swastik

स्वस्तिक का मतलब और शास्त्रोक्त महत्व-

अक्सर हमने देखा है कि लोग अपने घर में, मंदिरों में, संस्थानों आदि में स्वास्तिक बनाते है। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले स्वास्तिक के चिन्ह को बनाकर उसकी पूजा करने का बहुत अधिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से कार्य सफल होता है।

कहां से आया स्वास्तिक-

स्वस्तिक को ‘साथिया’ या ‘सातिया’ भी कहा जाता है। वैदिक काल में ऋषियो ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर कुछ विशेष चिह्नों की रचना की। मंगल भावों को प्रकट करने वाले और जीवन में खुशियो को भरने वाले चिह्नों में से एक है स्वस्तिक। ऋषियो ने स्वस्तिक के रहस्य को विस्तार से बताया है और इसके धार्मिक, ज्योतिष और वास्तु के महत्व को भी बताया। इसे मांगलिक चिन्ह में प्रतिष्ठा, मान –सम्मान , सफलता व उन्नति का प्रतिक मन गया है |

क्या है स्वस्तिक-

स्वास्तिक शब्द मूल भूत ‘सु+अस’ धातु से बना है। ‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ का अर्थ है होना अर्थात ‘शुभ हो’, ‘कल्याण हो’। स्वस्तिक अर्थात कुशल एवं कल्याण। स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘स्वस्तिक’ कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘वामावर्त स्वस्तिक’ कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है।

स्वस्तिक को लाल और पीले रंग से ही क्यों बनाते है –

स्वस्तिक को लाल पीले रंग से बनाया जाता है उत्तर दिशा की दिवार पर या द्वार के दोनों और पीले रंग (हल्दी से बनाया जाता है ) जिससे घर में सुख और शांति बनी रहती है यदि कोई मांगलिक कार्य करने जा रहे है तो लाल रंग का स्वस्तिक बनाये इसके लिए  केसर कुम – कुम रोली और सिंदूर का उपयोग करना चाहिये

स्वस्तिक का महत्व वास्तु मे-

स्वास्तिक की एक खासियत यह भी है कि यह हर दिशा से देखने पर समान ही दिखाई देता है इसलिए घर के वास्तु दोष को दूर करने के लिए यह बहुत ही लाभकारी माना जाता है। स्वास्तिक को वास्तुशास्त्र में वास्तु का प्रतीक भी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि यदि घर के मुख्य द्वार पर दोनों ओर अष्ट धातु का स्वास्तिक लगाया जाए और द्वार के ठीक ऊपर मध्य में तांबे का स्वास्तिक लगाया जाए तो इससे समस्त वास्तु दोष दूर हो जाते हैं।

स्वास्तिक की रेखा की विशेषता

पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह रेखाएं चार दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण को दर्शाती हैं किन्तु हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, यह रेखाएं चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद) का प्रतीक होती है।

स्वास्तिक की चार रेखाएं एक घड़ी की दिशा में चलती है, जो संसार के सही दिशा में चलने का प्रतीक है।

श्रीगणेश की छवि

विघ्नहर्ता गणेश जी की प्रतिमा की भी स्वास्तिक चिन्ह से संगति है। श्री गणेश जी के सूँड़, हाथ, पैर, सिर आदि अंग इस तरह से चित्रित होते हैं कि यह स्वास्तिक की चार भुजाओं के रूप में प्रतीत होते हैं। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान ‘गं’ बीज मंत्र होता है। इसमें जो 4 बिंदियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है। इसिलिये हर पुजा ,अनुष्ठान, यज्ञ में स्वस्तिक को गणेश रूप में भी पुजा जाता है|

विश्व भर में स्वास्तिक

स्वस्तिक को भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर के कई देशों में विभिन्न रुपो में मान्यता प्राप्त है। जर्मनी, यूनान, फ्रांस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, अमेरिका, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, जापान आदि देशों में भी स्वस्तिक का प्रचलन किसी न किसी रूप में मिलता है। विभिन्न मान्यताओं एवं धर्मों में स्वास्तिक को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में और भी कई धर्म हैं (बौद्ध धर्म, जैन धर्म) जो शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक के चिन्ह को बनाते है|

हजारों साल पुराना है स्वास्तिक का इतिहास

बता दें कि इसे प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध से पहले नाजी जर्मनी (Nazi Germany) की नाजी पार्टी ने अपनाया था. स्वास्तिक 11 हजार सालों से भी पुराना है और पश्चिमी और मध्य-पूर्वी सभ्यताओं तक इसके प्रसार का पता चलता है. फिनलैंड की वायुसेना (Finnish Air Force) में स्वास्तिक चिन्ह के इस्तेमाल की शुरुआत 1918 में राज्य चिन्ह के तौर पर हुई थी. उसके तुरंत बाद नाज़ीवाद ने यूरोप को तबाह कर दिया था और देश एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया था. हजारों सालों से फिनलैंड में स्वास्तिक को एक अच्छी तकदीर का चिन्ह माना जाता रहा है.

 

– अन्तर्राष्ट्रीय वास्तुविद् वास्तुरत्न ज्योतिषाचार्य पं प्रशांत व्यासजी
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