Power Of Om

भारतीय सभ्यता के प्रारंभ से ही ओंकार ध्वनि के महत्त्व से सभी परिचित रहे हैं. पांच अवयव- ‘अ’ से अकार, ‘उ’ से उकार एवं ‘म’ से मकार, ‘नाद’ और ‘बिंदु’ इन पांचों को मिलाकर ‘ओम’ एकाक्षरी मंत्र बनता है. ॐ  उच्चारण के साथ ही शरीर पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है|

ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है-

अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है. यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है, तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है. देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है. उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि. इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं|

ॐ शब्द के उच्चारण की विधि –

प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें. ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं. इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं. ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं. ॐ जप माला से भी कर सकते हैं

ॐ उच्चारण के लाभ –

इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी. दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा. इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं. काम करने की शक्ति बढ़ जाती है. इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं. इसके उच्चारण में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है.

ॐ शब्द के उच्चारण का महत्व –

ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है – अ, उ, म । पहला शब्द है ‘अ’ जो कंठ से निकलता है। दूसरा है ‘उ’ जो हृदय को प्रभावित करता है। तीसरा शब्द ‘म्‌’ है जो नाभि में कम्पन करता है। इस सर्वव्यापक पवित्र ध्वनि के गुंजन का हमारे शरीर की नस नाडिय़ों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है | यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक,और स्वर्ग लोग का प्रतीक भी माना जाता  है

अंग्रेज़ी में भी ईश्र्वर के लिए सर्वव्यापक शब्द का प्रयोग होता है, यही सृष्टि का आधार है। यह सिर्फ़ आस्था नहीं, इसका वैज्ञानिक आधार भी है। प्रतिदिन ॐ का उच्चारण न सिर्फ़ ऊर्जा शक्ति का संचार करता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाकर कई असाध्य बीमारियों से दूर रखने में मदद करता है।

ॐ हिन्दू धर्म का प्रतीक चिह्न ही नहीं बल्कि हिन्दू परम्परा का सबसे पवित्र शब्द है। हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में ॐ शब्द को शामिल करते हैं , ओ३म्‌ की ध्वनि का सभी सम्प्रदायों में महत्त्व है। तो इसाई धर्म में भी इसी सी मिलते जुलते एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक दृष्टी से किया जाता है । तथा इस शब्द को याद  करते है , बौद्ध इसे  “ओं मणिपद्मेहूं”  कह कर प्रयोग करते हैं। सिख समुदाय भी  “इक ओंकार”  अर्थात एक ॐ का गुण गाते है। मुस्लिम इसको आमीन  कहते है|

वेद मंत्र के आरम्भ में  “ हरीओम ” का उच्चारण करने का महत्त्व –

मंत्र रिच्चा पाठ आदि के उच्चारण में अशुद्धता रह जाने पर महापातक दोष लगता हे इस दोष की निवृत्ति के लिए हरिओम का उच्चारण करना चाहिए | वेद रिच्चा पाठ मंत्र आदि से पूर्व हरिओम का उच्चारण करना वैदिक परंपरा है|

ॐ ध्वनी  ऋषियों के अनुसंधान से प्राप्त – 

ॐ को ओम कहा जाता है. उसमें भी बोलते वक्त ‘ओ’ पर ज्यादा जोर होता है. इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं. . इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं. यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है. अनाहत अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं. इसे अनहद भी कहते हैं. संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है.

तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी. हर कहीं, वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांती महसूस करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओम

 

– अन्तर्राष्ट्रीय वास्तुविद् वास्तुरत्न ज्योतिषाचार्य पं प्रशांत व्यासजी
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