knowledgable_stories

उत्साह हमें जिंदादिल बनाए रखता है

अमरीका में जीवन बीमा के विक्रय क्षेत्र में सार्वाधिक ख्याति प्राप्त फ्रैंक बैजर अपने व्यवसाय के आरंभिक काल में असफल हो चुके थे और उन्होंने अपने बीमा कंपनी के पद से पद से इस्तीफा देने का निर्णय ले लिया था।
एक दिन वे इस्तीफा लेकर कार्यालय पहुंच गए। उस समय प्रबंधक महोदय अपने विक्रेताओं की बैठक को संबोधित कर रहे थे।
बैजर प्रबंधक-कक्ष के बाहर प्रतीक्षा करने लगे। अंदर से आवाज आई- ‘मैं जानता हूँ कि आप सभी योग्य विक्रेता हैं, किंतु आप यह विशेष ध्यान रखें कि योग्यता से भी अधिक महत्वपूर्ण है उत्साह, आपका जोश, जीवन की ऊर्जा, जो मंजिल की दिशा में आपकी सहायता करती है।
आपका उत्साह, आपकी उमंग ही आपको सफलता के शिखर पर पहुंचा सकता है।’
इन शब्दों को सुनकर बैजर ने अपना निर्णय बदल दिया और जेब में रखे इस्तीफे को उसी समय फाड़ दिया। वे फौरन अपने घर चले गए।
दूसरे दिन से फ्रैंक बैजर ने अपने काम को बड़े उत्साह के साथ करना शुरू किया। उनके उत्साह से ग्राहक इतने प्रभावित हुए कि कुछ वर्षों में वे अमरीका के नंबर वन सेल्समैन बन गए।
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :- ” उत्साही जीवन के संघर्ष में धन की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि धन के बार-बार नष्ट हो जाने पर भी व्यक्ति उसे पैदा कर लेता है। उत्साह वह अग्नि है जो हमारे शरीर रूपी इंजन के लिए भाप तैयार करती है “

 

ज्ञान हमेशा झुककर हासिल किया जा सकता है

एक शिष्य गुरू के पास आया। शिष्य पंडित था और मशहूर भी, गुरू से भी ज्यादा। सारे शास्त्र उसे कंठस्थ थे। समस्या यह थी कि सभी शास्त्र कंठस्थ होने के बाद भी वह सत्य की खोज नहीं कर सका था।
ऐसे में जीवन के अंतिम क्षणों में उसने गुरू की तलाश शुरू की। संयोग से गुरू मिल गए। वह उनकी शरण में पहुंचा। गुरू ने पंडित की तरफ देखा और कहा, ‘तुम लिख लाओ कि तुम क्या-क्या जानते हो।
तुम जो जानते हो, फिर उसकी क्या बात करनी है। तुम जो नहीं जानते हो, वह तुम्हें बता दूंगा।’ शिष्य को वापस आने में सालभर लग गया, क्योंकि उसे तो बहुत शास्त्र याद थे।
वह सब लिखता ही रहा, लिखता ही रहा। कई हजार पृष्ठ पर गए। पोथी लेकर आया। गुरू ने फिर कहा, ‘यह बहुत ज्यादा है। मैं बूढ़ा हो गया। मेरी मृत्यु करीब है। इतना न पढ़ सकूँगा।
तुम इसे संक्षिप्त कर लाओ, सार लिख लाओ।’ पंडित फिर चला गया। तीन महीने लग गए। अब केवल सौ पृष्ठ थे। गुरू ने कहा, मैं ‘यह भी ज्यादा है।
इसे और संक्षिप्त कर लाओ। कुछ समय बाद शिष्य लौटा। एक ही पन्ने पर सार-सूत्र लिख लाया था, लेकिन गुरू बिल्कुल मरने के करीब थे। कहा, ‘तुम्हारे लिए ही रूका हूँ।
तुम्हें समझ कब आएगी? और संक्षिप्त कर लाओ।’ शिष्य को होश आया । भागा दूसरे कमरे से एक खाली कागज ले आया। गुरू के हाथ में खाली कागज दिया। गुरू ने कहा, ‘अब तुम शिष्य हुए।
मुझसे तुम्हारा संबंध बना रहेगा। कोरा कागज लाने का अर्थ हुआ, मुझे कुछ भी पता नहीं, मैं अज्ञानी हूँ| जो ऐसे भाव रख सके गुरू के पास, वही शिष्य है।
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :- ” गुरू तो ज्ञान-प्राप्ति का प्रमुख स्त्रोत है, उसे अज्ञानी बनकर ही हासिल किया जा सकता है। पंडित बनने से गुरू नहीं मिलते”

 

जीवन से मत भागो, जिओ उद्देश्य के लिए

घटना उन दिनों की है जब इंगलैंड में डॉक्टर एनी बेसेंट अपने वर्तमान जीवन के प्रति निराश थीं और एक सार्थक जीवन जीने की ललक उनके हृदय में तीव्रता से उठी थी।
एक दिन अंधेरी रात्रि सभी परिवारजन गहारी नींद में सोए हुए थे। केवल वही जाग रही थीं और आत्मा की शांति के लिए इतनी बचैन हो उठी कि इस जीवन से भाग जाने का ख्याल मन में लाकर सामने रखी जहर की शीशी लेने के लिए चुपके-से उठीं, लेकिन तभी किसी दिव्य-शक्ति की आवाज ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया – ‘क्यों, जीवन से डर गई? सत्य की खोज कर।
ये सुनकर वह चौंक गई, ‘अरे यह आवाज किसकी है? कौन मुझे भागने से रोक रहा है?’ उन्होंने उसी समय निश्चय कर लिया – ‘सार्थक जीवन (Meaningful life) के लिए मुझे संघर्ष करना ही होगा।’
सत्य की खोज के लिए वे अपना परिवार, सुख-सम्पत्ति आदि सब कुछ छोड़कर भारत आ गई। उन्होंने साध्वी जैसा जीवन यहां ग्रहण किया और विश्व को भारतीय जीवन-दर्शन के रंग में रंग देना ही अपना मुख्य उद्देश्य बना लिया। उनकी मृत्यु भारत में हुई थी।
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :- अंधकार से प्रकाश की ओर जाने के लिए भी मनुष्य को संघर्ष करना पड़ता है, जिसके दौरान वह अपनी शुद्ध चेतना से समर्पण-भाव को जाग्रत कर जीवन-लक्ष्य की प्राप्ती कर लेता है। ऐसे संघर्षवान व्यक्ति की ईश्वर भी सहायता करता है, बशर्ते वह सच्ची लगन व उत्साह के साथ सार्थक जीवन के प्रति संकल्पकृत है और उसकी आँखें निर्धारित लक्ष्य पर केन्द्रित हैं।

 

सत्याचरण का प्रभाव

बात उन दिनों की है जब एक दिन पाटली-पुत्र नगर में सम्राट अशोक गंगा नदी के किनारे टहल रहे थे। उनके साथ उनके मंत्रीगण, दरबारी व सैंकड़ों लोग भी थे। नदी अपने पूरे चढ़ाव पर थी।
पानी के प्रबल वेग को देखते हुए सम्राट ने पूछा- ‘क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो इस प्रबल गंगा का बहाव उल्टा कर सके?’ यह सुनकर सब मौन हो गए। उस जनसमूह से कुछ दूरी पर बिंदुमति नामक बूढ़ी वेश्या खड़ी थी।
वह सम्राट् के पास आकर बोली- ‘महाराज, मैं आपके सत्य-कर्म की गुहार लगाकर यह कर सकती हूँ।’ सम्राट ने उसे आज्ञा दे दी।
उस वेश्या की गुहार से प्रबल गंगा ऊपर की ओर उल्टी दिशा में गर्जन करते हुए बहने लगी। सम्राट अशोक भौंचक्के रह गए। उन्होंने वेश्या से पूछा कि उसने यह अद्भुत कार्य कैसे किया।
वेश्या बोली – ‘महाराज, सच्चाई की शक्ति से मैंने गंगा को उल्टी तरफ बहा दिया।’ अविश्वास के साथ राजा ने पूछा, तुम एक साधारण सी वेश्या….तुम तो स्वाभाविक पापी हो!
बिंदुमति ने जवाब दिया- ‘दुराचारी, चरित्रहीन स्त्री होकर भी मेरे पास ‘सत्य कर्म’ की शक्ति है। महाराज, जो भी मुझे रूपये देता–चाहे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र रहा हो या किसी अन्य जाति का रहा हो, मैं उन सबके साथ एक जैसा व्यवहार करती थी।
जो मुझे रूपये देते थे, उन सबकी एक समान सेवा करती थी। महाराज, यही ‘सत्य कर्म है जिसके द्वारा मैंने प्रबल गंगा को उल्टी दिशा में बहा दिया।’
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा : ” धर्म के प्रति सचाई मनुष्य को महान् शक्ति प्रदान करती है। यदि हम जीवनभर अपने कर्तव्य को पूर्ण निष्ठा से निभाएं, तो इस तथ्य को साक्षी रखकर चमत्कार का सकते हैं, जैसा कि बिंदुमति वेश्या ने कर दिखाया। “

जीतने की जिद

इस कहानी में एक लड़की कुसुम के जीत की चाह के बारे में है | कि अगर हम किसी काम को ठान के तो वह होकर ही रहता है |
एक गांव में कुसुम नाम की एक लड़की रहती थी| कुसुम का चयन एयरफोर्स में हो गया था और इस बात को लेकर उसके गांव वाले बड़े आश्चर्यचकित थे|
किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक छोटे से गांव की कमजोर वर्ग की लड़की एक दिन पूरे गांव का नाम रोशन करेगी |
एक बार एयर फोर्स के कुछ अफसरों का जत्था एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए जा रहा था| कुसुम को भी उसमें शामिल किया गया| हालांकि उसे पर्वतारोहण का कोई भी अनुभव नहीं था|
कुसुम कड़ी मेहनत करने लगी और कुछ ही महीनों में वह अपने दोस्तों के साथ एवरेस्ट के पहले बेस कैंप पर पहुंच गई|
एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए पांच अलग-अलग पड़ाव पार करने होते हैं| उसने हार नहीं मानी और मजबूती से चलती रही| पर अंतिम पड़ाव पर आकर वह बहुत थक गई और उसे सांस लेने में दिक्कत होने लगी|
उसकी टीम के लीडर ने उसे वहीं से लौट जाने का आदेश दिया|
कुसुम ने जिंदगी में पहली बार हार का सामना किया था| वह जब वापस अपने गांव लौटी तो गांव वालों ने उसका बड़ा अपमान किया और उसकी मजाक उड़ाई |
उस दिन उसने तय कर लिया कि जब तक मैं एवरेस्ट की चढ़ाई नहीं करूंगी, जिंदगी में और कुछ नहीं करूंगी|
लंबी छुट्टी लेकर कुसुम अपने पैसों से एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए पहुंच गई| इस बार जोश कई गुना ज्यादा था| उसने जीवन भर की सारी जमा-पूंजी इस पर लगा दी थी|
एक बार फिर अंतिम पड़ाव तक पहुंच गई लेकिन इस बार भी अंतिम पड़ाव पर जाकर उसके हौसले पस्त होने लगे ,साथ ही मौसम भी खराब होने लगा|
अब कुसुम के सामने चुनौतियां ज्यादा थी| जिंदगी की पूरी कमाई, गांव वालों की इज्जत, माता-पिता का विश्वास और अपने भीतर की खुशी एक सवाल बन कर उस की आंखों के सामने तैर रही थी|
उसने तय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए अब वापस नहीं लौटना है |
अगले 8 घंटे उसकी जिंदगी के सबसे कठिन समय थे| लेकिन फिर भी वह डटी रही और अंत में वह एवरेस्ट की चोटी तक पहुंच गई|
जब कुसुम वापस अपने गांव लौटी तो गांव वालों ने दिल खोलकर उसका स्वागत किया और उससे माफी भी मांगी|
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :- “लोग हमारी नहीं, बल्कि हमारी उपलब्धियों की कद्र करते हैं | “

अपने स्वाभिमान को सदैव ऊँचा रखें

आपने भी देखा होगा, बड़े शहरों में सार्वजनिक स्थलों पर कुछ भिखारी अपने कटोरे में साधारण बॉल पैन, रिफिल, पेंसिल, पॉकेट साइज कंघा या अन्य कोई छोटी-मोटी चीजें रखकर बैटते हैं।
एक सज्जन ऐ भिखारी के कटोरा में ऐ दो रूपए का सिक्का डालकर वहीं खड़े-खड़े उसके बारे में सोचने लगे और कुछ क्षण बाद वह आगे चलने को मुड़े ही किवह भिखारी बोला, ‘बाबू साब! टापने दो रूपये का सिक्का तो कटोरा में डाला दिया, पर उसमें रखी पैंसिल या रिफिल आपने नहीं ली।
आपको जो पसंद हो, उठा लीजिए साब!’ सज्जन बोले’भई, मैंने तो भिखारी समझकर मुम्हें सिक्का दिया है।’ ‘नहीं, बाबू साब!’ उसके बदले कुछ तो ले लीजिए, भले ही पचास पैसे की हो।
अब वह सज्जन असमंजस में पड़ गए कि वह भिखारी है या दुकानदार! और उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखने लगे। भिखारी बोला – ‘साहब, हालात ने मुझे भिखारी जरूर बना दिया है, लेकिन मेरा थोड़ा-सा आत्म-सम्मान अब भी बचा है।
अगर आप सिक्के के बदले कुछ भी ले लेंगे तो मुझे कम-से-कम इतना संतोष रहेगा कि भिखारी होने के बावजूद मैंने अपना स्वाभिमान नहीं खोया है।’
यह सुनकर उस सज्जन की आँखें भर आईं। उन्होंने अपने पर्स से 100-100 रूपए के दो नोट निकालकर उस भिखारी के हाथ में दिए और कटोरे में रखा सारा सामान (जो 50 रूपए से ज्यादा मूल्य का नहीं था) |
लेकर उससे पूछा – ‘भईया दो सौ रूपए कम तो नहीं हैं?’ वह भिखारी कृतज्ञ होकर रूंधे कंठ से बोला –’साहब, मैं आपका शुक्रिया किन शब्दों से अदा करूं? आपने तो दरिद्रनारायण के रूप में आकर मेरे स्वाभिमान को फिर से ऊँचा कर दिया है।
यह तो मेरा जीवन बदल देगा। मैं आज ही इन रूप्यों से सुबह और शाम का अखबार बेचना शुरू कर दूंगा और फिर भिखारी बनकर कभी नहीं जिऊंगा।’
Moral of Short Stories In Hindi शिक्षा :- ” हम पहले खुद को जानें, अपनी पहचान करें और फिर खुद को सही रास्ते पर लाकर आनंद से जिएं “