया ने प्रार्थना के अंदाज में उस तावीज को अपनी आंखों और ओठो से छुआया। “इंशाअल्लाह!” उसने हल्के से कहा।
भोजन के बाद शेख चिल्‍ली अपने घर की छत पर चला गया।
काले आममान में हजारों-लाखों सितारे झिलमिला रहे थे।
छत पर टहल-कदमी करते समय शेख चिल्ली का दिमाग तमाम खुशहाल यादों से भर गया।
उसे अपनी प्यारी मरहूम अम्मी की याद आई। उसे अपने अब्बाजान की भी कुछ धुंधलीं सी याद आई! जब शेख बिल्कुल छोटा था तभी अब्बा का देहांत हो गया था। शेख को अपने बचपन के मुक्त दिनों की भी याद आई।
कैसे उसकी पतंग आसमान को छूती थी, जैसे कोई जिंदा जानवर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा हो – ऊपर, ऊपर और ऊपर!
शेख चिल्ली अपनी यादों की दुनिया में खो गया। वो चहल-कदमी करता-करता सीधे अपनी छत से नीचे कच्ची सड़क पर एक जोरदार आवाज… धम्म! से आकर गिरा
वो भाग्यशाली रहा क्योंकि दो-चार खरोंचों के अलावा उसे कोई खास चोट नहीं आई।
वो सड़क पर गिरने की बजाए घुराने कपड़ों की एक गठरी पर आकर गिरा था।
जैसे ही पड़ोस के लोग अपनी लालटेनें लेकर मौके पर शिनाख्त करने के लिए पहुंचे उन्हें कुछ पुराने कपड़े उठाकर भागते हुए दिखाई दिए! उन्होंने उस भागते हुए आदमी को तुरंत पकड़ लिया और उसे फौरन बेनकाब किया।
वो वही चोर निकला जिसने काफी असे से पूरे राज्य में आतंक मचाया था! चोर शेख चिल्ली के घर चोरी करने के लिए आया था।
उसे उम्मीद थी कि बेेफिक्र रहने वाले शेख चिल्ली के घर पर, जरूर कहां धन छिपा हुआ होगा!
अगले दिन नवाब साहब ने सारी सभा क॑ सामने चोर को पकड़ने कं लिए शेख चिल्ली को बधाई दी और इस बात की भी पुष्टि की कि भकिष्व में शेख चिल्ली के परिवार का पूरा खर्च राजकोश वहन करेगा।
तावीज का आशीर्वाद फल-फूल रहा था !

 

कैसे नाम पड़ा शेखचिल्ली ?

Kaise Naam Pada Sheikh Chilli ? Sheikh Chilli Story – शेखचिल्ली की कहानी
शेखचिल्ली के बारे में यही कहा जाता है कि उसका जन्म किसी गांव में एक गरीब शेख परिवार में हुआ था।
पिता बचपन में ही गुजर गए थे, मां ने पाल-पोस कर बड़ा किया।
मां सोचती थी कि एक दिन बेटा बड़ा होकर कमाएगा तो गरीबी दूर होगी।
उसने बेटे को पढ़ने के लिए मदरसे में दाखिला दिला दिया।
सब बच्चे उसे ‘शेख’ कहा करते थे।
मौलवी साहब ने पढ़ाया, लड़का है तो ‘खाता’ है और लड़की है तो ‘खाती’ है ।
जैसे रहमान जा रहा है, रजिया जा रही है।
एक दिन एक लड़की कुएं में गिर पड़ी। वह मदद के लिए चिल्ला रही थी।
शेख दौड़कर साथियों के पास आया और बोला वह मदद के लिए चिल्ली रही है।
पहले तो लड़के समझे नहीं। फिर शेखचिल्ली उन्हें कुएं पर ले गया।
उन्होंने लड़की को बाहर निकाला। वह रो रही थी।
शेख बार-बार समझा रहा था- ‘देखो, कैसे चिल्ली रही है। ठीक हो जाएगी।
किसी ने पूछा- ‘शेख! तू बार-बार इससे ‘चिल्ली-चिल्ली क्यों कह रहा है ?
शेख बोला- ‘लड़की है तो ‘चिल्ली’ ही तो कहेंगे। लड़का होता तो कहता चिल्ला मत।
लड़कों ने शेख की मूर्खता समझ ली और उसे ‘चिल्ली-चिल्ली’ कहकर चिढ़ाने लगे।
उसका तो फिर नाम ही ‘शेखचिल्ली हो गया।
असल बात फिर भी शेख चिल्ली की समझ में न आई। न ही उसने नाम बदलने का बुरा माना।

 

सड़क यहीं रहती है

एक दिन शेखचिल्ली कुछ लड़कों के साथ, अपने कस्बे के बाहर एक पुलिया पर बैठा था।
तभी एक सज्जन शहर से आए और लड़कों से पूछने लगे, “क्यों भाई, शेख साहब के घर को कौन-सी सड़क गई है ?”
शेखचिल्ली के पिता को सब ‘शेख साहब’ कहते थे ।
उस गाँव में वैसे तो बहुत से शेख थे, परंतु ‘शेख साहब’ चिल्ली के अब्बाजान ही कहलाते थे ।
वह व्यक्ति उन्हीं के बारे में पूछ रहा था। वह शेख साहब के घर जाना चाहता था ।
परन्तु उसने पूछा था कि शेख साहब के घर कौन-सा रास्ता जाता है।
शेखचिल्ली को मजाक सूझा । उसने कहा, “क्या आप यह पूछ रहे हैं कि शेख साहब के घर कौन-सा रास्ता जाता है ?”
“‘हाँ-हाँ, बिल्कुल !” उस व्यक्ति ने जवाब दिया ।
इससे पहले कि कोई लड़का बोले, शेखचिल्ली बोल पड़ा, “इन तीनों में से कोई भी रास्ता नहीं जाता ।”
“‘तो कौन-सा रास्ता जाता है ?”
“‘कोई नहीं ।'”
“क्या कहते हो बेटे?’ शेख साहब का यही गाँव है न ? वह इसी गाँव में रहते हैं न ?”
“हाँ, रहते तो इसी गाँव में हैं ।”
“‘मैं यही तो पूछ रहा हूँ कि कौन-सा रास्ता उनके घर तक जाएगा ”
“साहब, घर तक तो आप जाएंगे ।” शेखचिल्ली ने उत्तर दिया, “यह सड़क और रास्ते यहीं रहते हैं और यहीं पड़े रहेंगे । ये कहीं नहीं जाते। ये बेचारे तो चल ही नहीं सकते।
इसीलिए मैंने कहा था कि ये रास्ते, ये सड़कें कहीं नहीं जाती । यहीं पर रहती हैं ।
मैं शेख साहब का बेटा चिल्ली हूँ ।
मैं वह रास्ता बताता हूँ, जिस पर चलकर आप घर तक पहुँच जाएंगे ।”
“अरे बेटा चिल्ली !” वह आदमी प्रसन्न होकर बोला, “तू तो वाकई बड़ा समझदार और बुद्धिमान हो गया है ।
तू छोटा-सा था जब मैं गाँव आया था । मैंने गोद में खिलाया है तुझे ।
चल बेटा, घर चल मेरे साथ । तेरे अब्बा शेख साहब मेरे लँगोटिया यार हैं ।
और मैं तेरे रिश्ते की बात करने आया हूँ । मेरी बेटी तेरे लायक़ है ।
तुम दोनों की जोड़ी अच्छी रहेगी । अब तो मैं तुम दोनों की सगाई करके ही जाऊँगा ।”
शेखचिल्ली उस सज्जन के साथ हो लिया और अपने घर ले गया । कहते हैं, आगे चलकर यही सज्जन शेखचिल्ली के ससुर बने ।

 

बुखार का इलाज

बुखार का इलाज – शेखचिल्ली की की मनमोहक कहानी
शेखचिल्ली अपने घर के बरामदे में बैठे-बैठे खुली आँखों से सपने देख रहे थे।
उनके सपनों में एक विशालकाय पतंग उड़ी जा रही और शेखचिल्ली उसके ऊपर सवार थे।
कितना आनंद आ रहा था आसमान में उड़ते हुए नीचे देखने में।
हर चीज़ छोटी नज़र आ रही थी।
तभी अम्मी की तेज़ आवाज ने उन्हें ख्यालों की दुनिया से बाहर निकाल दिया- “शेखचिल्ली ! शेखचिल्ली ! कहाँ हो तुम ?
‘आया अम्मी’, ख्यालों की दुनिया से निकल कर शेखचिल्ली घर के आँगन में पहुँचे।
“मैं सलमा आपा के घर जा रही हूँ।
उनकी बेटी की शादी की तैयारी कराने। शाम में आऊँगी।
आऊँगी तो तुम्हारे लिए मिठाइयाँ भी लेकर आऊँगी।
तब तक तुम दरांती लेकर जंगल से पड़ोसी की गाय के लिए घास काट लाना।
कुछ पैसे मिल जायेंगे।”
“जी अम्मी” शेखचिल्ली ने कहा और दरांती उठाकर जंगल जाने के लिए तैयार हो गए।
“सावधानी से जाना और दिन में सपने मत देखने लग जाना। दरांती को होशियारी से पकड़ना, कहीं हाथ न कट जाए।” अम्मी ने समझाते हुए कहा।
“आप बिलकुल चिंता ना करें।
मैं पूरी सावधानी रखूंगा।” शेख ने अम्मी को दिलासा दिया।
शेखचिल्ली हाथ में दरांती लिए जंगल की ओर निकल पड़े।
चलते-चलते उन्हें उन मिठाइयों का ध्यान आया, जो अम्मी ने लाने को कहा था।
‘कौन सी मिठाई लाएँगी अम्मी ?
शायद गुलाब जामुन। स्वादिष्ट, भूरे, चाशनी में डूबे गुलाब जामुन।’ उनके मुंह में पानी आने लगा।
अचानक राह चलते ठोकर लगी और शेखचिल्ली वर्तमान में वापस आ गए। ‘ओह्ह , क्या कर रहा हूँ मैं।
अम्मी ने मना किया था, रास्ते में सपने देखने को।’ उन्होंने अपने आप को समझाया।
खैर, जंगल पहुँच कर दोपहर तक शेखचिल्ली ने काफी घास काट ली।
उन्होंने घास का एक बड़ा सा गट्ठर बनाया और उसे सर पर रख कर वापस आ गए।
गट्ठर को उन्होंने पड़ोसी के घर देकर पैसे ले लिए, तब उन्हें याद आया कि दरांती तो वो जंगल में ही छोड़ आये।
दरांती वापस लानी ही थी, नहीं तो अम्मी के गुस्से का सामना करना पड़ता। शेखचिल्ली दौड़ते हुए वापस जंगल पहुँचे।
दरांती वहीँ पड़ी हुई थी, जहाँ उन्होंने छोड़ी थी। शेखचिल्ली ने जैसे ही दरांती को छुआ, उन्हें झटका सा लगा और दरांती हाथ से छूट गयी।
धूप में पड़े पड़े दरांती का लोहा खूब गर्म हो गया था। वे दरांती को उलट-पलट कर देख रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर दरांती इतनी गर्म कैसे हुई।
वो अभी दरांती का निरीक्षण ही कर रहे थे कि उनके पड़ोस में रहने वाला जुम्मन उधर से गुजरा।
शेखचिल्ली को यूं अपनी दरांती को घूरते देखकर जुम्मन ने पूछा-“क्या बात है ?
तुम दरांती को ऐसे क्यों घूर रही हो ?”
“मेरी दरांती को कुछ हो गया है। ये काफी गर्म हो गयी है।” शेखचिल्ली ने चिंतित स्वर में कहा।
जुम्मन को शेख की बात पर हंसी आ गयी।
मन-ही-मन हँसते हुए, ऊपर से गंभीर स्वर में उसने कहा-“तुम्हारी दरांती को बुखार हो गया है।”
“ओह्ह! फिर तो इसे हकीम के पास ले जाना पड़ेगा।” शेखचिल्ली की चिंता बढ़ गई।
“अरे नहीं, मुझे पता है बुखार का इलाज। मेरी दादी को अक्सर बुखार होता है।
हकीम कैसे उनका इलाज करता है, मैंने देखा है। मेरे साथ आओ, मैं करता हूँ इसका इलाज।”
लल्लन ने कहा। उसके चालाक दिमाग में दरांती हथियाने की एक योजना बन चुकी थी।
आगे-आगे दरांती उठाये जुम्मन चला और उसके पीछे शेखचिल्ली चले।
चलते-चलते जुम्मन एक कुएँ के पास रुका और दरांती में एक रस्सी बाँधकर उसे कुएँ के पानी में लटका दिया।
“इसे शाम तक ऐसे ही लटके रहने दो।
शाम तक इसका बुखार उतर जाएगा, तब आकर इसे ले जाना।” जुम्मन ने सोचा कि शेखचिल्ली के जाने के थोड़ी देर बाद वह आकर दरांती निकाल ले जाएगा और बाजार में बेच देगा।
शेख ने वैसा ही किया और घर जाकर सो गये।
शाम में जब नींद खुली तो उन्होंने सोचा दरांती का हालचाल लिया जाय।
घर से निकलकर जैसे ही वो कुएँ की तरफ़ बढ़े, जुम्मन के घर से किसी के कराहने की आवाज़ सुनाई दी।
उन्होंने अंदर जाकर देखा, जुम्मन की दादी बेसुध पड़ी कराह रही थी।
शेखचिल्ली ने उनका हाथ छूकर देखा, हाथ काफी गर्म था।
उन्होंने ने सोचा, ‘जुम्मन की दादी को बुखार है।
जुम्मन ने दिन में मेरी मदद की।
मुझे भी उसकी मदद करनी चाहिए।’
शेखचिल्ली ने आसपास देखा। निकट ही रस्सी पड़ी थी।
उन्होंने जुम्मन की दादी को रस्सी से बाँधा और कंधे पर लादकर कुएँ की ओर ले जाने लगे।
पड़ोसियों ने देखा तो उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन शेखचिल्ली ने किसी की नहीं सुनी और दादी को लेकर कुएँ तक जा पहुँचे।
कुएँ पर पहुँच कर उन्होंने अपनी दरांती कुएँ से बाहर निकाली।
दादी के लिए दवा लेने जाने के कारण जुम्मन को दरांती निकालने का वक्त नहीं मिला था।
शेखचिल्ली ने दरांती को निकाल कर एक ओर रखा और जुम्मन की दादी को कुएँ में लटकाने की तैयारी करने लगे।
दूसरी ओर, जब जुम्मन और उसके अब्बा हकीम से दादी के लिए दवा लेकर लौटे तो पड़ोसियों ने बताया कि शेखचिल्ली रस्सियों में बांधकर दादी को कुएँ की ओर ले गया।
दोनों भागते हुए कुएँ तक पहुँचे तो देखा कि शेखचिल्ली दादी को कुएँ में लटकाने ही वाले थे।
“अरे बेवकूफ, ये क्या कर रहा है?” जुम्मन के अब्बा ने चिल्लाकर कहा।
“ओह्ह, आ गए आप। मैं दादी के बुखार का इलाज कर रहा था।” शेखचिल्ली ने उत्तर दिया।
“ऐसे कहीं बुखार का इलाज होता है? किस पागल ने बताया तुझे ?” जुम्मन के अब्बा ने अपनी माँ की रस्सियाँ खोलते हुए पूछा।
“मुझे तो जुम्मन ने ही बताया।” शेखचिल्ली ने जुम्मन की ओर इशारा करते हुए कहा।
जुम्मन के अब्बा ने घूरकर जुम्मन की ओर देखा। जुम्मन सर झुकाए खड़ा था।
उन्होंने डंडा उठाया और जुम्मन की ओर लपके।
अब जुम्मन आगे-आगे और उसके अब्बा पीछे-पीछे।
हैरान शेखचिल्ली अपनी दरांती के साथ घर वापस लौट आये, जहाँ अम्मी गुलाब जामुन के साथ उनका इंतज़ार कर रही थीं।

 

शेखचिल्ली की खीर

शेखचिल्ली पूरा बेवक़ूफ़ था और हमेशा बेवकूफी भरी बातें ही करता था।
शेख चिल्ली की माँ उसकी बेवकूफी भरी बातों से बहुत परेशान रहती थी।
एक बार शेखचिल्ली ने अपनी माँ से पूछा कि माँ लोग मरते कैसे हैं ?
अब माँ सोचने लगी कि इस बेवक़ूफ़ को कैसे समझाया जाए कि लोग कैसे मरते हैं, माँ ने कहा कि बस आँखें बंद हो जाती हैं और लोग मर जाते हैं।
शेखचिल्ली ने सोचा कि उसे एक बार मर कर देखना चाहिए।
उसने गाँव के बाहर जाकर एक गड्ढा खोदा और उसमें आँखें बंद करके लेट गया।
रात होने पर उस रास्ते से दो चोर गुजरे।
एक चोर ने दुसरे से कहा कि हमारे साथ एक साथी और होता तो कितना अच्छा होता, एक घर के आगे रहता दूसरा घर के पीछे रहता और तीसरा आराम से घर के अंदर चोरी करता।
शेखचिल्ली यह बात सुन रहा था, वो अचानक बोल पड़ा “भाइयों मैं तो मर चुका हूँ, अगर जिन्दा होता तो तुम्हारी मदद कर देता।” चोर समझ गए कि यह बिलकुल बेवक़ूफ़ आदमी है।
एक चोर शेखचिल्ली से बोला “भाई जरा इस गड्ढे में से बाहर निकल कर हमारी मदद कर दो, थोड़ी देर बाद आकर फिर मर जाना।
मरने की ऐसी भी क्या जल्दी है।” शेखचिल्ली को गड्ढे में पड़े पड़े बहुत भूख लगने लगी थी और ठंड भी, उसने सोचा कि चलो चोरों की मदद ही कर दी जाए।
तीनों ने मिल कर तय किया की शेखचिल्ली अंदर चोरी करने जाएगा, एक चोर घर के आगे खड़ा रहकर ध्यान रखेगा और दूसरा चोर घर के पीछे ध्यान रखेगा।
शेखचिल्ली को तो बहुत अधिक भूख लगी थी इसलिए वो चोरी करने के बजाय घर में कुछ खाने पीने की चीजें ढूंढने लगा।
रसोई में शेखचिल्ली को दूध, चीनी और चावल रखे हुए मिल गए।
“अरे वाह! क्यों न खीर बनाकर खाई जाए” – शेखचिल्ली ने सोचा और खीर बनानी शुरू कर दी। रसोई में ही एक बुढ़िया ठण्ड से सिकुड़ कर सोई हुई थी।
जैसे ही बुढ़िया को चूल्हे से आँच लगनी शुरू हुई तो गर्मी महसूस होने पर सही से खुल कर सोने के लिए उसने अपने हाथ फैला दिए।
शेखचिल्ली ने सोचा कि यह बुढ़िया खीर मांग रही है।
शेखचिल्ली बोला – “अरी बुढ़िया मैं इतनी सारी खीर बना रहा हूँ, सारी अकेला थोड़े ही खा लूंगा, शांति रख, तुझे भी खिलाऊंगा।”
लेकिन बुढ़िया को जैसे जैसे सेंक लगती रही तो वो और ज्यादा फ़ैल कर सोने लगी, उसने हाथ और भी ज़्यादा फैला दिए।
शेखचिल्ली को लगा कि यह बुढ़िया खीर के लिए ही हाथ फैला रही है, उसने झुंझला कर गरम गरम खीर बुढ़िया के हाथ पर रख दी।
बुढ़िया का हाथ जल गया। चीखती चिल्लाती बुढ़िया एकदम हड़बड़ा कर उठ गई और शेखचिल्ली पकड़ा गया।
शेखचिल्ली बोला – “अरे मुझे पकड़ कर क्या करोगे, असली चोर तो बाहर हैं।
मुझे बहुत भूख लगी थी, मैं तो अपने लिए खीर बना रहा था।
इस तरह शेखचिल्ली ने अपने साथ साथ असली चोरों को भी पकड़वा दिया।

 

शेखचिल्ली और कुएं की परियां

एक गांव में एक सुस्त और कामचोर आदमी रहता था।
काम – धाम तो वह कोई करता न था, हां बातें बनाने में बड़ा माहिर था।
इसलिए लोग उसे शेखचिल्ली कहकर पुकारते थे।
शेखचिल्ली के घर की हालत इतनी खराब थी कि महीने में बीस दिन चूल्हा नहीं जल पाता था।
शेखचिल्ली की बेवकूफी और सुस्ती की सजा उसकी बीवी को भी भुगतनी पड़ती और भूखे रहना पड़ता।
एक दिन शेखचिल्ली की बीवी को बड़ा गुस्सा आया।
वह बहुत बिगड़ी और कहा,”अब मैं तुम्हारी कोई भी बात नहीं सुनना चाहती। चाहे जो कुछ करो, लेकिन मुझे तो पैसा चाहिए।
जब तक तुम कोई कमाई करके नहीं लाओगे, मैं घर में नहीं, घुसने दूंगी।”यह कहकर बीवी ने शेखचिल्ली को नौकरी की खोज में जाने को मजबूर कर दिया।
साथ में, रास्ते के लिए चार रूखी – सूखी रोटियां भी बांध दीं।
साग – सालन कोई था ही नहीं, देती कहाँ से ? इस प्रकार शेखचिल्ली को न चाहते हुए भी नौकरी की खोज में निकलना पड़ा।
फिर भी एक गांव से दूसरे गांव तक दिन भर भटकते रहे।
घर लौट नहीं सकते थे, क्योंकि बीवी ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि जब तक नौकरी न मिल जाए, घर में पैर न रखना।
दिन भर चलते – चलते जब शेखचिल्ली थककर चूर हो गए तो सोचा कि कुछ देर सुस्ता लिया जाए।
भूख भी जोरों की लगी थी, इसलिए खाना खाने की बात भी उनके मन में थी।
तभी कुछ दूर पर एक कुआं दिखाई दिया। शेखचिल्ली को हिम्मत बंधी और उसी की ओर बढ़ चले। कुएं के चबूतरे पर बैठकर शेखचिल्ली ने बीवी की दी हुई रोटियों की पोटली खोली।
उसमें चार रूखी – सूखी रोटियां थीं।
भूख तो इतनी जोर की लगी थी कि उन चारों से भी पूरी तरह न बुझ पाती।
लेकिन समस्या यह भी थी कि अगर चारों रोटियों आज ही खा डालीं तो कल – परसों या उससे अगले दिन क्या करूंगा, क्योंकि नौकरी खोजे बिना घर घुसना नामुमकिन था।
इसी सोच-विचार में शेखचिल्ली बार – बार रोटियां गिनते और बारबार रख देते।
समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए।
जब शेखचिल्ली से अपने आप कोई फैसला न हो पाया तो कुएं के देव की मदद लेनी चाही। वह हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले,”हे बाबा, अब तुम्हीं हमें आगे रास्ता दिखाओ।
दिन भर कुछ भी नहीं खाया है। भूख तो इतनी लगी है कि चारों को खा जाने के बाद भी शायद ही मिट पाए।
लेकिन अगर चारों को खा लेता हूँ तो आगे क्या करूंगा? मुझे अभी कई दिनों यहीं आसपास भटकना है।
इसलिए हे कुआं बाबा, अब तुम्हीं बताओ कि मैं क्या करूं! एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं चारों खा जाऊं ?”लेकिन कुएं की ओर से कोई जवाब नहीं मिला।
वह बोल तो सकता नहीं था, इसलिए कैसे जवाब देता!
उस कुएं के अन्दर चार परियां रहती थीं।
उन्होंने जब शेखचिल्ली की बात सुनी तो सोचा कि कोई दानव आया है जो उन्हीं चारों को खाने की बात सोच रहा है।
इसलिए तय किया कि चारों को कुएं से बाहर निकालकर उस दानव की विनती करनी चाहिए, ताकि वह उन्हें न खाए। यह सोचकर चारों परियां कुएं से बाहर निकल आई।
हाथ जोड़कर वे शेखचिल्ली से बोलीं,”हे दानवराज, आप तो बड़े बलशाली हैं! आप व्यर्थ ही हम चारों को खाने की बात सोच रहे हैं।
अगर आप हमें छोड़ दें तो हम कुछ ऐसी चीजें आपको दे सकती हैं जो आपके बड़े काम आएंगी।”परियों को देखकर व उनकी बातें सुनकर शेखचिल्ली हक्के – बक्के रह गए। समझ में न आया कि क्या जवाब दे।
लेकिन परियों ने इस चुप्पी का यह मतलब निकाला कि उनकी बात मान ली गई।
इसलिए उन्होंने एक कठपुतला व एक कटोरा शेखचिल्ली को देते हुए कहा,”हे दानवराज, आप ने हमारी बात मान ली, इसलिए हम सब आपका बहुत – बहुत उपकार मानती हैं।
साथ ही अपनी यह दो तुच्छ भेंटें आपको दे रही हैं।
यह कठपुतला हर समय आपकी नौकरी बजाएगा। आप जो कुछ कहेंगे, करेगा।
और यह कटोरा वह हर एक खाने की चीज आपके सामने पेश करेगा, जो आप इससे मांगेंगे।”इसके बाद परियां फिर कुएं के अन्दर चली गई।
इस सबसे शेखचिल्ली की खुशी की सीमा न रही।
उसने सोचा कि अब घर लौट चलना चाहिए।
क्योंकि बीवी जब इन दोनों चीजों के करतब देखेगी तो फूली न समाएगी।
लेकिन सूरज डूब चुका था और रात घिर आई थी, इसलिए शेखचिल्ली पास के एक गांव में चले गए और एक आदमी से रात भर के लिए अपने यहाँ ठहरा लेने को कहा।
यह भी वादा किया कि इसके बदले में वह घर के सारे लोगों को अच्छे – अच्छे पकवान व मिठाइयां खिलाएंगे। वह आदमी तैयार हो गया और शेखचिल्ली को अपनी बैठक में ठहरा लिया।
शेखचिल्ली ने भी अपने कटोरे को निकाला और उसने अपने करतब दिखाने को कहा।
बात की बात में खाने की अच्छी – अच्छी चीजों के ढेर लग गए।
जब सारे लोग खा – पी चुके तो उस आदमी की घरवाली जूठे बरतनों को लेकर नाली की ओर चली।
यह देखकर शेखचिल्ली ने उसे रोक दिया और कहा कि मेरा कठपुतला बर्तन साफ कर देगा।
शेखचिल्ली के कहने भर की देर थी कि कठपुतले ने सारे के सारे बर्तन पल भर में निपटा डाले।
शेखचिल्ली के कठपुतले और कटोरे के यह अजीबोगरीब करतब देखकर गांव के उस आदमी और उसकी बीवी के मन में लालच आ गया शेखचिल्ली जब सो गए तो वह दोनों चुपके से उठे और शेखचिल्ली के कटोरे व कठपुतले को चुराकर उनकी जगह एक नकली कठपुतला और नकली ही कटोरा रख दिया।
शेखचिल्ली को यह बात पता न चली।
सबेरे उठकर उन्होंने हाथ – मुंह धोया और दोनों नकली चीजें लेकर घर की ओर चल दिए।
घर पहुंचकर उन्होंने बड़ी डींगें हांकी और बीवी से कहा,”भागवान, अब तुझे कभी किसी बात के लिए झींकना नहीं पड़ेगा।
न घर में खाने को किसी चीज की कमी रहेगी और न ही कोई काम हमें – तुम्हें करना पड़ेगा।
तुम जो चीज खाना चाहोगी, मेरा यह कटोरा तुम्हें खिलाएगा और जो काम करवाना चाहोगी मेरा यह कठपुतला कर डालेगा।”लेकिन शेखचिल्ली की बीवी को इन बातों पर विश्वास न हुआ।
उसने कहा,”तुम तो ऐसी डींगे रोज ही मारा करते हो। कुछ करके दिखाओ तो जानूं।”हां, क्यों नहीं ?”शेखचिल्ली ने तपाक से जबाव दिया और कटोरा व कठपुतलें में अपने – अपने करतब दिखाने को कहा।
लेकिन वह दोनों चीजें तो नकली थीं, अत: शेखचिल्ली की बात झूठी निकली।
नतीजा यह हुआ कि उनकी बीवी पहले से ज्यादा नाराज हो उठी। कहा,”तुम मुझे इस तरह धोखा देने की कोशिश करते हो।
जब से तुम घर से गए हो, घर में चूल्हा नहीं जला है।
कहीं जाकर मन लगाकर काम करो तो कुछ तनखा मिले और हम दोनों को दो जून खाना नसीब हो।
इन जादुई चीजों से कुछ नहीं होने का।”
बेबस शेखचिल्ली खिसियाए हुए – से फिर चल दिए। वह फिर उसी कुएं के चबूतरे पर जाकर बैठ गए।
समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। जब सोचते – सोचते वह हार गए और कुछ भी समझ में न आया तो उनकी आंखें छलछला आई और रोने लगे।
यह देखकर कुएं की चारों परियां फिर बाहर आयी और शेखचिल्ली से उनके रोने का कारण पूछा। शेखचिल्ली ने सारी आपबीती कह सुनाई।
परियों को हंसी आ गई। वे बोलीं,”हमने तो तुमको कोई भयानक दानव समझा था।
और इसलिए खुश करने के लिए वे चीजें दी थीं।
लेकिन तुम तो बड़े ही भोले – भाले और सीधे आदमी निकले। खैर, घबराने की जरूरत नहीं। हम तुम्हारी मदद करेंगी।
तुम्हारा कठपुतला और कटोरा उन्हीं लोगों ने चुराया है, जिनके यहाँ रात को तुम रुके थे। इस बार तुम्हें एक रस्सी व डंडा दे रही हैं।
इनकी मदद से तुम उन दोनों को बांध व मारकर अपनी दोनों चीजें वापस पा सकते हो।”इसके बाद परियां फिर कुएं में चली गयीं।
जादुई रस्सी – डंडा लेकर शेखचिल्ली फिर उसी आदमी के यहाँ पहुंचे और कहा,”इस बार मैं तुम्हें कुछ और नये करतब दिखाऊंगा।
“वह आदमी भी लालच का मारा था। उसने समझा कि इस बार कुछ और जादुई चीजें हाथ लगेंगी।
इसलिए उसमें खुशीखुशी शेखचिल्ली को अपने यहाँ टिका लिया। लेकिन इस बार उल्टा ही हुआ।
शेखचिल्ली ने जैसे ही हुक्म दिया वैसे ही उस घरवाले व उसकी बीवी को जादुई रस्सी ने कस कर बांध लिया और जादुई डंडा दनादन पिटाई करने लगा।
अब तो वे दोनों चीखने – चिल्लाने और माफी मांगने लगे।
शेखचिल्ली ने कहा,”तुम दोनों ने मुझे धोखा दिया है।
मैंने तो यह सोचा था कि तुमने मुझे रहने को जगह दी है, इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ कोई भलाई कर दूं।
लेकिन तुमने मेरे साथ उल्टा बर्ताव किया! मेरे कठपुतले और कटोरे को ही चुरा लिया।
अब जब वे दोनों चीजें तुम मुझे वापस कर दोगे, तभी मैं अपनी रस्सी व डंडे को रुकने का हुक्म दूंगा।”उन दोनों ने झटपट दोनों चुराई हुई चीजें शेखचिल्ली को वापस कर दीं।
यह देखकर शेखचिल्ली ने भी अपनी रस्सी व डंडे को रुक जाने का हुक्म दे दिया।
अब अपनी चारों जादुई चीजें लेकर शेखचिल्ली प्रसन्न मन से घर को वापस लौट पड़े।
जब बीवी ने फिर देखा कि शेखचिल्ली वापस आ गए हैं तो उसे बड़ा गुस्सा आया।
उसे तो कई दिनों से खाने को कुछ मिला नहीं था, इसलिए वह भी झुंझलाई हुई थी। दूर से ही देखकर वह चीखी,”कामचोर तुम फिर लौट आए! खबरदार, घर के अंदर पैर न रखना! वरना तुम्हारे लिए बेलन रखा है।
“यह सुनकर शेखचिल्ली दरवाजे पर ही रुक गए! मन ही मन उन्होंने रस्सी व डंडे को हुक्म दिया कि वे उसे काबू में करें।
रस्सी और डंडे ने अपना काम शुरू कर दिया। रस्सी ने कसकर बांध लिया और डंडे ने पिटाई शुरू कर दी।
यह जादुई करतब देखकर बीवी ने भी अपने सारे हथियार डाल दिए और कभी वैसा बुरा बर्ताव न करने का वादा किया।
तभी उसे भी रस्सी व डंडे से छुटकारा मिला।
अब शेखचिल्ली ने अपने कठपुतले व कटोरे को हुक्म देना शुरू किया।
बस, फिर क्या था! कठपुतला बर्तन – भाड़े व जिन – जिन चीजों की कमी थी झटपट ले आया और कटोरे ने बात की बात में नाना प्रकार के व्यंजन तैयार कर दिए।