shankh

शंख पूजा

धर्मग्रंथों ने शंख को विजय, सौरण्य समृद्धि के साथ साथ यश देने वाला माना हैं | पूजा पाठ  , उत्सव,हवन , विजयोत्सव , आगमन, विवाह, राज्याभिषेक , आदि शुभ कार्यों मे शंख बजाना शुभ ओर अनिवार्य माना  जाता है | मंदिरों मे सुबह ओर शाम के समय आरती मे शंख बजने का विधान है | शंखनाद के बिना पूजा अर्चना अधूरी मानी  जाती है, सभी धर्मो मे शंखनाद को बड़ा ही पवित्र माना गया है | शंख से अभिषेक करने का विशेष महत्व है अथर्ववेद के चौथे काण्ड में ‘शंखमणि सूक्त’ के अन्तर्गत शंख की महिमा का वर्णन हैं| समुद्र मंथन में जब यह शंख निकला तो भगवान विष्णु ने इसे अपने दाहिने हाथ में धारण किया था इसलिए भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मीजी का प्रिय पात्र हैं| शंख को रक्षक, अज्ञान और निर्धनता को दूर करने वाला, आयुवर्धक तथा राक्षसों एवं पिशाचो को वशीभुत करने वाला कहा गया हैं| शंख की महिमा और गुणों के संदर्भ में ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया हैं-

शंख चन्द्रार्कदैवत्यं मध्ये वरुणदैवतम् ,

   पृष्ठे प्रजापति विद्यादग्रे गंगा सरस्वतीम्

   त्रैलोको यानि तीर्थानि वासुदेवस्य चाज्ञया ,

   शंखे तिष्ठन्ति विपेन्द्र तस्मात् शंख प्रपुजयते |

   दर्शनेन हि शंखस्य कीं पुनः स्पर्श नेन तु,

   निनयं यान्ति पापानि हिमवद् भास्करोदये ||

अर्थात शंख, चंद्र और सूर्य के समान देव स्वरूप है, इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा तथा अग्रभाग में गंगा और सरस्वती का निवास है तीनों लोको  में जितने भी तीर्थ हैं, विष्णु आज्ञा से शंख में निवास करते हैं शंख के दर्शन मात्र से ही सभी पाप नष्ट हो जाते हैं गौ रक्षा संहिता, विश्वमित्रसंहिता , पुतस्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणवर्ती शंख की महिमा बताई गई है| उस दिव्य शंख को दरिद्रता नाशक आयुवर्धक समृद्धि देने वाला कहा गया हैं |

दक्षिणवर्त शंखे यं यस्य सद्म्नी तिष्ठति |

  मंगलानी प्रवर्तन्ते तस्यलक्ष्मीः स्यवंस्थिर ||

अर्थात दक्षीणवर्ती शंख जिसके घर में रहता हैं, वहां मंगल ही मंगल होते हैं , लक्ष्मी स्वयं स्थिर निवास करती हैं |

“  चन्दनागुरुकर्पुरेः पुज्येन्द्र योग्रहेन्वहम् |

   सौभाग्ये कृष्ण समो धने स्याद् धनदोपमः||

जो व्यक्ति  दक्षिणवर्ती शंख की चंदन और कपूर से पूजा करता है, वह सौभाग्यशाली बन जाता है जो व्यक्ति चेतन्य प्राण प्रतिष्ठायुक्त तथा अष्टलक्ष्मी से पूरित दक्षिणवर्ती शंख अपने घर में स्थापित करता है, निर्धनता उससे कोसों दूर भाग जाती है और भाग्य में वृद्धि होती है इस शंख के माध्यम से शिवलिंग पर विष्णु ,कृष्ण या लक्ष्मी के विग्रह पर अभिषेक करने से संबंधित देवता प्रसन्न होते हैं|

हमारे ऋषि – मुनि दूरदृष्टा के साथ-साथ तत्वदृष्टा भी थे| उन्होंने इस दिव्य दक्षिणावर्ती शंख के तत्व की अद्भुत तांत्रिक भक्ति को पहचान कल ही घर में स्थापित कर पूजा और दर्शन करने के निर्देश दिये हैं|

शक्तियाँ :-

  1. चैतन्य और प्राण प्रतिष्ठा युक्त यह शंख जहां रहता है दरिद्रता समाप्त हो जाती है
  2. इसके प्रभाव से व्यक्ति के मान -सम्मान में वृद्धि होती है
  3. इसके दर्शन मात्र से ही दुर्भाग्य अभिशाप अभीचार और दुग्रह के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं
  4. शक्तिनी, भूत, शैतान, पिशाच और ब्रह्माराक्षस दूर भाग जाते हैं|
  5. ‘अकाले मरणं नास्ति’ अर्थात उसके प्रभाव से अकाल मृत्यु नही होती है
  6. दिन के दूसरे प्रहर में पूजा करने से ‘श्रीवृद्धि’ होती है|
  7. बांझपन जैसे श्राप को दूर करने में यह सक्षम है|
  8. इस शंख की चतुर्थ प्रहर पूजा करने से संतान प्राप्ति होती है|

पूजन विधी

  1. नर दक्षिणवर्ती शंख जो चैतन्य एवं प्राण प्रतिष्ठायुक्त हो, घर के पूजा स्थल पर चांवल की कटोरी के ऊपर इस प्रकार स्थापित करें कि शंख का पूंछ वाला भाग साधक की ओर ना रहे
  2. नित्य केसर का टीका लगाएं तथा धूप दीप अर्पित करें
  3. शंख के अंदर चांदी का सिक्का या चावल अवश्य रखें |

शंख का वैज्ञानिक दृष्टिकोण  से क्या लाभ  है?

शंख बजाने  से सांस की बीमारिया  जैसे दमा आदि नहीं होते| फेफड़े भी जिससे शंख में शक्तिशाली बनते हैं, शंख मे जल भरकर पूजा स्थान मे रखा जाना और पूजा पाठ ,अनुष्ठान होने  के बाद श्रद्धालुओ पर उस जल को छिड़कने के पीछे  मान्यता यह है की इसमें कीटाणुनाशक शक्ति होती हैऔर शंख मे जो गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम की मात्र होती है ,उसके अंश भी जल मे आ जाते है | इसलिए शंख के जल को छिड़कने और पीने से स्वास्थ्य सुधारता है |