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घट-घट में राम

कबीर के एक शिष्य ने कहा, ‘गुरुजी जब भगवान् राम आपके पीछे पीछे घूमते हैं, तो क्यों न हमें भी एक बार उनके दर्शन का सौभाग्य मिले।’ कबीरदास ने हँसकर कहा, भैया, भगवान् उसे ही दर्शन देते हैं,
जो दुर्व्यसनों से मुक्त होता है, मेहनत की कमाई से पालन- पोषण करता है और गरीब-निराश्रितों व साधु-संतों को भोजन कराता है । किसी दिन ईमानदारी की कमाई से भोजन बनाकर साधु-संतों को जिमाओ। भगवान् अवश्य ही दर्शन देने की कृपा करेंगे।
शिष्य ने अपने अवगुण त्याग दिए और मेहनत से कमाई करने लगा। एक दिन वह बोला, ‘गुरुदेव, आज मैंने साधु-संतों व गरीबों के लिए भंडारे की व्यवस्था की है। आप भोजन करने पधारें और मुझे भगवान् के दर्शन कराएँ।’
भंडारे में कई साधु-संत भी पहुंचे। शिष्य कबीरदास की प्रतीक्षा करने लगा। अचानक उसने देखा कि एक भैंस रसोईघर में घुसकर पूरियों के छकड़े में मुँह मार रही है। क्रोधवश लाठी लेकर वह भैंस पर पिल पड़ा। भैंस के शरीर से खून निकलने लगा और वह भाग गई।
कबीरदास उस भैंस से लिपटकर रोते हुए कह रहे थे, ‘हे राम, तुम पर रावण ने भी ऐसा जुल्म नहीं किया, जैसा मेरे शिष्य ने आज किया।’ शिष्य को देखकर वे बोले, ‘अरे दुष्ट, भगवान् भोजन करने आए थे। तूने कसाई जैसा व्यवहार क्यों किया?
शिष्य समझ गया कि गुरुदेव तो प्राणिमात्र में अपने राम के दर्शन करते हैं। वह उनके चरणों में लोट गया।

 

सौंदर्य क्षण भंगुर है

आम्रपाली अपने जमाने की अपूर्व सुंदरी, कुशल गायिका और नर्तकी थी। राजकुमार बिंबिसार से उसने प्रेम विवाह किया था। राजमहल में उसे अपमान के घूँट पीने पड़े। वह वैशाली नगर के बाहर एक आम्र वन में पुत्र जीवक के साथ रहकर संगीत-साधना में रत रहा करती थी।
एक दिन आम्रपाली पुत्र के साथ भगवान् बुद्ध के दर्शन के लिए पहुँची। उसने अत्यंत विनम्रता से कहा, ‘गुरुवर, मेरे पास अपार धन-संपदा है, फिर भी मेरा जीवन अतृप्त है। मैं आपकी शरण में हूँ।
बुद्ध ने कहा, ‘आम्रपाली, अन्य सांसारिक वस्तुओं की तरह सुंदरता आती है और चली जाती है। धन-संपदा और ख्याति भी क्षणभंगुर हैं। ध्यान-साधना के माध्यम से जो आत्मिक संतोष मिलता है, वही जीवन में शाश्वत रहता है।
इस जीवन के जो क्षण शेष रह गए हैं, उन्हें निरर्थक आमोद-प्रमोद में नष्ट नहीं करना चाहिए। साधना, ध्यान, प्राणायाम व संयमपूर्ण जीवन में पल-पल लगाओ, जीवन सहज ही सार्थक हो जाएगा।
बुद्ध के चंद शब्दों से आम्रपाली को प्रेरणा मिली और वह खुशी- खुशी लौट आई। कालदुयी और सारिपुत्र भी उस समय उपस्थित थे। सारिपुत्र ने भगवान् बुद्ध से प्रश्न किया, ‘स्त्री के सौंदर्य को किस दृष्टि से देखना चाहिए?’
बुद्ध ने जवाब दिया, ‘सुंदरता और कुरूपता, दोनों का सृजन पाँच त्त्वों से होता है। मुक्त पुरुष न तो शारीरिक सौंदर्य से सम्मोहित होता है और न कुरूपता से विरक्त। एक ही सौंदर्य शाश्वत है और वह है, करुणामय हृदय।
करुणा का अर्थ है-अहेतुक प्रेम, अर्थात् बदले में किसी से किसी प्रकार की अपेक्षा न करना। बुद्ध की बात सुनकर सारिपुत्र की जिज्ञासा शांत हो गई।

 

समय का मोल

जगद्गुरु शंकराचार्य हमेशा लोगों को यही सीख देते थे कि अपने समय को अच्छे कार्यों में लगाओ। आदमी को कभी भी समय का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
एक बार एक धनवान श्रद्धालु ने कहा, ‘महात्मन्, अगर कोई व्यक्ति समय की कमी के कारण अपना समय अच्छे कार्यों में न लगा पाए, तो उसे क्या करना चाहिए?
शंकराचार्य ने उस व्यक्ति को समझाते हुए कहा, ‘मेरा परिचय आज तक ऐसे किसी व्यक्ति से नहीं हुआ है, जिसको विधाता के बनाए समय से एक भी क्षण कम या अधिक मिला हो। समय की कमी से तुम्हारा क्या मतलब है?
यह सुनकर वह भक्त चुप रह गया। जगद्गुरु ने कुछ क्षण रुककर आगे कहा, ‘जिसे तुम समय की कमी कह रहे हो, वह वास्तव में समय का अभाव नहीं, अव्यवस्था है।
यदि कोई व्यक्ति यह ठान ले कि उसे सदैव व्यवस्थित जीवन जीना है, तो उसके पास हर काम को अच्छी तरह करने के लिए पर्याप्त समय निकल आता है। जो व्यक्ति व्यवस्थित जीवन नहीं जीते हैं, वे अपने अमूल्य जीवन को भार-स्वरूप ढोते हैं।
कुछ क्षण रुककर उन्होंने फिर कहा, ‘जीवन की उपलब्धि यह नहीं है कि कितने वर्ष जीवित रहे, बल्कि इसमें है कि कितने समय का सदुपयोग किया। इसलिए प्रत्येक क्षण का सदुपयोग कर दूसरों को भी इस ओर प्रेरित करना चाहिए।
जगद्गुरु के इस उत्तर से वह व्यक्ति अत्यंत प्रभावित हुआ और उसने तय किया कि वह स्वयं भी व्यवस्थित जीवन जीएगा और दूसरों को भी इस बात के लिए प्रेरित करेगा।

 

सत्य पर अटल

जाबालि मुनि भगवान् श्रीराम से प्रश्न करते हैं, ‘राष्ट्र किस तत्त्व पर आधारित है?’ प्रभु श्रीराम कहते हैं, ‘तस्मात् सत्यात्मकं राज्यं सत्ये लोक: प्रतिष्ठितः। अर्थात् राष्ट्र सत्य पर आश्रित रहता है। सत्य में ही संसार प्रतिष्ठित है।
हे मुनि, जिस राष्ट्र की नींव सत्य और संयम पर आश्रित है, उसका शासक व प्रजा हमेशा सुखी रहते हैं। असत्य-कपट का सहारा लेने वाले कभी संतुष्ट व सुखी नहीं रह सकते।’
भीष्म पितामह युधिष्ठिर को सत्य का स्वरूप समझाते हुए कहते हैं, ‘सत्य सनातन धर्म है, सत्य सनातन ब्रह्म है। चारों वेदों का सार-रहस्य सत्य है।’ ऋग्वेद में कहा गया है, ‘सत्यस्य नावः सुकृतमपीपरन्।
यानी सत्कर्मशील व्यक्ति को सत्य की नौका पार लगाती है। दुष्कर्म में प्रवृत्त, संयमहीन व छल-कपट करने वाले व्यक्ति की नौका बीच मझधार में डूबकर उसके जीवन को निरर्थक कर देती है।
टॉलस्टाय ने लिखा है, ‘जिसने सत्य का संकल्प ले लिया और सदाचार का मार्ग अपना लिया, वही हर प्रकार के भय, कष्टों से मुक्त रहकर ईश्वर व मनुष्यों का प्रिय बन सकता है। सत्यवादी को मृत्यु भी नहीं डराती 1. इसलिए सत्य पर अटल रहने का संकल्प लेना चाहिए।’
महर्षि चरक ने आचार रसायन में कहा है, ‘सत्यवादी, क्रोध रहित, मन, कर्म व वचन से अहिंसक तथा विनय के पालन से मानव शारीरिक, मानसिक व आत्मिक रोगों से मुक्त रहता है।’
उन्होंने इसे ‘सदाचार रसायन’ कहा है। सत्य-सदाचार जैसे तत्त्वों को त्याग देने के कारण ही मानव अनेक रोगों व मानसिक विकारों का शिकार बनता जा रहा है।

 

प्रेम और भक्ति

भगवान् श्रीकृष्ण को देखते ही सब उन पर मोहित हो जाते थे। एक दिन बलराम सहज ही में पूछ बैठे, ‘आपके पास ऐसी कौन सी विद्या है, जो सबका मन मोह लेती है। सखा व गोपियाँ ही नहीं, पशु-पक्षी भी आपके पास आने को लालायित रहते हैं।
मनसुखा हँसकर बीच में बोला, भैया! कन्हैया कोई जादू जानते हैं । गायें इन्हें देखकर हुंकारने लगती हैं। वृक्ष-लताएँ तक इनका सान्निध्य पाते ही आनंदित होने लगते हैं। गोपियाँ इनकी बंसी की तान सुनते ही काम अधूरा छोड़कर भागी-भागी वन में चली आती हैं।’
तीसरे सखा ने कन्हैया की कमर पर धौल जमाते हुए कहा, ‘वह जादू हमें भी सिखा दो, जिससे हमसे भी सब मिलने को आतुर होने लगें ।
श्रीकृष्ण यह सब सुन हँसकर बोले, ‘भैया बलराम और सखाओ! मैं जादू-वादू नहीं जानता। मैंने आप सब ग्वाल-बालों पशु-पक्षियों से प्रेम विद्या सीखी है।
जड़ और चेतन से मैंने इतना अगाध प्रेम पाया है कि मेरा रोम-रोम प्रेममय हो गया है। इस प्रेम के कारण ही पशु-पक्षी भी मुझे घेरे रखने के लिए हर क्षण तत्पर रहते हैं।
शास्त्र में कहा गया है, ‘विद्या ददाति विनयम्। अर्थात् विद्या विनय यानी प्रेम की शिक्षा देती है। ज्ञान और प्रेम रूपी भक्ति में यही अंतर है कि ज्ञान अहं के कारण दूसरे को निम्न समझता है,
जबकि प्रेम-भक्ति प्रभु के समक्ष या प्राणी मात्र के समक्ष विनम्र बनकर नमन करने की प्रेरणा देती है। प्रेम रस में पगा हृदय प्राणी मात्र में अपने को ही देखता है। वह किसी से राग-द्वेष व घृणा नहीं कर सकता, तो फिर उसे कौन नहीं चाहेगा!’

 

श्रद्धा और सत्कर्म

सभी धर्मशास्त्रों में श्रद्धा का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। कहा गया है कि श्रद्धा-निष्ठा के साथ किया गया प्रत्येक सत्कर्म फलदायक होता है। इसलिए कहा गया है, ‘श्रद्धां देवा यजमाना वायुगोपा उपासते।
श्रद्धां हृदस्य याकूत्या श्रद्धया विन्दते वसु।’ अर्थात् देवता, संतजन, विद्वान्, यजमान, दानशील, बलिदानी सब श्रद्धा से कर्म की उपासना करते हैं, इसलिए सुरक्षित रहते हैं।
श्रद्धा को सुमतिदायिनी, कामायनी, कात्यायनी बताकर उसकी उपासना की गई है। वैदिक ऋचा में कहा गया है, ‘हे परमप्रिय श्रद्धे, तेरी कृपा से मैं ऐसा व्यवहार करूँ, जिससे संसार का उपकार हो सके।
हे सुमतिदायिनी श्रद्धे, मैं जो कुछ आहुति, दान व बलिदान करूँ, उसे उपयोगी और सर्वहितकारी बना। हे कात्यायनी श्रद्धे, मेरी अनासक्त कामना है कि मेरे कृत्यों से दान और बलिदान की प्रेरणा उदित होती रहे।
हे कात्यायनी श्रद्धे, मुझे अपार सौंदर्य दे, जिससे मुझसे सब प्रेम करें और मैं अपने आपको परमेश्वर में उत्सर्ग कर देँ।’
हृदय से जब श्रद्धा की उपासना होती है, तब अनंत ऐश्वर्य अनायास ही प्राप्त होने लगते हैं। मन में श्रद्धा होने से सद्भावना, सत्य, अहिंसा, त्याग, अनुराग आदि स्वेच्छा से वरण करते हैं।
ऋग्वेद में कहा गया है, ‘श्रद्धया अग्निः समिध्यते।’ यानी श्रद्धा से ऐसी अग्नि प्रदीप्त होती है, जो मनुष्य को प्रेम, रस, आनंद और अमृत प्रदानकर उसका लोक-परलोक सफल बनाती है।
श्रद्धा ही वृद्धजनों, माता-पिता, गुरु के प्रति कर्तव्यपालन करने, मातृभूमि के लिए प्राणोत्सर्ग करने, समाज व धर्म की सेवा में संलग्न होने की प्रेरणा का स्रोत है।

 

मोची और दयाल बौने

एक बार एक गाँव में एक गरीब मोची रहता था। एक रात वह भूल से एक चमड़े का टुकड़ा अपनी दुकान में छोड़ गया। अगली सुबह चमड़े के स्थान पर एक जोड़ी नए जूते देखकर वह हैरान रह गया।
उन जूतों के उसे बहुत अच्छे दाम मिले। उस शाम वह फिर से चमड़े का टुकड़ा रखकर भूल गया। अगले दिन फिर से उसे जूते बने हुए मिले। ऐसा कई दिनों तक होता रहा।
मोची और उसकी पत्नी इस रहस्य का पता लगाने के लिए दुकान में छुपकर बैठ गए। आधी रात को दो बौने आए और चमड़े से जूते बनाने लगे। मोची ने देखा उनके पास कपड़े नहीं थे।
उन्होंने सोचा उन्हें बौनों के लिए सुंदर कपड़े बनाने चाहिएँ। अगली शाम दुकान में मोची ने चमड़े की जगह बौनों के लिए कपड़े रख दिए।
बौने अपने कपड़े पहन कर खुशी-खुशी वहाँ से चले गए और कभी नहीं लौटे। इस घटना के बाद मोची भी अपनी पत्नी के साथ खुशी-खुशी रहने लगा।

 

बकरी और दुष्ट भेड़िया

एक बकरी जंगल में अपने सात बच्चों के साथ रहती थी। एक दिन बकरी बाहर जा रही थी इसलिए उसने बच्चों को दुष्ट भेड़िये से सावधान रहने को कहा।
जब माँ चली गई तब वह दुष्ट भेड़िया बकरी होने का ढोंग करके उनका दरवाज़ा खटखटाने लगा। लेकिन बच्चों ने दरवाज़ा नहीं खोला और कहा-“नहीं, तुम्हारी आवाज़ हमारी माँ जैसी नहीं है और तुम्हारे पंजे भी भयानक हैं।”
भेड़िये ने आटे से बकरी के जैसे पंजे बनवाए और उनको पहन कर उनके पास गया। इस बार बच्चों ने उस पर भरोसा कर दरवाज़ा खोल दिया।
अलमारी में छुपे एक बच्चे को छोड़कर भेड़िये ने सभी को खा लिया। जब माँ लौटी तब बचे हुए बच्चे ने सारी बात बताई। माँ भागकर भेड़िये के पास गई।
भेड़िया उस समय सो रहा था। बकरी ने उसका पेट काटकर अपने बच्चे निकाल लिए और उसमें पत्थर भरकर उसे सी दिया। जब भेड़िया उठकर पानी पीने गया तो अपने ही बोझ के कारण नदी में गिरकर मर गया। अब बकरी और उसके बच्चे खुशी-खुशी रहने लगे।

 

बहादुर राजकुमार

एक राजकुमार को शिकार का बहुत शौक था। वह बहुत बहादुर था। उसने बहुत भयंकर जानवरों का शिकार किया था। एक दिन उसने एक ड्रेगन का शिकार करने का फैसला किया।
वह जंगल में गया और बहुत जल्द उसे एक बड़ा ड्रेगन मिला। उसने तीर से निशाना लगा कर उसे मार डाला। परंतु अगले ही पल एक छोटे मादा ड्रेगन ने उस पर हमला कर दिया।
राजकुमार ने उसे भी मार डाला। तभी उसने एक गुफा में चार नवजात ड्रेगन-बच्चों को देखा। उनको देखकर उसे बहुत दुख और पश्चाताप हुआ कि उसने बच्चों को उनके माता-पिता से अलग कर दिया था। वह उन बच्चों को महल में ले आया और उन्हें पालने लगा।
जब भी उसे विवाह करने के लिए कहा जाता वह कहता-“मैं उस लड़की से शादी करूँगा जो बहादुर हो और ड्रैगन की सवारी कर सके।” आखिर में उसे एक सुंदर राजकुमारी मिली जिसको ड्रेगन की सवारी करना पसंद था।
राजकुमार ने उससे विवाह कर लिया और वे सारा जीवन ड्रेगन की सवारी करते रहे।

 

राजा और उसकी पहेली

एक बार, एक राजा था जिसको बुद्धिमान लोग बहुत पसंद थे। एक दिन उसके सिपाहियों ने एक विरोधी नेता को जेल में बंद कर दिया। अगले दिन उस नेता की सुंदर बेटी दरबार में आई।
उसने राजा से उसके पिता को छोड़ देने की विनती की। राजा उसकी सुंदरता से बहुत प्रभावित हुआ। राजा बोला-“अगर तुमने मेरी पहेली को हल कर दिया तो मैं तुम्हारे पिता को छोड़ दूंगा और तुमसे शादी करूँगा।”
लड़की मान गई। राजा बोला-“कल तुम्हें मेरे पास, न तो कपड़ो के बिना, न ही कपड़े पहने, न ही घोड़े पर सवार हो कर, न ही पैदल, न ही बिना तोहफे के और न ही किसी तोहफे के साथ आना होगा।”
अगले दिन लड़की मोटा मछली का जाल पहने, एक बड़े खरगोश पर सवार हो, एक बटेर लेकर आई। आते ही उसने बटेर को उड़ा दिया। इस प्रकार इस पहेली को हल कर दिया।
राजा लड़की की समझदारी और बहादुरी से बहुत खुश हुआ। उसने लड़की के पिता को छोड़ दिया और लड़की से शादी कर ली।

 

स्वार्थी राजा

बहुत समय पहले, एक राजा था जो हमेशा अपनी रानी को डॉटता रहता था। एक दिन उसने गुस्से में रानी को महल से निकल जाने को कहा। रानी बहुत दुखी हुई।
राजा ने रानी से कहा-“जो तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा कीमती हो, उस चीज़ को तुम अपने साथ ले जा सकती हो। अगली सुबह जब राजा जागा तो उसने अपने आपको एक नए कमरे में पाया।
उसने रानी को पुकारा। जब रानी आई तो उसने गुस्से से उससे पूछा-“यहाँ क्या हो रहा है? मैं कहाँ हूँ?” रानी ने जवाब दिया-“कल आपने ही मुझे, सबसे कीमती चीज़ लेकर महल से निकल जाने को कहा था।
मेरे लिए आप ही सबसे कीमती हो, इसलिए मैं आपको अपने माता-पिता के घर लेकर आ गई।” यह सुनकर राजा को बहुत दुख हुआ। उसने रानी से माफी मांगी और उसे लेकर अपने महल में चला गया।

 

छोटी चिड़िया

एक बार, एक मोर की बहुत सुंदर लेकिन गूंगी लड़की थी। उसने उसका नाम छोटी चिड़िया रखा जो गा नहीं सकती थी। एक दिन राजकुमार बहुत बीमार हो गया।
एक परी ने राजा को बताया कि एक छोटी चिड़िया जो गा नहीं सकती हो, राजकुमार को ठीक कर सकती है। यह बात जब मोरची को पता चली तो वह अपनी बेटी, छोटी चिड़िया को राजा के सामने ले गया।
लेकिन राजा बहुत गुस्सा हुआ और उसने उन दोनों को जेल में बंद कर दिया। उसने सोचा, मोची उनका मजाक उड़ा रहा था। अचानक, राजकुमार के एक नौकर ने आकर कहा-“राजकुमार बड़बड़ा रहे हैं कि पिताजी ने छोटी चिड़िया को जेल में क्यों बंद किया है।”
इतना सुनते ही राजा ने उस लड़की को जेल से बाहर निकाला और राजकुमार के कमरे में भेज दिया। कमरे में पहुँचते ही अचानक वह मधुर स्वर में गाने लगी।
उसका गाना सुनते ही राजकुमार ठीक हो गया। यह देख राजा इतना खुश हुआ कि उसने राजकुमार की शादी उस लड़की से कर दी।

 

घमंडी कलम और स्याही की दवात

एक बार एक प्रसिद्ध कवि की एक ‘स्याही की दवात’ थी। एक दिन अपने पर घमंड करते हुए वह बोली-“विश्वास नहीं होता! मेरी स्याही की कुछ बूंदें इतना सुंदर और इतना सार्थक लिख सकती हैं।”
तभी, एक ‘कलम’ चिल्लाई-“तुम कितनी मूर्ख हो। तुम्हें नहीं पता? तुम तो सिर्फ स्याही देती हो। कागज़ पर लिखने वाली तो मैं हूँ, इसलिए मैं तुमसे ज्यादा महान हूँ।”
उन दोनों में बहस होने लगी। दोनों ही अपने आपको महान बता रही थीं। इतने में, एक कवि जो कि एक संगीत सभा से होकर लौट रहा था। उसने लिखना शुरू किया-“वह, कितना सुंदर संगीत था।
यह संगीत वाद्यों की मूर्खता होगी, अगर वे यह सोचें कि संगीत वे उत्पन्न करते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि हम कुछ महान नहीं करते।
यह तो भगवान है जो हमसे महान काम करवाता है।” लेकिन लेखक के इतने सुंदर विचार भी ‘स्याही की दवात’ और ‘कलम’ के विचारों में कोई बदलाव न ला सके।

 

जेम्स और समुद्र के राजा की बारह बेटियाँ

एक दिन, जेम्स नामक लड़का समुद्र के किनारे बैठा हुआ था। अचानक, उसने बारह समुद्री चिड़ियों को देखा। समुद्र के किनारे उतरते ही, वे बारह युवतियों में बदल गई।
उन्होंने अपने पंख उतारे और समुद्र में कूद गई। जेम्स ने मज़ाक में एक पंख ले लिया। वे बारह लड़कियाँ समुद्र में से निकली और उन्होंने अपने पंख पहन लिए।
वे सब फिर से समुद्री चिड़ियाँ बन गई और उड़ गई। लेकिन उनमें से मैरी नामक लड़की वहीं रोती रह गई। जेम्स को उसके लिए बहुत खेद हुआ और उसने उसके पंख लौटा दिए।
लड़की खुश होकर उसे अपने पिता, समुद्र के राजा के पास ले गई। समुद्र के राजा जेम्स पसंद आया। उसने कहा-“अगर तुम समुद्री गाड़ियों में से मैरी को पहचा जाओगे, तो मैं मैरी का विवाह तुम्हारे साथ कर दूंगा।”
मैरी भी जेम्स को पसंद करने लगी थी। उसने जेम्स को अपनी गुप्त पहचान बता दी। जेम्स ने आसानी से उसे पहचान लिया। अंत में, जेम्स और मैरी का विवाह हो गया।

 

जादुई गाय

बहुत पहले एक राजा था, जिसकी रानी मर चुकी थी। राजा की एक बेटी थी। उसकी देखभाल के लिए उसने एक रानी से शादी की जिसकी तीन बदसूरत बेटियाँ थीं।
लेकिन नई रानी, राजा की बेटी को पसंद नहीं करती थी। उसके आदेश पर राजकुमारी खेतों में काम करती थी, और बिंदा नामक गाय की देखभाल करती थी। बिंदा एक जादुई गाय थी।
गाय, राजकुमारी को दूर लेकर जाती जहाँ राजकुमारी गाय के एक कान में प्रवेश करती। पेटभर खाकर और अच्छे कपड़े पहन कर वह दूसरे कान से बाहर निकलती।
वापस आते समय, वह फिर से पुराने कपड़े पहन लेती। एक दिन, उसकी सौतेली माँ को शक हुआ तो उसने अपनी एक बेटी को उसके पीछे भेजा। लेकिन वह सो गई और कुछ भी न देख पाई। ऐसा ही उसकी दूसरी बेटी के साथ हुआ।
लेकिन तीसरी बेटी नहीं सोई। उसने सब देख लिया कि कैसे राजकुमारी गाय के कान में प्रवेश करती है। उसने भी राजकुमारी की तरह करना चाहा पर गलत कान में जाने से वह गाय का बछड़ा बन गई।

 

दयालु जतिन

एक बार जतिन नाम का लड़का था जिसे जानवरों से बहुत प्यार था। एक दिन, जब वह स्कूल से आ रहा था तो उसने एक कुत्ते को झाड़ियों में फंसा हुआ देखा।
जतिन को उस पर बहुत दया आई और वह उसे घर ले आया। उसके माता-पिता उस कुत्ते को जानवरों के डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि बहुत जल्द उसके बहुत से पिल्ले होंगे।
अब जतिन ने उस कुत्ते के मालिक को ढूंढने का फैसला किया। उसने आस-पास की कई जगहों में, कुत्ते का वर्णन करते हुए कई पर्चे लगा दिए। उन पचों में उसने अपना फोन नम्बर भी लिखा था।
कई दिन बाद, एक दिन कुत्ते के मालिक ने वह पर्चा देख लिया। उसने जतिन से फोन पर बात की और कुत्ते को लेने उसके घर आ गया।
उसने जतिन को बहुत धन्यवाद किया। उसने जतिन को एक पिल्ला उपहार में देने का वादा भी किया। अब इससे अच्छा उपहार जतिन के लिए क्या हो सकता था?